मोदी सरकार के नोटबंदी के निर्णय के ख़िलाफ़ कई याचिकाएं सुन रहे सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत सरकार के फैसले के गुण-दोष पर नहीं जाएगी, लेकिन वह हमेशा निर्णय लेने के तरीके पर गौर कर सकती है. सिर्फ इसलिए कि यह एक आर्थिक नीति है, इसका मतलब यह नहीं होगा कि अदालत चुपचाप बैठ जाएगी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को बुधवार को निर्देश दिया कि वे सरकार के 2016 में 1000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद करने के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड पेश करें.
जस्टिस एसए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, आरबीआई के वकील और याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनीं और अपना फैसला सुरक्षित रखा.
याचिकाकर्ताओं के वकीलों में वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम और श्याम दीवान शामिल थे. शीर्ष अदालत ने पक्षकारों को 10 दिसंबर तक लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया.
पीठ ने कहा, ‘मामले में दलीलें सुनी गईं. फैसला सुरक्षित रखा जाता है. भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के वकीलों को संबंधित रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया जाता है.’
इस पीठ में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं.
अटॉर्नी जनरल ने पीठ के समक्ष कहा कि वह सीलबंद लिफाफे में प्रासंगिक रिकॉर्ड जमा करेंगे.
शीर्ष अदालत आठ नवंबर 2016 को केंद्र द्वारा घोषित नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
इससे पहले अदालत ने मंगलवार को कहा था कि आर्थिक नीति से जुड़े मामलों में न्यायिक समीक्षा की सीमित संभावनाओं का मतलब यह नहीं है कि अदालत हाथ धरकर बैठ जाएगी. न्यायालय ने कहा था कि सरकार किस तरीके से निर्णय लेती है, इसकी हमेशा समीक्षा की जा सकती है.
इससे पहले एक हजार और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को ‘गंभीर रूप से दोषपूर्ण’ बताते हुए चिदंबरम ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है और यह केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है.
2016 की नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के सर्वोच्च न्यायालय के प्रयास का विरोध करते हुए सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है, जब ‘घड़ी की सुई को पीछे करके’ कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है.
मंगलवार को कोर्ट ने कहा था कि आर्थिक नीति के मामलों में न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे का मतलब यह नहीं है कि अदालत चुप बैठ जाएगी. सरकार किस तरह से निर्णय लेती है उस पर कभी भी गौर किया जा सकता है.
सुनवाई के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि ‘‘अस्थायी कठिनाइयां थीं और वे राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग भी हैं, लेकिन एक तंत्र था जिसके द्वारा उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान किया गया.
इस पर संविधान पीठ ने कहा था कि आर्थिक नीति के कानूनी अनुपालन की संवैधानिक अदालत द्वारा पड़ताल की जा सकती है.
पीठ ने कहा, ‘अदालत सरकार द्वारा लिए गए फैसले के गुण-दोष पर नहीं जाएगी. लेकिन वह हमेशा उस तरीके पर गौर कर सकती है जिस तरह से फैसला लिया गया था. महज इसलिए कि यह एक आर्थिक नीति है, इसका मतलब यह नहीं है कि अदालत चुपचाप बैठ जाएगी.’
पीठ ने जोड़ा था, ‘फैसले के गुण-दोष के संबंध में यह सरकार पर है कि वह अपनी बुद्धिमता से यह जाने कि लोगों के लिए सबसे अच्छा क्या है. लेकिन रिकॉर्ड में क्या फैसला लिया गया था, क्या सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया था, हम इस पर गौर कर सकते हैं.’
पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब आरबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने नोटबंदी की कवायद का बचाव करते हुए कहा कि निर्णय लेने में कोई प्रक्रियात्मक चूक नहीं हुई थी.
गुप्ता ने कहा, ‘जब तक असंवैधानिक नहीं पाया जाता है, तब तक आर्थिक नीति के उपाय में न्यायिक समीक्षा का समर्थन नहीं किया जा सकता. आर्थिक नीति बनाने में आर्थिक रूप से प्रासंगिक कारकों को विशेषज्ञों के लिए छोड़ दिया जाता है.’
याचिकाकर्ताओं की दलील कि नोटबंदी के दौरान नागरिकों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, इसका खंडन करते हुए आरबीआई के वकील ने कहा कि अर्थव्यवस्था में फिर से मुद्रा का प्रवाह बढ़ाने के लिए विस्तृत उपाय किए गए थे.
गुप्ता ने कहा, ‘अस्थायी कठिनाइयां थीं. अस्थायी कठिनाइयां भी राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग हैं. कुछ कठिनाइयों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता. लेकिन हमारे पास एक ऐसा तंत्र था जिससे समस्याएं हल हो जाती थीं.’
द हिंदू के मुताबिक, गुप्ता ने कहा, ‘मैं गर्व नहीं करना चाहता, लेकिन यह वास्तव में राष्ट्र निर्माण का एक हिस्सा था. इस बात पर काफी सहमति थी, सब एकमत थे कि हर कोई कुछ कठिनाई झेलने के लिए तैयार था… कुछ लोग इससे सहमत नहीं हैं, लेकिन यह ठीक है.’
एक बिंदु पर जस्टिस बीवी नागरत्ना ने गुप्ता को बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारों की याद दिलाई कि कैसे कई लोग अपने ही पैसे का उपयोग करने में सक्षम नहीं थे.
याचिकाकर्ताओं के वकील पी. चिदंबरम ने कहा, ‘प्रत्येक बैंक के पास केवल सीमित नकदी होती थी जिसे उसकी शाखाओं के बीच वितरित किया जाना था. ऐसे मामले थे जब 100 लोग अपने नोट बदल सकते थे और 101 वें व्यक्ति को फिर से वापस जाना पड़ा.’
इस पर गुप्ता ने कहा, ‘कुछ कठिनाइयों का अनुमान नहीं लगाया गया हो सकता है, लेकिन हमारे पास पहले दिन से सब कुछ संभाला हुआ था. एक दिन पैसा निकालना और अगले दिन फिर से डालना संभव नहीं है. यह ध्यान रखा गया था कि किसी का पैसा अनावश्यक रूप से बर्बाद न हो.’
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने नोटबंदी की सिफारिश करने वाले आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक में भाग लेने वाले सदस्यों के बारे में भी ब्योरा मांगा. जस्टिस बीआर गवई ने कहा, ‘कितने सदस्य उपस्थित थे? हमें बताने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए.’
गुप्ता ने जवाब दिया, ‘हमारे पास कोरम था, हमने स्पष्ट रूप से वह रुख अपनाया है.’
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई को आठ नवंबर, 2016 को आयोजित आरबीआई के निदेशक मंडल की बैठक के एजेंडा नोट और ब्योरे को सार्वजनिक करना चाहिए.
चिदंबरम ने कहा, ‘वे ब्योरा क्यों रोक रहे हैं? मुद्दे को तय करने के लिए ये दस्तावेज नितांत आवश्यक हैं. हमें पता होना चाहिए कि उनके पास क्या सामग्री थी, उन्होंने क्या विचार किया.’
चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई को यह दिखाने की जरूरत है कि उसने अपने फैसले की व्यापकता और आनुपातिकता पर विचार किया था.
केंद्र ने हाल में एक हलफनामे में शीर्ष अदालत को बताया था कि नोटबंदी की कवायद एक ‘सुविचारित’ निर्णय था और जाली मुद्रा, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था.
गौरतलब है कि 16 दिसंबर 2016 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार के फैसले की वैधता और अन्य संबंधित विषयों को आधिकारिक निर्णय के लिए पांच न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को भेजा था.
सरकार के फैसले का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं का कहना रहा है कि इसमें संवैधानिक महत्व के मुद्दे शामिल हैं. उन्होंने तर्क दिया है यह सवाल अभी भी काफी हद तक जिंदा है कि क्या सरकार एक विशेष वर्ग की पूरी मुद्रा को विमुद्रीकृत करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 को लागू कर सकती है और अगर इसका जवाब नहीं दिया जाता है तो सरकार इसे भविष्य में भी दोहरा सकती है.
वहीं, कोर्ट पहले कह चुका है कि वह अपनाई गई प्रक्रिया और उस तरीके की जांच करेगा जिससे नोटबंदी लागू की गई थी.
12 अक्टूबर को पीठ ने कहा था, ‘सरकार की समझदारी मामले का एक पहलू है, और हम जानते हैं कि लक्ष्मण रेखा कहां है. लेकिन जिस तरीके से इसे किया गया है और जो प्रक्रिया अपनाई गई है, उसे जांचा जा सकता है. इसके लिए हमें सुनवाई करने की जरूरत है…’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)