हिंदी में एमबीबीएस पढ़ाना अच्छा विचार है, लेकिन गुणवत्तापूर्ण किताबें कहां हैं: विशेषज्ञ

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल में घोषणा की थी कि नए शैक्षणिक सत्र से भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज में प्रथम वर्ष के छात्रों को एमबीबीएस का पाठ्यक्रम हिंदी में पढ़ाया जाएगा. हालांकि, चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि निर्णय की घोषणा करने से पहले पर्याप्त तैयारी नहीं की गई. 

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल में घोषणा की थी कि नए शैक्षणिक सत्र से भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज में प्रथम वर्ष के छात्रों को एमबीबीएस का पाठ्यक्रम हिंदी में पढ़ाया जाएगा. हालांकि, चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि निर्णय की घोषणा करने से पहले पर्याप्त तैयारी नहीं की गई.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

भोपाल: मध्य प्रदेश सरकार ने 2022-23 शैक्षणिक सत्र में हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू करने का एक अहम निर्णय लिया है, लेकिन चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने इस विषय पर हिंदी में गुणवत्तापूर्ण किताबों की अनुपलब्धता के कारण सरकार के इस फैसले पर संशय व्यक्त किया है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल में घोषणा की थी कि नए शैक्षणिक सत्र से भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में पहले वर्ष के छात्रों को बैचलर ऑफ मेडिसिन एंड बैचलर ऑफ सर्जरी (एमबीबीएस) का पाठ्यक्रम हिंदी में पढ़ाया जाएगा.

वर्तमान में चिकित्सा शिक्षा केवल अंग्रेजी में दी जाती है.

इसके अलावा चौहान ने यह भी घोषणा की थी कि जुलाई 2022 से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत छह कॉलेजों में बीटेक डिग्री और पॉलीटेक्निक डिप्लोमा पाठ्यक्रम हिंदी भाषा में पढ़ाए जाएंगे.

सरकार के इस निर्णय में अहम भूमिका निभाने वाले प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य है, जिसने एमबीबीएस को हिंदी में पढ़ाने की पहल की है.

सारंग ने कहा, ‘हम देश में पहली बार हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू कर रहे हैं. कोई अन्य राज्य मातृभाषा में चिकित्सा शिक्षा नहीं दे रहा है. ऐसा करने वाला पहला राज्य मध्य प्रदेश है.’

सारंग ने कहा कि छात्रों के लिए विशेष रूप से शरीर विज्ञान, शरीर रचना विज्ञान और जैव रसायन में पाठ्य पुस्तकें हिंदी में तैयार की जा रही हैं और उन्हें जल्द ही उपलब्ध कराया जाएगा.

हालांकि, चिकित्सा बिरादरी के विशेषज्ञ ‘हिंदी में एमबीबीएस’ कदम को लेकर संशय में हैं.

इंदौर स्थित देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय (डीएवीवी) के पूर्व कुलपति और एक वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. भरत छापरवाल ने कहा, ‘मैं हिंदी में चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन क्या छात्रों के लिए इस विषय की ताजा एवं विकसित गुणवत्तापूर्ण पाठ्य-पुस्तकें हैं?’

उन्होंने कहा कि ‘लैंसेट’, ‘ब्रिटिश मेडिकल जर्नल’ और ‘न्यू इंग्लैंड मेडिकल जर्नल’ जैसी गुणवत्ता वाली मेडिकल पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध लेखों को पाठ्य-पुस्तकों में जगह पाने में कम से कम तीन से चार साल लग जाते हैं.

छापरवाल ने कहा कि वह हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन एक चिकित्सा पेशेवर के रूप में उन्हें लगता है कि निर्णय की घोषणा करने से पहले पर्याप्त तैयारी नहीं की गई.

उन्होंने कहा, ‘सरकारों को यह तय करने के बजाय कि किस भाषा में मेडिसिन और सर्जरी सिखाई जानी चाहिए, इस मुद्दे को पेशेवरों पर छोड़ देना चाहिए.’

उन्हें जब यह बताया गया कि जापान, रूस, चीन और फ्रांस जैसे कई देशों में मातृभाषा में चिकित्सा शिक्षा दी जा रही है, तो छापरवाल ने कहा कि इन देशों में उनकी मूल भाषा में पर्याप्त संख्या में गुणवत्तापूर्ण पाठ्य-पुस्तकें उपलब्ध हैं, जबकि भारत में ऐसा नहीं है.

उन्होंने कहा कि सरकार ने राज्य में एक हिंदी विश्वविद्यालय बनाया है और इसे हिंदी भाषा में एमबीबीएस की पाठ्य-पुस्तकें तैयार करने का काम सौंपा है, लेकिन इससे विद्यार्थियों, विशेषकर आदिवासियों को कोई फायदा नहीं होगा.

पूर्व कुलपति ने कहा, ‘अगर सरकार वास्तव में आदिवासियों के जीवन को बदलना चाहती है तो उसे शुरू से ही उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना शुरू कर देना चाहिए.’

यूक्रेन में ओडेसा स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस और एमएस सर्जरी के समकक्ष पाठ्यक्रम करने वाले भोपाल के एक वरिष्ठ डॉक्टर पुष्पेंद्र शर्मा ने कहा कि इस कदम को सफल बनाने के लिए बहुत सारे प्रयासों की आवश्यकता होगी.

उन्होंने कहा, ‘एमबीबीएस को हिंदी में पढ़ाना शुरू करना इतना आसान काम नहीं है. इस कदम के लिए बहुत सारी तैयारियों की आवश्यकता है, क्योंकि चिकित्सा शब्दावली का पहले हिंदी में अनुवाद करने की आवश्यकता है. यह एक कठिन काम है.’

यह पूछे जाने पर कि कुछ अन्य देश अपनी मूल भाषा में चिकित्सा शिक्षा कैसे प्रदान कर रहे हैं, शर्मा ने कहा कि वे सदियों से ऐसा कर रहे हैं और इसलिए उन्होंने अपने छात्रों के लिए एक समृद्ध पाठ्यक्रम सामग्री विकसित की है.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक पूर्व निदेशक ने नाम न छापने की शर्त पर बोलते हुए निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया, लेकिन इस पर विस्तार से कुछ नहीं कहा.

वहीं, वरिष्ठ भाजपा नेता और पेशे से डॉक्टर हितेश बाजपेयी ने इस कदम का समर्थन किया.

उन्होंने कहा, ‘हम छात्रों को मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. किसी भी भाषा के कारण किसी को पीछे नहीं रहना चाहिए.’

मंत्री सारंग ने कहा कि पहले वर्ष में पढ़ाए जाने वाले तीन विषयों की पाठ्य-पुस्तकें विशेषज्ञों के एक दल द्वारा तैयार की जा रही हैं.

सारंग ने कहा, ‘किताबें इस तरह तैयार की जा रही हैं, जिनमें तकनीकी शब्द रक्तचाप, रीढ़, हृदय, किडनी, लीवर या शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों और संबंधित शब्द हिंदी में लिखे जा रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हम पाठ्य-पुस्तकें इस तरह से तैयार कर रहे हैं कि हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद पीछे न रहें, क्योंकि वे अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी सभी तकनीकी और चिकित्सा शब्द सीख रहे होंगे.’

सारंग ने कहा कि प्रथम वर्ष में केवल तीन विषय – शरीर विज्ञान, शरीर रचना विज्ञान और जैव रसायन – मुख्य रूप से छात्रों को पढ़ाए जाते हैं.

मंत्री ने कहा, ‘पाठ्यक्रम शुरू होने से पहले छात्रों के लिए हिंदी में पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध कराने की हमारी तैयारी चल रही है.’

सितंबर 2021 में मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा था कि प्रदेश में एमबीबीएस छात्रों को प्रथम वर्ष के आधार पाठ्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक केबी हेडगेवार, भारतीय जनसंघ के नेता दीनदयाल उपाध्याय, स्वामी विवेकानंद और बीआर आंबेडकर के सिद्धांतों एवं जीवन दर्शन के बारे में पढ़ाया जाएगा.

सारंग ने कहा था कि इस पहल का उद्देश्य एमबीबीएस के छात्रों को सामाजिक और नैतिक मूल्य सिखाना है. हेडगेवार, उपाध्याय, स्वामी विवेकानंद संघ के हिंदुत्व पंथ का हिस्सा हैं, जो सत्तारूढ़ भाजपा के वैचारिक एवं राजनीतिक परामर्शदाता के रूप में माने जाते हैं.

मंत्री ने कहा था कि एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र आयुर्वेद के जनक महर्षि चरक और शल्य चिकित्सा के जनक के रूप में जाने जाने वाले भारत के महान चिकित्साशास्त्री ऋषि सुश्रुत के बारे में भी पढ़ेंगे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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