ईडब्ल्यूएस: भाजपा, कांग्रेस में श्रेय लेने की होड़, स्टालिन बोले- सामाजिक न्याय के संघर्ष को झटका

सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को 3:2 के बहुमत के फैसले से बरकरार रखा और कहा कि यह कोटा संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.

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सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने संविधान के 103 वें संशोधन अधिनियम, 2019 की वैधता को बरकरार रखा. (फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को 3:2 के बहुमत के फैसले से बरकरार रखा और कहा कि यह कोटा संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.

सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने संविधान के 103वें संशोधन अधिनियम, 2019 की वैधता को बरकरार रखा. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली/चेन्नई/रायपुर: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरकरार रखे जाने पर सोमवार को भाजपा और कांग्रेस ने इससे जुड़े संविधान संशोधन का श्रेय लेने की कोशिश की. वहीं, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने शीर्ष न्यायालय के फैसले की आलोचना की और इसे लंबे समय तक चले ‘सामाजिक न्याय के संघर्ष को झटका’ करार दिया.

उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को 3:2 के बहुमत के फैसले से बरकरार रखा. न्यायालय ने कहा कि यह कोटा संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शीर्ष न्यायालय के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि यह देश के गरीबों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के ‘मिशन’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत है.

भाजपा की वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की मांग की.

कांग्रेस ने भी न्यायालय के फैसले का स्वागत किया, लेकिन कहा कि इस कोटे का प्रावधान करने वाला संविधान संशोधन मनमोहन सिंह सरकार द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया का नतीजा था.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि उनकी पार्टी शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत करती है. उन्होंने कहा, ‘यह संविधान संशोधन 2005-06 में मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा सिन्हा आयोग का गठन करके शुरू की गई प्रक्रिया का नतीजा है. आयोग ने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट दी थी.’

उन्होंने कहा, ‘इसके बाद, व्यापक रूप से परामर्श किया गया और विधेयक 2014 तक तैयार कर लिया गया था. लेकिन मोदी सरकार को यह विधेयक पारित कराने में पांच साल लगा.’

रमेश ने कहा, ‘यह जिक्र करना भी जरूरी है कि सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना को 2012 तक पूरा कर लिया गया था, जब मैं ग्रामीण विकास मंत्री था. मोदी सरकार को स्पष्ट करना होगा कि नई जातिगत जनगणना को लेकर उसका क्या रुख है. कांग्रेस इसका समर्थन करती है और इसकी मांग भी करती है.’

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि शीर्ष न्यायालय का फैसला गरीबों को न्याय दिलाने में मदद करेगा.

गहलोत ने वडोदरा में संवाददाताओं से कहा, ‘समितियां बनाई गईं और आखिरकार 103वां संविधान संशोधन किया गया. मैं उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं. हमारी यह भावना होनी चाहिए कि गरीब व्यक्ति चाहे किसी भी समुदाय का हो, उसे न्याय मिले.’

संसद ने भाजपा सरकार द्वारा लाए गए संविधान संशोधन विधेयक को 2019 में पारित किया था.

हालांकि, हर किसी ने न्यायालय के फैसले का स्वागत नहीं किया. कांग्रेस प्रवक्ता उदित राज ने कहा कि वह इस कदम का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन संविधान के नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा लगाई गई 50 प्रतिशत की सीमा इस फैसले के साथ टूट गई है.

उदित राज ने कहा, ‘30 वर्षों से, जब कभी हम इस न्यायालय में गये, उच्चतम न्यायालय ने सदा ही यह कहा कि यह लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए और हमारे मामले खारिज कर दिए गए. मैं शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीशों की मानसिकता का मुद्दा उठा रहा हूं, ये लोग जातिवादी मानसिकता के हैं.’

साथ ही, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी टिप्पणी व्यक्तिगत क्षमता से है और इसका कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं है.

भाजपा ने उनकी आलोचना करते हुए कहा कि उनके बयान ने विपक्षी दल की ‘गरीब विरोधी’ मानसिकता को बेनकाब दिया है.

वहीं, तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं सांसद सौगत रॉय ने न्यायालय के फैसले की सराहना करते हुए इसे ऐतिहासिक बताया. हालांकि, पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सुखेंदु शेखर रे ने इस पर टिप्पणी नहीं की.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राजद ने जाति जनगणना का आह्वान किया। इसके सांसद मनोज झा ने कहा, ‘यह एक विभाजित फैसला है. यह व्याख्या और हस्तक्षेप के कई रास्ते और संभावनाएं खोलता है … अब सीमा चली गई है और इसलिए, यह (आरक्षण) जनसंख्या में हिस्सेदारी के अनुपात में होना चाहिए. सरकारें सामाजिक न्याय को गहरा और व्यापक बनाने के लिए होती हैं. इस फैसले ने वह संभावना खोल दी है.’

फैसले का समर्थन करते हुए जदयू के वरिष्ठ नेता और बिहार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने पटना में कहा, ‘बिहार ईडब्ल्यूएस कोटा (1978 में) शुरू करने वाले अग्रणी राज्यों में से एक था. सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नीतियों के अनुरूप है. हम आरक्षण के लिए एक आर्थिक मानदंड के पक्ष में हैं.’

जद (यू) ने जनसंख्या आधारित आरक्षण के मुद्दे पर सहयोगी राजद के साथ हाथ मिलाया, पार्टी नेता केसी त्यागी ने कहा, ‘हम राजद के प्रस्ताव का विरोध नहीं करते हैं. हमने बिहार में जातिगत जनगणना पहले ही शुरू कर दी है और यह पूरे देश में होनी चाहिए.’

न्यायालय का निर्णय सामाजिक न्याय के संघर्ष के लिए झटका: एमके स्टालिन

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सोमवार को कहा कि ईडब्ल्यूएस से संबंधित लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण पर उच्चतम न्यायालय का फैसला सदियों पुराने सामाजिक न्याय के संघर्ष के लिए एक झटका है.

उन्होंने कहा, हालांकि फैसले के गहन विश्लेषण के बाद कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ली जाएगी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण के खिलाफ संघर्ष जारी रखने के लिए अगले कदम पर फैसला लिया जाएगा.

उच्चतम न्यायालय के सोमवार के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु में राजनीतिक पार्टियों और समान विचारधारा वाले सभी संगठनों को सामाजिक न्याय की रक्षा एवं देश भर में इसे सुनिश्चित करने के लिए एकसाथ आना चाहिए. स्टालिन द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के अध्यक्ष भी हैं.

उन्होंने कहा, ‘सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए पहला संविधान संशोधन कराने वाली तमिलनाडु की इस धरती से मैं समान विचारधारा वाले सभी संगठनों से सामाजिक न्याय की आवाज को पूरे देश में प्रतिध्वनित करने के लिए एकजुट होने का अनुरोध करता हूं.’

केंद्र सरकार द्वारा लाई गई आरक्षण प्रणाली के खिलाफ द्रमुक के कानूनी संघर्ष को याद करते हुए स्टालिन ने कहा, ‘इस मामले में आज के फैसले को सामाजिक न्याय को लेकर सदियों से चले आ रहे संघर्ष के लिए झटका माना जाना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘हालांकि फैसले के गहन विश्लेषण के बाद कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ली जाएगी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण के खिलाफ संघर्ष जारी रखने के लिए अगले कदम पर फैसला लिया जाएगा.’

विदुथलाई चिरूथैगल काची (वीसीके) प्रमुख थोल तिरूमावलन ने कहा कि शीर्ष न्यायालय का फैसला सभी जातियों के गरीबों के लिए नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘यह अगड़ी जातियों के गरीबों के लिए है. इस मामले में, यह आर्थिक मानदंड के आधार पर लिया गया फैसला कैसे है?’

उन्होंने दावा किया, ‘फैसला सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है. यह घोर अन्याय है.’ उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी फैसले को चुनौती देते हुए अपील करेगी.

एससी, एसटी को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए: भूपेश बघेल

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोमवार ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण की वैधता को बरकरार रखने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और कहा कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अनुसूचित जाति (एससी) को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए.

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘बहुत अच्छी बात है, हम स्वागत करते हैं. हम तो चाह ही रहे हैं. संविधान में जो व्यवस्था है अनुसूचित जाति, जनजाति को उनकी जनसंख्या के आधार पर उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए.’

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पिछले महीने राज्य सरकार के वर्ष 2012 में जारी उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण को 58 प्रतिशत तक बढ़ाया गया था.

न्यायालय ने कहा था कि 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है. इस फैसले के बाद आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है.

राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षण लाभों के बारे में पूछे जाने पर, बघेल ने कहा, ‘आदिवासियों के आरक्षण में 20 प्रतिशत की गिरावट का यह पाप भाजपा के कारण हुआ और अब हम इसे ठीक करेंगे.’

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘आदिवासी समाज के लोग आए थे. मैने स्पष्ट कहा है कि आपको संविधान में जो सुविधा मिली है वह मिल के रहेगी. इसे कोई नहीं रोक सकता.’

ईडब्ल्यूएस आरक्षण की अनुमति दी गई पर एससी,एसटी, ओबीसी को बाहर रखना अन्याय बढ़ाएगा: अदालत

उच्चतम न्यायालय ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण पर अपने अल्पमत वाले फैसले में सोमवार को कहा कि शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस कोटा अनुमति देने योग्य है, लेकिन पहले से आरक्षण का फायदे उठा रहे अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को इससे बाहर रखना नया अन्याय बढ़ाएगा.

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इस संविधान संशोधन को बरकरार रखा, जबकि जस्टिस एस रवींद्र भट ने प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित ने अल्पमत वाले अपने फैसले में इससे असहमति जताई.

जस्टिस भट ने अपना और प्रधान न्यायाधीश ललित के लिए 100 पृष्ठों में फैसला लिखा. जस्टिस भट ने कहा कि सामाजिक रूप से वंचित वर्गों और जातियों को उनके आवंटित आरक्षण कोटा के अंदर रख कर पूरी तरह से इसके दायरे से बाहर रखा गया है. यह उपबंध पूरी तरह से मनमाने तरीके से संचालित होता है.

उन्होंने कहा कि संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त पिछड़े वर्गों को इसके दायरे से पूरी तरह से बाहर रखना और एससी-एसटी समुदायों को बाहर रखना कुछ और नहीं, बल्कि भेदभाव है जो समता के सिद्धांत को कमजोर और नष्ट करता है.

जस्टिस भट ने कहा, ‘आरक्षण के लिए आर्थिक आधार पेश करना – एक नए मानदंड के तौर पर, अनुमति देने योग्य है. फिर भी, एससी,एसटी और ओबीसी सहित सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से वंचित वर्गों को पूर्व से प्राप्त लाभ के आधार पर इसके दायरे से बाहर रखना नए अन्याय को बढ़ाएगा.’

प्रधान न्यायाधीश ने भी उनके विचारों से सहमति जताई. न्यायालय ने करीब 40 याचिकाओं पर सुनवाई की और 2019 में ‘जनहित अभियान’ द्वारा दायर की गई एक अग्रणी याचिका सहित ज्यादातर में संविधान (103वां) संशोधन अधिनियम 2019 को चुनौती दी गई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)