तमिलनाडु: दस महीनों से न्याय के लिए संघर्ष कर रही हैं यौन उत्पीड़न पीड़ित दलित प्रोफेसर

ऊटी गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज की एक प्रोफेसर ने फरवरी में एक अन्य शिक्षक पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. कॉलेज की आंतरिक समिति ने शिक्षक को दोषी पाया. हालांकि महिला का आरोप है कि प्रिंसिपल ने कार्रवाई के नाम पर लीपापोती की क्योंकि आरोपी उनका सजातीय है. 

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Illustration: Pariplab Chakraborty

ऊटी गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज की एक प्रोफेसर ने फरवरी में एक अन्य शिक्षक पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. कॉलेज की आंतरिक समिति ने शिक्षक को दोषी पाया. हालांकि महिला का आरोप है कि प्रिंसिपल ने कार्रवाई के नाम पर लीपापोती की क्योंकि आरोपी उनका सजातीय है.

इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती

नई दिल्ली: जब तमिलनाडु के ऊटी में गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज की एक महिला ने फरवरी में एक प्रोफेसर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, तो उन्हें शायद ही पता हो कि यह कभी न खत्म होने वाले संघर्ष की शुरुआत थी.

द न्यूज मिनट के मुताबिक, दलित समुदाय की यह महिला भी इसी कॉलेज में प्रोफेसर हैं और बीते 10 महीनों से न्याय के लिए संघर्ष कर रही हैं. आरोप है कि अधिकारी उन्हें गलत साबित करने के लिए आरोपी प्रोफेसर के साथ मिले हुए हैं.

कॉलेज में यौन उत्पीड़न पर आंतरिक समिति (आईसी) द्वारा आरोपी प्रोफेसर को यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराए जाने के बावजूद अभी तक उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है. इसके बजाय महिला का ऊटी से 150 किलोमीटर दूर दूसरे कॉलेज में तबादला कर दिया गया.

इस बीच आरोपी के समान जाति से आने वाले अन्य प्रोफेसरों ने महिला के खिलाफ प्रदर्शन किया और उन पर कॉलेज की बदनामी करने का आरोप लगाया.

कॉलेज में स्टाफ के अन्य सदस्यों के प्रतिरोध के बावजूद महिला अपने आरोपों पर कायम हैं और उनका कहना है कि उनका यौन शोषण किया गया और अधिकारियों से उत्पीड़न करने वाले की शिकायत करने के बाद उनके साथ जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया. उन्होंने जोड़ा कि उनके तबादले के आदेश पर रोक लगवाने के लिए उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय का रुख करना पड़ा.

मामले की शुरुआत 23 फरवरी को हुई. आरोप है कि तब कॉलेज में एक निरीक्षण के दौरान तमिल विभाग के धर्मलिंगम ने प्रोफेसर अमला (परिवर्तित नाम) से अश्लील बातें कहीं और उनकी सेक्स लाइफ पर टिप्पणी की. आरोपों को बाद में कॉलेज की आंतरिक समिति ने सही ठहराया.

उन्होंने यह टिप्पणी कॉलेज के प्रिंसिपल ईश्वरमूर्ति की उपस्थिति में की थी. आरोपी धर्मलिंगम और ईश्वरमूर्ति दोनों बडगा समुदाय से संबंधित हैं, जो स्थानीय रूप से एक प्रमुख जाति है और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आती है.

अमला ने घटना के एक दिन बाद 24 फरवरी को ईश्वरमूर्ति से इस बारे में बात की और ईश्वरमूर्ति ने स्वीकार किया कि धर्मालिंगम ने जो किया वह गलत था और वह उनके द्वारा दर्ज यौन उत्पीड़न की शिकायत को लेकर आंतरिक समिति को सूचित करेंगे. प्रिंसिपल ने अमला को यह भी बताया कि उन्हें धर्मलिंगम से एक माफीनामा मिला है और छुट्टी से लौटने के बाद वो इसकी एक प्रति आंतरिक समिति को और एक उन्हें भेज देंगे.

लेकिन 28 फरवरी को समिति प्रमुख एएल मैरी ने अमला को बताया कि ऐसी ईश्वरमूर्ति ने ऐसी कोई भी अधिसूचना या माफी पत्र उन्हें नहीं भेजे. जब अमला ने जब इस बारे में ईश्वरमूर्ति से पूछा तो उन्होंने कहा कि मौखिक शिकायतों को आंतरिक समिति को नहीं भेजा जा सकता है और उनसे लिखित शिकायत मांगी.

उन्होंने उन्हें मिले कथित माफी पत्र को देने से भी इनकार कर दिया. इस पत्र को अमला अपनी शिकायत के साथ संलग्न करना चाहती थीं.

द न्यूज मिनट के मुताबिक, 2 मार्च को अमला ने अपनी लिखित शिकायत दर्ज कराई, जिसे बाद में आईसी को भेज दिया गया. समिति ने 10 मार्च को धर्मलिंगम के खिलाफ अमला द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच की. आईसी ने अपनी रिपोर्ट में 11 मार्च को धर्मलिंगम को अमला द्वारा लगाए गए आरोपों के लिए दोषी पाया. इसके अलावा अन्य प्रोफेसरों और छात्रों से उनके खिलाफ मिलीं अन्य शिकायतों को भी सूचीबद्ध किया.

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के अनुसार, यौन उत्पीड़न आंतरिक समिति को यौन उत्पीड़न या दुराचार की शिकायतों को सुनना और उनकी जांच करनी चाहिए. इन समितियों के पास आरोपों के दोषी साबित होने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए संस्थागत प्रशासन से सिफारिश करने की शक्तियां हैं.

सेवा नियमों के अनुसार, आंतरिक समिति प्रशासन को समिति द्वारा पूछताछ के 60 दिनों के भीतर उत्पीड़नकर्ता के वेतन से पर्याप्त रकम काटने के लिए सुझाव दे सकती है. हालांकि, इस मामले में धर्मलिंगम के खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

आरोपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने पर अमला ने 15 अप्रैल को ऊटी टाउन सेंट्रल पुलिस स्टेशन और कॉलेज शिक्षा निदेशक (डीसीई) के पास भी धर्मलिंगम के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. डीसीई ने उसी दिन धर्मलिंगम को निलंबित कर दिया.

दूसरी ओर, पुलिस ने धर्मलिंगम पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354ए (1)(iv) के तहत मामला दर्ज किया है, जो यौन टिप्पणी करने और यौन उत्पीड़न के अपराध से संबंधित है. साथ ही, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) के तहत भी मामला दर्ज किया गया है.

इसके बाद जल्द ही ईश्वरमूर्ति ने धर्मलिंगम के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की एक और जांच का आदेश दिया, जिसे कॉलेजिएट शिक्षा के संयुक्त क्षेत्रीय निदेशालय (आरजेडी-सीई), कोयम्बटूर द्वारा किया जाएगा.

द न्यूज़ मिनट के मुताबिक, अमला और उनके वकील ने कॉलेज आंतरिक समिति द्वारा पहले ही धर्मलिंगम को दोषी करार दिए जाने के बाद एक और जांच किए जाने की आवश्यकता पर सवाल उठाया. अमला के वकील राजगुरू ने कहा, ‘एक ही आरोप के लिए एक नई समिति गठित करने के लिए आंतरिक समिति की रिपोर्ट को दरकिनार करने का अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘अगर उत्पीड़क को आंतरिक समिति की रिपोर्ट या कार्रवाई को चुनौती देनी है, तो उसे केवल अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए.’

ताजा जांच के तहत अमला और धर्मलिंगम को 27 और 28 जुलाई को एक जांच समिति के सामने पेश होने के लिए नोटिस दिया गया था. आरजेडी-सीई ने दो दिनों की पूछताछ के बाद आरोपी को क्लीन चिट देते हुए कहा कि ‘धर्मलिंगम के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए कोई गवाह नहीं था.’

ताजा पूछताछ के बाद अमला को कांगेयम के गवर्नमेंट आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज में स्थानांतरित कर दिया गया है, जो ऊटी में उनके घर से 150 किमी दूर है. दूसरी ओर, धर्मलिंगम का तबादला 90 किमी दूर सत्यमंगलम में किया गया है.

अपने तबादला आदेश का विरोध करते हुए अमला ने मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने 7 अक्टूबर को उनके तबादले पर रोक लगा दी थी.

उन्होंने आरोप लगाया है कि स्थगन आदेश के बावजूद ऊटी के कॉलेज में उनका उत्पीड़न बंद नहीं हुआ.

‘झूठी शिकायत के आरोप’

अमला के अनुसार, धर्मलिंगम ने कई मौकों पर उनसे पूछा कि वह बडगा समुदाय के व्यक्ति से शादी कैसे कर सकती हैं. उन्होंने कहा, ‘उन्होंने मुझसे एक बार पूछा था कि मैं, एक दलित महिला, उनके बडगा समुदाय के व्यक्ति से शादी कैसे कर सकती हूं.’

अमला का आरोप है कि धर्मलिंगम के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के बाद मामले को ‘निपटाने’ के लिए उन पर ‘समझौता’ करने का दबाव डाला गया था. अमला कहती हैं, ‘लेकिन मैंने इनकार कर दिया और इसलिए उन्होंने मामले को तोड़ने-मोड़ने की कोशिश की, यह दावा करते हुए कि मैंने उनके खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज की क्योंकि उन्होंने मुझे कर्ज देने से इनकार कर दिया था.’

इस बीच, तमिल समाचार चैनल न्यूज़जे द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में भी धर्मलिंगम का नाम सामने आया है. रिपोर्ट ऊटी के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में यौन उत्पीड़न के मामलों पर आधारित थी.

धर्मलिंगम के साथ एक गेस्ट लेक्चरर पर कॉलेज के दो पूर्व छात्रों द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था.

मीडिया रिपोर्ट के दो दिन बाद 29 सितंबर को कॉलेज के छात्रों ने छात्राओं और स्टाफ सदस्यों के साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. अमला को तबादला आदेश जारी होने के ठीक दो दिन बाद विरोध प्रदर्शन हुआ था.

विरोध करने वाले छात्रों को अमला के तबादले के आदेश के बारे में तभी पता चला जब उन्होंने अपना प्रदर्शन समाप्त कर दिया. हालांकि, अमला के विरोधी स्टाफ सदस्यों ने आरोप लगाया कि छात्रों को प्रदर्शन के लिए अमला ने उकसाया था, जिससे कॉलेज की बदनामी हुई.

इस बीच, मद्रास उच्च न्यायालय से तबादले पर रोक का आदेश पाने के बाद अमला ने 31 अक्टूबर को ऊटी के कॉलेज में फिर से जाना शुरू कर दिया. बताया गया कि बडगा समुदाय के शिक्षकों को यह रास नहीं आया और उन्होंने अमला के खिलाफ प्रदर्शन किया और उनसे ‘बिना शर्त माफी’ की मांग की.

उनके खिलाफ चार दिनों 4 नवंबर तक तक विरोध प्रदर्शन चला. उन्होंने उन  अमला पर मामले को आगे बढ़ाने के लिए छात्रों को कॉलेज प्रशासन के खिलाफ विरोध करने के लिए उकसाने का आरोप लगाया है.

धर्मलिंगम वर्तमान में सशर्त जमानत पर हैं, जबकि मामला अब भी विचाराधीन है.