सीयूईटी परिणाम के बाद कई छात्रों द्वारा निजी संस्थान छोड़कर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने पर कॉलेज/विश्वविद्यालयों द्वारा पूरी फीस वापस न करने की शिकायतों के मद्देनज़र यूजीसी ने चेताया है कि उसके शुल्क वापसी और मूल प्रमाण-पत्र वापस करने संबंधी नियमों के उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी.
नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने मंगलवार को विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों को इसके द्वारा दो अगस्त को अधिसूचित शुल्क वापसी और मूल प्रमाण-पत्रों को वापस करने संबंधी नीतियों का पालन न होने की स्थिति में दंडात्मक कार्रवाई के लिए चेताया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, आयोग ने कहा है कि इसकी नीतियों का पालन न किए जाने की स्थिति में अनुदान रोकना, संबद्धता वापस लेना, सामान्य और विशेष कार्यक्रमों के लिए अयोग्य घोषित किया जाना शामिल है.
द हिंदू के अनुसार, आयोग की ओर से यह चेतावनी ऐसे समय में आई है जब कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) के परिणामों की घोषणा में देरी से इस साल प्रवेश प्रक्रिया रुक गई, जिससे कई चिंतित छात्र निजी संस्थानों में प्रवेश लेने के लिए मजबूर हो गए.
सीयूईटी का आयोजन पहली बार राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्नातक और स्नातकोत्तर प्रवेश के लिए किया गया था. सीयूईटी-यूजी के नतीजे 16 सितंबर को और सीयूईटी-पीजी के नतीजे 26 सितंबर को घोषित होने के बाद कुछ छात्र जो अब केंद्रीय विश्वविद्यालयों में जाना चाहते हैं, उनसे, यूजीसी के पिछले आदेश का उल्लंघन करते हुए, निजी संस्थानों द्वारा वित्तीय पेनल्टी लेने की बात सामने आई थी.
अख़बार के अनुसार, यूजीसी के सचिव रजनीश जैन ने सभी कुलपतियों और प्रिंसिपल को लिखे पत्र में चेतावनी दी है कि फीस वापस करने में विफलता का नतीजा यह हो सकता है कि वह संस्थान यूजीसी अधिनियम, 1956 की धारा 12 बी के तहत अनुदान प्राप्त करने की पात्रता खो दे और साथ ही उसे आवंटित अनुदान रोक दिया जाए.
ज्ञात हो कि यूजीसी ने अपनी अधिसूचना में संस्थानों से 31 अक्टूबर तक छात्रों के दाखिले रद्द होने या संस्थान छोड़ने की स्थिति में पूरी फीस वापस करने को कहा था.
यूजीसी ने यह भी स्पष्ट किया था कि पूरा शुल्क वापस किया जाना चाहिए और किसी भी तरह का ‘कैंसलेशन शुल्क’ नहीं लिया जाना चाहिए. इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि 31 दिसंबर, 2022 तक प्रवेश रद्द होने या आवेदन वापसी के मामले में भी प्रोसेसिंग फीस (जो 1,000 रुपये से अधिक न हो) की कटौती के बाद पूरी फीस वापस कर दी जानी चाहिए.
जैन ने यह भी कहा कि आयोग को इस मुद्दे पर मिली शिकायतों, अदालती मामलों और आरटीआई आवेदनों के कारण ऐसी चेतावनी जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा.