हरियाणा सरकार एमबीबीएस में दाख़िले के वक़्त 40 लाख रुपये का बॉन्ड भरवा रही है. इसके तहत सरकारी मेडिकल कॉलेज से पढ़ने वाले हर छात्र को कम से कम सात साल सरकारी अस्पताल में सेवा देनी होगी. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसे 40 लाख रुपये सरकार को देने होंगे. एमबीबीएस छात्र इस फैसले के विरोध में हैं.
चंडीगढ़: हरियाणा में निजी अस्पतालों में ओपीडी (बाह्य रोगी विभाग) सेवाएं सोमवार को निलंबित रहीं, क्योंकि राज्य सरकार की बॉन्ड नीति का विरोध कर रहे एमबीबीएस छात्रों के समर्थन में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) से जुड़े डॉक्टरों ने कार्य का बहिष्कार किया.
हालांकि, राज्य के निजी अस्पतालों में आपातकालीन सेवाएं चालू रहीं.
रोहतक में पंडित भागवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (पीजीआईएमएस/पीजीआई रोहतक) और कुछ अन्य मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस के छात्र पिछले तीन सप्ताह से बॉन्ड नीति के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
पीजीआई रोहतक के रेजिडेंट डॉक्टरों ने भी आंदोलन कर रहे एमबीबीएस छात्रों को अपना समर्थन दिया है. बॉन्ड नीति को लेकर छात्रों और हरियाणा सरकार के अधिकारियों के बीच बातचीत के बावजूद गतिरोध जारी है.
आईएमए हरियाणा अध्यक्ष पुनीता हसीजा ने कहा कि राज्य में ओपीडी सेवाएं एक दिन के लिए निलंबित रहीं. उन्होंने कहा कि ऐसा विरोध कर रहे एमबीबीएस छात्रों के समर्थन में किया गया. उन्होंने कहा, ‘हम मेडिकल छात्रों के साथ एकजुट खड़े हैं.’
आईएमए (हरियाणा) ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को पत्र लिखकर बॉन्ड नीति को वापस लेने की मांग की है, जो मेडिकल छात्रों के हित में नहीं है.
एमबीबीएस छात्रों की मांगों में अनिवार्य सरकारी सेवा की अवधि को सात साल से घटाकर एक साल करना और बॉन्ड राशि 5 लाख रुपये से अधिक नहीं होना शामिल है.
बॉन्ड नीति के अनुसार, सरकारी संस्थानों में एमबीबीएस के छात्रों को प्रवेश के समय शुल्क सहित 40 लाख रुपये का त्रिपक्षीय (छात्र, बैंक और सरकार के बीच) बॉन्ड भरकर देना होगा. इस नीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि छात्र सरकारी अस्पतालों में सात साल तक सेवा दें.
यदि कोई छात्र पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद राज्य सरकार के स्वास्थ्य संस्थान में सेवा नहीं देने का विकल्प चुनता है तो उसे राशि का भुगतान करना होगा.
एमबीबीएस छात्रों के प्रतिनिधियों, रेजिडेंट डॉक्टरों और हरियाणा सरकार के अधिकारियों के बीच रविवार को हुई बैठक बेनतीजा रही.
हरियाणा सरकार की ओर से मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव वी. उमाशंकर, अतिरिक्त मुख्य सचिव (चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान) जी. अनुपमा और निदेशक (चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान) आदित्य दहिया उपस्थित थे.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शनिवार (26 नवंबर) को कहा था कि इस मुद्दे के जल्द ही हल होने की संभावना है. उन्होंने यह भी कहा था कि बॉन्ड नीति को लेकर मेडिकल छात्रों की शंकाओं को दूर किया जा रहा है.
खट्टर ने कहा था कि बॉन्ड नीति किसी डॉक्टर के परिवार या गरीब परिवार को परेशान करना नहीं है.
उन्होंने यह भी कहा था कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए सरकारी सेवा का चयन करने के लिए एमबीबीएस छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए यह बॉन्ड नीति लागू की गई है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा सरकार ने शुक्रवार (25 नवंबर) को एमबीबीएस छात्रों से हड़ताल वापस लेने की अपील की थी, क्योंकि इसकी वजह से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जबकि स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कहा कि उन्हें समस्या के जल्द समाधान की उम्मीद है.
विज ने कहा था कि उन्होंने इस संबंध में मुख्यमंत्री से बात की है. उन्होंने प्रदर्शनकारियों से कहा था कि विरोध प्रदर्शन करना उनका लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन उन्हें मरीजों के हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए.
पंडित भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, रोहतक के रेजिडेंट डॉक्टर बॉन्ड नीति के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे एमबीबीएस छात्रों के आंदोलन के समर्थन में बीते 24 नवंबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए थे.
मालूम हो कि इस महीने की शुरुआत में बॉन्ड पॉलिसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे रोहतक पीजीआई के एमबीबीएस छात्रों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था.
आरोप लगा था कि छात्रों को हटाने के लिए पुलिसकर्मियों ने वाटर कैनन का इस्तेमाल किया और फिर धरने पर बैठे छात्रों को हिरासत में लेकर पुलिस बसों की ओर घसीटना शुरू कर दिया था. यहां तक कि छात्राओं के साथ भी बुरा बर्ताव किया गया था. पुलिसकर्मियों ने छात्रों को घसीटा, खींचा और उठाकर बसों में डाल दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)