प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए 8 चीते शनिवार को मध्य प्रदेश के श्योपुर ज़िले के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़े थे, जिसके बाद दावे किए जा रहे हैं कि चीतों के आगमन से क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. हालांकि स्थानीय निवासियों की इस संबंध में कई आशंकाएं भी हैं.
श्योपुर: मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में चीतों के आने से उत्साह के बीच आसपास के इलाकों में रह रहे ग्रामीणों के मन में उनकी जमीन अधिग्रहण किए जाने और चीतों द्वारा उन पर हमला किए जाने समेत कई तरह की चिंताएं उठ रही हैं.
हालांकि, कुछ आशावादी ग्रामीण कह रहे हैं कि एक बार जब केएनपी चीतों के लिए प्रसिद्ध हो जाएगा, तो यहां पर्यटकों की संख्या में वृद्धि से उन्हें रोजगार मिलने की संभावना है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने 1952 में भारत में विलुप्त हुए चीतों की आबादी को पुनर्जीवित करने की परियोजना के तहत शनिवार सुबह नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को केएनपी में विशेष बाड़ों में छोड़ा.
श्योपुर-शिवपुरी रोड पर स्वलपाहार बेचने वाले विक्रेता राधेश्याम यादव का कहना है, ‘जब शेष चार-पांच गांवों को केएनपी के लिए विस्थापित कर दिया जाएगा तो मेरी छोटी सी भोजन की दुकान का क्या होगा? पिछले 15 वर्षों में केएनपी के लिए 25 गांवों को विस्थापित किए जाने के कारण हम पहले से ही वित्तीय रूप से प्रभावित हैं.’
राधेश्याम की दुकान केएनपी से 15 किलोमीटर दूर सेसईपुरा में है.
वहीं, किसान रामकुमार गुर्जर को आशंका है कि पास की बांध परियोजना के कारण सेसईपुरा के लोगों की आजीविका छिन जाएगी.
गुर्जर ने बताया, ‘गांवों को पहले इस उद्यान के लिए स्थानांतरित कर दिया गया था. अब पास के कटीला क्षेत्र में कूनो नदी पर बांध परियोजना बन रही है. यह परियोजना कम से कम 50 गांवों को प्रभावित करने जा रही है जो सेसईपुरा से जुड़े हुए हैं. उनके विस्थापन होने के बाद सेसाईपुरा में किराने, कपड़े और अन्य छोटे व्यवसाय वाली दुकानों का क्या होगा? तब हमारा गांव यहां अकेला रह जाएगा.’
चीतों से अधिक पर्यटकों के आने की उम्मीद के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने दावा किया कि होटल और रेस्तरां अमीर बाहरी लोगों द्वारा चलाए जाएंगे और स्थानीय निवासियों को केवल इनमें छोटी-मोटी नौकरियां मिलेंगी.
कपड़ों की दुकान चलाने वाले धर्मेंद्र कुमार ओझा ने आशंका जताई कि चीता गांवों में घुस सकते हैं.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, ओझा ने कहा, ‘इस परियोजना से स्थानीय लोगों को क्या मिलेगा? बाहरी लोग होटल और रेस्तरां के लिए जमीन खरीद रहे हैं. गांवों के स्थानांतरण से कारोबार पर और प्रतिकूल असर पड़ेगा. लेकिन, इस परियोजना से ढांचागत विकास होगा.’
राष्ट्रीय उद्यान की ओर जाने वाली सड़क पर चाय की दुकान चलाने वाले सूरत सिंह यादव का मानना है कि चीता को वापस लाने की इस परियोजना से क्षेत्र में रोजगार पैदा होगा.
उन्होंने कहा, ‘जमीन की कीमतें ऊपर जा रही हैं… ज़मीन के मालिक ऊंचे दामों की मांग कर रहे हैं. प्रधानमंत्री के कार्यक्रम से कारोबार में अस्थायी उछाल आया है लेकिन मैं भविष्य के बारे में कुछ नहीं कह सकता.’
एक अन्य दुकानदार केशव शर्मा ने दावा किया कि उनके व्यापार में तीन गुना वृद्धि हुई है.
उन्होंने कहा, ‘जमीन की कीमतें बढ़ गई हैं… पहले यहां कम संख्या में पर्यटक आया करते थे लेकिन अब निश्चित रूप से उनकी संख्या बढ़ेगी.’
राष्ट्रीय उद्यान के प्रवेश द्वार से 2 किमी दूर गांव टिकटोली निवासी मजदूर कैलाश भविष्य को लेकर परेशान हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं फायदों के बारे में नहीं जानता, लेकिन मुझे डर है कि चीता यहां आ गया है. हम कहां जाएंगे?’
मूल रूप से टिकटोली निवासी और वर्तमान में श्योपुर में रह रहे कमल ने कहा कि गांव में पानी की आपूर्ति, टेलीफोन नेटवर्क व नौकरियां नहीं हैं और आजीविका का एकमात्र स्रोत खेती है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)