संघ प्रमुख मोहन भगवत ने सनातन धर्म की रक्षा और इसके लिए बलिदान देने का आह्वान किया

त्रिपुरा के गोमती ज़िले में एक मंदिर के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भगवत ने कहा कि हमें सनातन धर्म की रक्षा करनी है. इसमें एकता और अपनेपन का दर्शन है. हम धर्म के लिए जीते हैं, हम धर्म के लिए मरते हैं. हमें धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देना पड़ता है.

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मोहन भागवत. (फोटोः पीटीआई)

त्रिपुरा के गोमती ज़िले में एक मंदिर के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भगवत ने कहा कि हमें सनातन धर्म की रक्षा करनी है. इसमें एकता और अपनेपन का दर्शन है. हम धर्म के लिए जीते हैं, हम धर्म के लिए मरते हैं. हमें धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देना पड़ता है.

मोहन भागवत. (फोटोः पीटीआई)

अगरतला: त्रिपुरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार (27 अगस्त) को सनातन धर्म के अनुयायियों से अपने धर्म की रक्षा करने का आह्वान किया और कहा कि इसे किसी भी चीज के लिए नहीं छोड़ा जाना चाहिए और अगर जरूरत आन पड़े तो इसके लिए अपने जीवन का भी बलिदान दे देना चाहिए.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भागवत राजधानी अगरतला से 100 किलोमीटर दूर गोमती जिले में एक मंदिर का उद्घाटन करने गए थे. कार्यक्रम में देश भर से आए हिंदू संप्रदाय के नेता शामिल हुए थे.

इस दौरान भागवत ने कहा, ‘भारत में खाने की कई आदतें, संस्कृति एवं परंपराएं हैं और इस सबके बावजूद भी हम सब अपनेपन के साथ रहते हैं. सभी समुदायों के विचारों में भारतीयता है, वे सनातन धर्म की स्तुति करते हैं. यह अपनापन अपने देश तक ही सीमित नहीं है. हम पूरी दुनिया को अपना मानते हैं.’

हालांकि, हिंदुत्ववादी नेता ने कहा कि हूणों, मुसलमानों और ब्रिटिश उपनिवेशों जैसे देश के बाहर से आए समुदायों ने इस संबंध को साझा नहीं किया और लोगों का धर्म परिवर्तित करने या उन्हें खत्म करने की कोशिश की.

उन्होंने कहा, ‘उनका मानना था कि यदि कोई अलग ईश्वर, संस्कृति या भाषा में विश्वास करता है तो वह ‘उनसे अलग’ है और उनको या तो धर्म बदलना होगा या मारे जाएंगे.’

वैश्विक बंधुता के विचार की वकालत करते हुए भागवत ने कहा कि यह विश्व कल्याण को बढ़ावा देता है, जबकि एक-दूसरे को अलग-अलग देखना शोषण, युद्ध, अन्याय और प्रकृति का विनाश लेकर आता है.

भागवत ने कहा, ‘यह सनातन धर्म में एकता और अपनेपन का दर्शन है. हम धर्म के लिए जीते हैं, हम धर्म के लिए मरते हैं. हमें धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देना पड़ता है.’

भागवत जिस मंदिर के उद्घाटन में शामिल हुए थे, उसकी स्थापना शांति काली मिशन द्वारा संचालित इमारत में होनी थी. इस मिशन की शुरुआत एक स्थानीय हिंदू संप्रदाय के नेता आचार्य शांति काली ने की थी, जिनकी वर्ष 2000 में सशस्त्र विद्रोहियों द्वारा हत्या कर दी गई थी. उनके अनुयायी राज्य में 24 मंदिरों, विशेष तौर पर आदिवासियों के बीच, का संचालन करते हैं.

आचार्य शांति काली को एक महान संत बताते हुए भागवत ने कहा कि वे गीता के मार्गदर्शन में जीए और मरे. उन्होंने दूसरों से भी ऐसा ही करने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा, ‘हमें सनातन धर्म की रक्षा करनी है. यह धर्म सबको अपना मानता है. यह किसी का धर्मांतरण नहीं करता, क्योंकि यह जानता है कि सच्चे दिल से किसी से प्रार्थना करना व्यक्ति को अपने भगवान तक ले जाता है.’

भागवत ने कहा, ‘प्रसिद्धि का सपना देखने वाले जहां भी जाते हैं, सभी को बदलना चाहते हैं. ऐसे हमले होते रहेंगे. पहले सिकंदर जैसे लोग संपत्ति लूटने आए, फिर शक, हूण इस्लाम आए. अंग्रेज आए और उन्होंने कहा कि उनके साम्राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता है. दुनिया में पहला सूर्यास्त 15 अगस्त 1947 को हुआ.’

अमेरिका, चीन और रूस की आलोचना करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि वे राष्ट्र शक्तिशाली हो गए हैं और दुनिया पर शासन करना चाहते हैं, जबकि भारत दुनिया को धर्म और आध्यात्मिकता का भाव देने की मांग करता है.

उन्होंने कहा कि लोगों को यह विचार और भक्ति की याद दिलाने के लिए मंदिरों की जरूरत है और कहा, ‘मंदिर हमारे जीवन को शुद्ध और शांतिपूर्ण बनाते हैं.’