मिज़ोरम के सत्तारूढ़ दल मिज़ो नेशनल फ्रंट से राज्यसभा सांसद के. वनलालवेना ने बताया कि फरवरी 2021 में म्यांमार में तख़्तापलट होने के बाद से राज्य सरकार ने लगभग तीस हज़ार शरणार्थियों को पंजीकृत किया है. हालांकि कई शरणार्थी अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ रह रहे हैं, इसलिए उनका पंजीकरण नहीं हुआ है.
नई दिल्ली: सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के राज्यसभा सदस्य के. वनलालवेना के अनुसार, फरवरी 2021 में पड़ोसी देश म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद से वहां के 40,000 से अधिक शरणार्थियों ने मिजोरम में शरण ली है.
उन्होंने कहा कि शरणार्थियों को किसी भी तरह का काम या रोजगार करने की मनाही है, हालांकि राज्य सरकार उन्हें शिविरों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया करा रही है.
सांसद वनलालवेना ने द हिंदू के बताया कि मुख्यमंत्री जोरमथांगा दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 14 सितंबर को मिले और म्यांमार में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया.
उन्होंने कहा कि भारत अपनी तटस्थता के कारण शरणार्थी संकट को हल करने की स्थिति में है.
वनलालवेना ने कहा, ‘भारत न तो (म्यांमार) सेना के पक्ष में है और न ही शरणार्थियों के. इसलिए मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से इस मामले पर म्यांमार के साथ चर्चा करने का अनुरोध किया.’
गौरतलब है कि एक फरवरी 2021 को म्यांमार सेना द्वारा तख्तापलट करके देश को अपने कब्जे में लेने के बाद से म्यांमार के हजारों शरणार्थी, जो चिन जातीय समूह से ताल्लुक रखते हैं और जिनमें मिजो समुदाय से करीबी संबंध रखने वाले लाई, टिडिम-ज़ोमी, लुसी और हुआलंगो शामिल हैं, मिजोरम चले आए.
भारत और म्यांमार 1,643 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं और दोनों तरफ के लोगों के पारिवारिक संबंध हैं.
सांसद ने कहा कि राज्य सरकार ने लगभग 30,000 शरणार्थियों को पंजीकृत किया है और करीब 60 शिविर ऐसे हैं जहां शरणार्थी रह रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘कई शरणार्थी हैं जो अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ रह रहे हैं, इसलिए उन्हें आधिकारिक रूप से पंजीकृत नहीं किया गया है, लेकिन अब तक कुल संख्या 40,000 से अधिक पहुंच गई है. सटीक संख्या बताना मुश्किल है.’
हालांकि गृह मंत्रालय ने पिछले साल एक पत्र में नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिवों को म्यांमार से भारत में अवैध प्रवेश करने वालों की जांच करके कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने को कहा था, लेकिन एक साल से अधिक बीत जाने के बाद भी मिजोरम में बसा कोई भी शरणार्थी निर्वासित नहीं किया गया है.
गृह मंत्रालय ने कहा था कि राज्य सरकारों के पास किसी भी विदेशी को ‘शरणार्थी’ का दर्जा देने की कोई शक्ति नहीं है और भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है.
जोरमथांगा ने 22 सितंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. उनके कार्यालय द्वारा किए एक ट्वीट में कहा गया कि दोनों ने मिजोरम में म्यांमार के शरणार्थियों की स्थिति सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की.
Chief Minister @ZoramthangaCM met with Union Home Minister @AmitShah this evening at the latter’s office. They discussed various important issues including the state of Myanmar refugees in Mizoram. pic.twitter.com/FdrylzVG8M
— CM Office Mizoram (@CMOMizoram) September 22, 2022
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने पहले ही आदेश जारी कर दिया है कि शरणार्थी यहां नहीं बस सकते हैं और उन्हें किसी भी तरह का काम करने से रोकने के आदेश भी जारी किए गए हैं. शरणार्थियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने शिविरों को नहीं छोड़ेंगे. हालांकि, अगर सरकार काम की व्यवस्था कर सके तो अच्छा होगा. केंद्र सरकार ने मिजोरम को फंड जारी किया है.’
गौरतलब है कि भारत और म्यांमार के बीच एक संधि है जिसके तहत पहाड़ी जनजातियों का प्रत्येक सदस्य, जो भारत का नागरिक हो या म्यांमार का और जो भारत म्यांमार सीमा से किसी भी तरफ के 16 किलोमीटर दायरे में रहता है, सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी बॉर्डर पास (एक साल की वैधता के साथ)के साथ सीमा पार कर सकता है और प्रति यात्रा दो सप्ताह तक दूसरे देश में रह सकता है.