मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की पीठ में शामिल जस्टिस हेमंत गुप्ता के इस सवाल पर कर्नाटक के स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब प्रतिबंध को चुनौती देने वाली मुस्लिम छात्राओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि कोई भी स्कूल में कपड़े नहीं उतार रहा है.
नई दिल्ली: शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ छात्रों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने बीते बुधवार बहस के दौरान पूछा कि क्या पहनावे के अधिकार में ‘कपड़े उतारने का अधिकार’ भी शामिल होगा.
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक के स्कूल और कॉलेज में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली मुस्लिम छात्राओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत की दलीलें सुनने के बाद यह जानने की कोशिश की कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को किसी व्यक्ति के कपड़े पहनने की स्वतंत्रता तक बढ़ाया जा सकता है.
लाइव लॉ के मुताबिक, कामत ने कहा कि हिजाब पहनने वाली याचिकाकर्ता इस बात से सहमत है कि इस अधिकार पर ‘उचित प्रतिबंध’ होंगे और वे यूनिफॉर्म पहनने का विरोध नहीं कर रही है, बल्कि इसके साथ बस हिजाब पहनने की मांग कर रही है.
तब पीठ ने कहा, ‘आप इसे एक अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते. क्या पोशाक पहनने के अधिकार में कपड़े उतारने का भी अधिकार शामिल होगा?’
इस पर अधिवक्ता कामत ने कहा, ‘कोई भी स्कूल में कपड़े नहीं उतार रहा है.’
लाइव लॉ के मुताबिक कामत ने पूछा, ‘सवाल यह है कि इस अतिरिक्त पोशाक को पहनने पर क्या अनुच्छेद-19 के तहत प्रबंधित लगाया जा सकता है?’
सुप्रीम कोर्ट की पीठ में जस्टिस सुधांशु धूलिया भी शामिल थे.
लाइव लॉ की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि बीते पांच सितंबर को मामले की पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस गुप्ता ने पूछा था कि क्या लड़कियों को उनकी पसंद के अनुसार मिडी, मिनी, स्कर्ट में शैक्षणिक संस्थानों में जाने की अनुमति दी जा सकती है.
उसी सुनवाई में जब कामत ने तर्क दिया कि स्कूल में छात्रों को पगड़ी पहनने की परंपरा है, तब न्यायाधीश ने कहा था कि पगड़ी की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती है और दोनों एक जैसे नहीं हैं.
बीते बुधवार को सुनवाई के दौरान कामत ने यह स्थापित करने की कोशिश की कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का कर्नाटक सरकार का आदेश ‘नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता’ का एक उदाहरण था, क्योंकि यह सिर्फ एक समुदाय पर निशाना साध रहा था.
कामत ने कहा, ‘शक्तिशाली राज्य कह रहा है कि हिजाब अनुच्छेद 25 का हिस्सा नहीं है और स्कूल समितियों से निर्णय लेने के लिए कहता है. सरकारी आदेश सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है. यह एक समुदाय को निशाना बना रहा है.’
सुनवाई के दौरान जस्टिस गुप्ता ने कामत से कहा कि कर्नाटक सरकार के आदेश को उन्होंने गलत पढ़ा है, क्योंकि ‘एक ही समुदाय है, जो धार्मिक पोशाक में आना चाहता है.’
जब कामत ने कहा कि जो छात्र उस समुदाय से नहीं हैं, यानी गैर-मुस्लिम, वो भी रुद्राक्ष, नमम, क्रॉस आदि पहनते हैं, इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि वे ‘अलग’ चीजें हैं, क्योंकि वे पोशाक के अंदर पहने जाते हैं, दूसरों को दिखाई नहीं देते. इसमें अनुशासन का उल्लंघन नहीं है.
कामत ने कहा कि दृश्यता का सवाल प्रासंगिक नहीं है.
स्कूल और कॉलेज में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध के कर्नाटक हाईकोर्ट के 15 मार्च 2022 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसमें कहा गया था कि हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित किया जा सकता है.
हाईकोर्ट ने उडुपी के गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें कक्षा के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति मांगी गई थी.
15 मार्च 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट का हिजाब पर प्रतिबंध बरकरार रखा था
उल्लेखनीय है कि हिजाब को लेकर यह विवाद उडुपी जिले के एक सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में सबसे पहले तब शुरू हुआ था, जब छह लड़कियां दिसंबर 2021 में हिजाब पहनकर कक्षा में आईं और उन्हें कॉलेज में प्रवेश से रोक दिया गया. उनके हिजाब पहनने के जवाब में कॉलेज में हिंदू विद्यार्थी भगवा गमछा पहनकर आने लगे और धीरे-धीरे यह विवाद राज्य के अन्य हिस्सों में भी फैल गया, जिससे कई स्थानों पर शिक्षण संस्थानों में तनाव का माहौल पैदा हो गया था.
फरवरी 2022 में कर्नाटक सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों में समानता, अखंडता और लोक व्यवस्था को बाधित करने वाले कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. छात्राओं ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर करके कक्षा के भीतर हिजाब पहनने का अधिकार दिए जाने का अनुरोध किया था.
शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब को लेकर उपजे विवाद से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए 15 मार्च 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और उसने कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति देने संबंधी मुस्लिम छात्राओं की खाचिकाएं खारिज कर दी थीं और राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध बरकरार रखा था.
उसी दिन इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)