कोर्ट ने मुंबई मेट्रो को आरे कॉलोनी में पेड़ काटने की अर्ज़ी पर आगे बढ़ने की अनुमति दी

सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड को मुंबई की आरे कॉलोनी में अपनी कार शेड परियोजना में ‘ट्रेन रैंप’ के निर्माण के लिए 84 पेड़ों को काटने की अर्ज़ी संबंधित प्राधिकार के समक्ष रखने की अनुमति देते हुए कहा कि बड़े सार्वजनिक कोष वाली ऐसी परियोजनाओं में अदालत गंभीर अव्यवस्था से बेख़बर नहीं हो सकती.

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(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड को मुंबई की आरे कॉलोनी में अपनी कार शेड परियोजना में ‘ट्रेन रैंप’ के निर्माण के लिए 84 पेड़ों को काटने की अर्ज़ी संबंधित प्राधिकार के समक्ष रखने की अनुमति देते हुए कहा कि बड़े सार्वजनिक कोष वाली ऐसी परियोजनाओं में अदालत गंभीर अव्यवस्था से बेख़बर नहीं हो सकती.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एमएमआरसीएल) को मुंबई की आरे कॉलोनी में अपनी कार शेड परियोजना में ‘ट्रेन रैंप’ के निर्माण के लिए 84 पेड़ों को काटने की अर्जी संबंधित प्राधिकार के समक्ष रखने की अनुमति दे दी.

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वह ‘गंभीर अव्यवस्था से बेखबर’ नहीं रह सकती है, जो ‘बड़े सार्वजनिक कोष’ से जुड़ी परियोजनाओं के कारण हो सकती है.

न्यायालय का यह महत्वपूर्ण आदेश एमएमआरसीएल को अपने निर्माण कार्य को शुरू करने के लिए वृक्ष प्राधिकरण से 84 पेड़ों की कटाई के अनुरोध का मार्ग प्रशस्त करेगा. यह परियोजना पिछले कुछ समय से रुकी हुई है. मुंबई मेट्रो के अनुसार, परियोजना लागत 23,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 37,000 करोड़ रुपये हो गई है.

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा, ‘एमएमआरसीएल को 84 पेड़ काटने के लिए वृक्ष प्राधिकरण के समक्ष अपनी अर्जी को रखने की अनुमति दी जानी चाहिए. वृक्ष प्राधिकरण को स्वतंत्र रूप से इस पर फैसला करना है.’

पीठ ने मुंबई मेट्रो की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर गौर किया कि कार शेड में ट्रेन के लिए रैंप बनाने को लेकर 84 पेड़ों की कटाई की जरूरत है. पीठ ने इसके विरोध में दी गई दलीलों पर गौर करते हुए कहा कि बड़े सार्वजनिक कोष वाली ऐसी परियोजनाओं में अदालत गंभीर अव्यवस्था से बेखबर नहीं हो सकती है.

इसके साथ ही पीठ ने स्वत: संज्ञान ली गई एक याचिका समेत मेट्रो परियोजना से संबंधित याचिकाओं पर अगले साल फरवरी में अंतिम सुनवाई निर्धारित की. पीठ ने एमएमआरसीएल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर गौर किया कि परियोजना पर लगभग 95 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है.

प्रधान न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, ‘अदालत के लिए फैसले पर रोक लगाना संभव नहीं होगा. इसके अलावा, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पर्याप्त संख्या में पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं… जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है कि कार डिपो के काम के लिए 2,144 पेड़ काटे जा चुके हैं.’

आदेश में कहा गया, ‘अब रैंप के लिए पेड़ों की कटाई को लेकर वृक्ष प्राधिकरण को आवेदन करने की अनुमति मांगी गई है. रैंप के बिना किए गए काम का कोई फायदा नहीं होगा.’

सुनवाई की शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि एमएमआरसीएल की याचिका वृक्ष प्राधिकरण के पास लंबित हैं, जो यहां उच्चतम न्यायालय में याचिकाओं के लंबित होने के कारण आगे नहीं बढ़ रही है.

मेहता ने कहा, ‘परियोजना की मूल लागत 23,000 करोड़ रुपये थी. एमएमआरसीएल पहले ही 22,000 करोड़ रुपये का निवेश कर चुकी है. मुकदमेबाजी के कारण हुई देरी के कारण लागत बढ़कर 37,000 करोड़ रुपये हो गई है.’

इसके बाद उन्होंने मेट्रो रेल परियोजना के लाभों का जिक्र करते हुए कहा कि कम वाहनों के आवागमन के कारण कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी. मेहता ने कहा कि 13 लाख से अधिक यात्री मेट्रो से यात्रा कर सकते हैं और इससे यातायात में सुगमता, ईंधन की खपत और वायु प्रदूषण में कमी होगी. उन्होंने कहा कि हर दिन मुंबई में ट्रेन दुर्घटनाओं में नौ लोगों की मौत होती है.

उच्चतम न्यायालय मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एमएमआरसीएल) की इस दलील से सहमति नहीं हुआ कि मेट्रो नागरिकों को कारों का इस्तेमाल नहीं करने के लिए प्रोत्साहित करेगी. इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि यह सही ‘निष्कर्ष’ नहीं है और कारों को सिंगापुर की तरह महंगा बनाना इस संबंध में कारगर हो सकता है.

मीडिया की खबरों के अनुसार, सिंगापुर में कार खरीदना एक महंगा सौदा है और संभावित खरीदार को बोली लगाकर पात्रता प्रमाणपत्र (सीओई) प्राप्त करना होता है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘कारों की वृद्धि दर बढ़ती रहेगी. लोग कार रखेंगे. देखें कि दिल्ली में क्या हुआ… यह निष्कर्ष कि लोग कार चलाना बंद कर देंगे, ईंधन की खपत कम हो जाएगी. इससे मदद नहीं मिलेगी. कमी तब आती है जब आप सिंगापुर जैसा कुछ कदम उठाते हैं – कारों को काफी महंगा बनाकर.’

वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने एमएमआरसीएल की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि अगर पेड़ों की कटाई की अनुमति दी जाती है तो मामला खत्म हो जाएगा. प्रधान न्यायाधीश ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, ‘वे पहले ही कार डिपो के लिए 2,241 पेड़ काट चुके हैं.’

मालूम हो कि आरे कालोनी में पेड़ों की कटाई का हरित कार्यकर्ताओं और निवासियों ने विरोध किया था.

अक्टूबर 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरे कॉलोनी को जंगल घोषित करने से इनकार कर मुंबई नगर निगम के उस फैसले को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसमें मेट्रो कार शेड स्थापित करने के लिए ग्रीन जोन में 2,600 से अधिक पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई थी.

गौरतलब है कि आरे वन क्षेत्र मुंबई के उपनगर गोरेगांव में एक हरित क्षेत्र है. 1,800 एकड़ में फैले इस वन क्षेत्र को शहर का ‘ग्रीन लंग्स’ भी कहा जाता है. आरे वन में तेंदुओं के अलावा जीव-जंतुओं की करीब 300 प्रजातियां पाई जाती हैं. यह संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान से जुड़ा है.

पर्यावरण कार्यकर्ताओं के अनुसार, वन न केवल शहर के लोगों को ताजा हवा देते हैं, बल्कि यह वन्यजीवों के लिए प्रमुख प्राकृतिक वास है और इनमें से कुछ तो स्थानिक प्रजातियां हैं. इस वन में करीब पांच लाख पेड़ हैं और कई नदियां और झीलें यहां से गुजरती हैं.

महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने बीते 21 जुलाई को आरे कॉलोनी में मेट्रो-3 कार शेड के निर्माण पर लगी रोक हटा दी थी. बीते 30 जून को कार्यभार संभालने के तुरंत बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने राज्य प्रशासन को कांजुरमार्ग के बजाय आरे कॉलोनी में मेट्रो-थ्री कार शेड बनाने का निर्देश दिया था.

उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली पिछली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के आधार पर प्रस्तावित कार शेड साइट को आरे कॉलोनी से कांजुरमार्ग में स्थानांतरित कर दिया था, लेकिन यह मुद्दा कानूनी विवाद में उलझ गया था.

2019 में तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए आरे मेट्रो रेल कार शेड पर काम रोक दिया था.

आरे क्षेत्र में कार शेड स्थापित करने के फैसले को पर्यावरणविदों के विरोध का सामना करना पड़ा था, क्योंकि इस परियोजना में सैकड़ों पेड़ों को काटा जाना है. बाद में ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने परियोजना को कांजुरमार्ग में स्थानांतरित करने की घोषणा की थी.

तब फडणवीस ने कहा था, ​‘अगर कार शेड को कांजुरमार्ग में स्थानांतरित किया जाता है तो इससे और अधिक संख्या में पेड़ कटेंगे, परियोजना में देरी होगी और करोड़ों रुपये बर्बाद होंगे.​’

हालांकि, बाद में कांजुरमार्ग में कार शेड निर्माण करने की योजना अटक गई थी.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 14 दिसंबर 2020 को मुंबई उपनगरीय जिला कलेक्टर द्वारा कांजुरमार्ग क्षेत्र में मेट्रो कार शेड के निर्माण के लिए 102 एकड़ जमीन के आवंटन के आदेश पर रोक लगा दी थी. अदालत ने अधिकारियों को उक्त जमीन पर कोई भी निर्माण कार्य करने से भी रोक दिया था.

इससे पहले अक्टूबर 2019 में जब देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे, तब मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड ने कार शेड के निर्माण के लिए क्षेत्र में 2,000 से अधिक पेड़ों को काट दिया था. क्षेत्र में पेड़ों की कटाई को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा खारिज करने के बाद केवल 24 घंटों के भीतर पेड़ों को काट दिया गया था.

पेड़ों की कटाई के बाद पूरे शहर में स्थानीय आदिवासियों ने विरोध प्रदर्शन किए थे. तब पुलिस ने आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे पर्यावरण कार्यकर्ताओं समेत कम से कम 29 लोगों को गिरफ्तार किया था.

बता दें कि मेट्रो-3 कार शेड को 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने सबसे पहले आरे में बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे स्थानीय एनजीओ वनशक्ति ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. इसके बाद फडणवीस भी इसी प्रस्ताव पर आगे बढ़े, लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कार शेड के लिए आरे में पेड़ काटे जाने का कड़ा विरोध किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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