एल्गार परिषद मामला: बॉम्बे हाईकोर्ट का डीयू प्रोफेसर हेनी बाबू को ज़मानत देने से इनकार

एल्गार परिषद मामले में आरोपी दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू पर एनआईए ने प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों व विचारधारा के प्रचार के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया है.

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हेनी बाबू. (फोटो साभार: ट्विटर)

एल्गार परिषद मामले में आरोपी दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू पर एनआईए ने प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों व विचारधारा के प्रचार के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया है.

हेनी बाबू एमटी. (फोटो साभार: ट्विटर)

मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद मामले में आरोपी एवं दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एसोसिएट प्रोफेसर हेनी बाबू की जमानत याचिका सोमवार को खारिज कर दी.

अदालत ने कहा कि उनके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं और वह प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के एक सक्रिय और प्रमुख सदस्य हैं.

जस्टिस एनएम जामदार और जस्टिस एनआर बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किए गए 54 वर्षीय हेनी बाबू एमटी द्वारा विशेष अदालत के उस आदेश के खिलाफ दायर अपील खारिज की जाती है, जिसने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था.

फैसले में कहा गया, ‘हम पाते हैं कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप प्रथमदृष्टया सही हैं.’

अदालत ने कहा, ‘राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) द्वारा सौंपे गए दस्तावेज और जांच के दौरान सामने आए तथ्य प्रदर्शित करते हैं कि अपीलकर्ता (बाबू) भाकपा (माओवादी) के एक सक्रिय और प्रमुख सदस्य हैं. हमने पाया कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि एक आतंकवादी कृत्य की साजिश करने, प्रयास करने और अंजाम देने को लेकर अपीलकर्ता पर एनआईए के आरोप प्रथमदृष्टया सही हैं.’

अदालत ने कहा, ‘अपीलकर्ता, अन्य आरोपियों के साथ मिलकर भाकपा (माओवादी) पार्टी की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न जन संगठनों के लिए काम कर रहे हैं. वे प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) पार्टी और प्रतिबंधित ‘रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट’ (आरडीएफ) की गतिविधियों में पूरी तरह से शामिल थे.’

मामले की जांच कर रहे एनआईए ने बाबू पर प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों एवं विचारधारा का प्रचार करने के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हेनी बाबू एमटी को इस मामले में 28 जुलाई, 2020 में गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं.

उन्होंने इस साल जून में विशेष एनआईए अदालत के एक आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने इस साल की शुरुआत में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी.

बाबू ने अपनी याचिका में कहा कि विशेष अदालत के इस आदेश में ‘त्रुटि’ है कि उनके खिलाफ प्रथमदृष्टया अपराध से जुड़ी सामग्री मिली है.

अधिवक्ता युग चौधरी और पयोशी रॉय के माध्यम से दायर अपनी याचिका में बाबू ने कहा था कि एनआईए ने मामले में सबूत के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का उल्लेख करने वाले एक पत्र का हवाला दिया था, लेकिन कथित पत्र उन पर अभियोग नहीं लगाता.

याचिका में कहा गया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वह भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करने के लिए गतिविधियों का समर्थन करते थे या ऐसा करने का इरादा रखते थे.

एनआईए ने बाबू की जमानत याचिका का विरोध किया है. एनआईए ने कहा कि बाबू नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे और चुनी हुई सरकार को सत्ता से हटाना चाहते थे.

एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अनिल सिंह ने अदालत से कहा था कि बाबू प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) के सदस्य थे और उनके लैपटॉप से अभियोजन को मिली सामग्री यह दर्शाती है कि वह इस मामले के अन्य आरोपियों के लगातार संपर्क में थे.

केंद्रीय एजेंसी के वकील ने कहा कि बाबू नक्सलवाद का प्रचार एवं विस्तार करना चाहते थे और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के षड्यंत्र में शामिल थे. सिंह ने अदालत से कहा कि वह और अन्य आरोपी सशस्त्र संघर्ष के जरिये ‘जनता सरकार’ बनाना चाहते थे.

एएसजी ने दलील दी कि बाबू प्रतिबंधित संगठन के अन्य सदस्यों को फोन टैपिंग से बचने का प्रशिक्षण भी देते थे.

मालूम हो कि यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद’ सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि इसके चलते कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी.

हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे. पुणे पुलिस ने दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था.

मामले में अब तक 16 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इस मामले के एक आरोपी झारखंड के 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता  फादर स्टेन स्वामी का उचित इलाज करने में जेल अधिकारियों की देरी के कारण उनकी पांच जुलाई 2021 को मृत्यु हो गई थी.

मामले के 16 आरोपियों में से दो आरोपी वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और तेलुगु कवि वरवरा राव फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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