विपक्ष के विरोध के बीच भाजपा सदस्य का समान नागरिक संहिता संबंधी निजी विधेयक राज्यसभा में पेश

विपक्षी सदस्यों ने इस विधेयक को संविधान के ख़िलाफ़ बताते हुए कहा कि इससे देश की विविधता की संस्कृति को नुकसान पहुंचेगा. उन्होंने कहा कि इससे देश के सामाजिक ताने-बाने को क्षति पहुंचने की आशंका है. उन्होंने भाजपा सदस्य किरोड़ीमल मीणा मीणा से यह निजी विधेयक वापस लेने का अनुरोध किया.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

विपक्षी सदस्यों ने इस विधेयक को संविधान के ख़िलाफ़ बताते हुए कहा कि इससे देश की विविधता की संस्कृति को नुकसान पहुंचेगा. उन्होंने कहा कि इससे देश के सामाजिक ताने-बाने को क्षति पहुंचने की आशंका है. उन्होंने भाजपा सदस्य किरोड़ीमल मीणा मीणा से यह निजी विधेयक वापस लेने का अनुरोध किया.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राज्यसभा में शुक्रवार को समान नागरिक संहिता के संबंध में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक सदस्य द्वारा लाए गए निजी विधेयक को विपक्ष के भारी विरोध के बीच पेश किया गया. उच्च सदन ने 23 के मुकाबले 63 मतों से निजी विधेयक को पेश करने की अनुमति दी.

इस विधेयक का उद्देश्य धर्म-आधारित व्यक्तिगत कानूनों (Personal Laws) को खत्म करना है. विधेयक समान नागरिक संहिता की तैयारी और पूरे भारत में इसके कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय निरीक्षण और जांच समिति के गठन की मांग करता है.

निजी विधेयक को संसद में पारित होने के लिए सरकार के समर्थन की आवश्यकता होती है.

अतीत में हालांकि विधेयक को पेश करने के लिए सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन इसे उच्च सदन में स्थानांतरित नहीं किया गया था. विधेयक धर्म पर विचार किए बिना सभी नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनों के एक समान समूह की परिकल्पना करता है.

शुक्रवार को भोजनावकाश के बाद उच्च सदन में गैर-सरकारी कामकाज शुरू होने पर सबसे पहले भाजपा के किरोड़ीमल मीणा ने भारत में समान नागरिक संहिता विधेयक, 2020 पेश किया.

एमडीएमके के वाइको सहित विभिन्न विपक्षी सदस्यों ने इस विधेयक को संविधान विरूद्ध करार देते हुए सभापति जगदीप धनखड़ से इसे सदन में पेश करने की अनुमति नहीं देने का अनुरोध किया.

सभापति ने मीणा को इस विधेयक के बारे में बोलने का अवसर दिया, हालांकि भाजपा सदस्य ने कहा कि जब इस विधेयक को सदन में चर्चा के लिए लिया जाएगा, तब वह अपनी बात रखेंगे.

इसके बाद सभापति ने विपक्षी सदस्यों को एक-एक कर अपनी बात रखने का मौका दिया. वाइको, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, आईयूएमएल के अब्दुल वहाब, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के इलामरम करीम, वी शिवदासन, जान ब्रिटास, एए रहीम, विकास रंजन भट्टाचार्य, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संतोष कुमार पी, द्रमुक के तिरुचि शिवा, कांग्रेस के एल हनुमंथैया, जेबी हीशम एवं इमरान प्रतापगढ़ी, तृणमूल कांग्रेस के जवाहर सरकार, राष्ट्रीय जनता दल के मनोज कुमार झा एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की फौजिया खान ने इस विधेयक का विरोध किया.

विपक्षी सदस्यों ने इस विधेयक को संविधान के विरूद्ध बताते हुए कहा कि इससे देश की विविधता की संस्कृति को नुकसान पहुंचेगा. उन्होंने कहा कि इससे देश के सामाजिक ताने-बाने को क्षति पहुंचने की आशंका है. उन्होंने भाजपा सदस्य मीणा से यह विधेयक वापस लेने का अनुरोध किया.

कुछ विपक्षी सदस्यों का कहना था कि इस प्रकार के कानून को देश की न्यायपालिका द्वारा खारिज कर दिया जाएगा.

एमडीएमके सांसद वाइको ने सत्तारूढ़ सरकार पर ‘आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) और भाजपा के एक के बाद एक एजेंडे को लागू करने’ का आरोप लगाया और कहा, ‘उन्होंने कश्मीर को खत्म कर दिया है. अब वे समान नागरिक संहिता पर आ गए हैं.’

उन्होंने कहा कि यह ‘देश की आपदा और इसके विघटन की ओर बढ़ रहा है और अल्पसंख्यक लोग बहुत आहत हैं’.

इसी तरह इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के अब्दुल वहाब ने कहा कि विधेयक को अतीत में कई बार पेश करने का प्रयास किया गया था. यह जान-बूझकर भाजपा को उकसाने का एक प्रयास है. उन्होंने जोर देकर कहा कि समान नागरिक संहिता को भारत में लागू नहीं किया जा सकता है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, एक सांसद ने तर्क दिया कि लोगों के जीवन पर व्यापक प्रभाव वाले विधेयक को ‘विभिन्न समुदायों के साथ व्यापक सार्वजनिक परामर्श के बिना पेश नहीं किया जा सकता’.

सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर सहित संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता के विषय को नीति निर्देशक सिद्धांतों में रखा था. उन्होंने कहा कि सदन के हर सदस्य को संविधान से जुड़े विषय पर विधेयक लाने का अधिकार है और उसके इस अधिकार पर प्रश्न नहीं खड़ा किया जा सकता.

सपा के रामगोपाल यादव ने कहा कि यह विधेयक संविधान के मौलिक अधिकारों से संबंधित प्रावधानों के खिलाफ है और इसे उच्च सदन में पेश करने की अनुमति बिल्कुल नहीं दी जानी चाहिए. उन्होंने सभापति से मीना को विधेयक वापस लेने के लिए कहने का अनुरोध किया.

तृणमूल कांग्रेस के जवाहर सरकार ने कहा कि ऐसा गैर-सरकारी विधेयक लाया गया है, जो पूरी तरह असंवैधानिक, अनैतिक और धर्म-निरपेक्षता विरोधी है. उन्होंने दावा किया कि सत्ता पक्ष ने एक बहुत ही खतरनाक खेल में परिस्थितियों को भांपने के मकसद से इसे निजी विधेयक के तौर पर पेश करवाया है.

वहीं राजद नेता मनोज कुमार झा ने कहा कि यह विधेयक ऐसे समय लाया गया है, जब समाज, शहर एवं गांव बंटे हुए हैं तथा यह इस विभाजन को और बढ़ाएगा.

झा ने कहा कि जब पहले कई मौकों पर विधेयक पेश करने के लिए आया था, तब भाजपा ने मीणा से आगे नहीं बढ़ने का अनुरोध किया था और तब सद्बुद्धि नजर आई थी.

उन्होंने कहा, ‘मैं ऐसे छह मौकों का गवाह हूं. क्या बदल गया है मुझे नहीं पता.’

एनसीपी की फौजिया खान ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा, ‘पूरी दुनिया में भारतीय लोकतंत्र की सुंदरता और भारत की विशिष्टता इसकी विविधता में एकता में निहित है. हमारी विविधता अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसे बरकरार रखना होगा. इसे इस तरह से तोड़ा नहीं जा सकता.

विधेयक को वापस लेने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह हमारे देश की विशिष्टता के अनुरूप नहीं है. यह सिर्फ एक मुस्लिम-हिंदू मुद्दा नहीं है. यह हर तरह से विविधता का सवाल है.’

माकपा सांसद जॉन ब्रिटास ने विधि आयोग की एक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है.

हालांकि विपक्ष के विरोध के बावजूद इस विधेयक पर विपक्षी सदस्यों की मांग पर मत विभाजन करवाया गया. मत विभाजन में सदन ने 23 के मुकाबले 63 मतों से इस विधेयक को पेश करने की अनुमति प्रदान कर दी.

मीणा द्वारा पेश निजी विधेयक में संपूर्ण भारत के लिए एक समान नागरिक संहिता तैयार करने और इसके क्रियान्वयन के लिए एक राष्ट्रीय निरीक्षण और जांच समिति गठित करने का प्रावधान है.

समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी क्षेत्र या धर्म के हों, नागरिक कानूनों के एक समूह के तहत बंधे होंगे. यह सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.

वर्तमान में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून (Personal Law) हैं.

मालूम हो कि परंपरागत रूप से राम मंदिर के निर्माण और भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ-साथ समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख उद्देश्यों में से एक रहा है. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक और चुनावी राज्य गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही है.

हाल में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में समान नागरिक संहिता को लागू करना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.

विधानसभा चुनाव पहले गुजरात सरकार ने 29 अक्टूबर को घोषणा की थी कि वह समान नागरिक संहिता लागू करने लिए समिति का गठन करेगी. यह फैसला उस दिन राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया था.

सभी दलों को समान नागरिक संहिता के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए: गडकरी

इस बीच केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने शुक्रवार को कहा कि सभी दलों को समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए, क्योंकि यह राष्ट्र और मानवता के लिए अच्छा होगा.

गडकरी ने एक कार्यक्रम के दौरान समान नागरिक संहिता के सवाल पर कहा, ‘अगर कोई पुरुष, किसी महिला से शादी करता है तो नैसर्गिक है. लेकिन कोई चार शादी करता है, तो अप्राकृतिक है. इसलिए प्रगतिशील और शिक्षित मुस्लिम यह नहीं करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘समाज में गुणात्मक परिवर्तन होने चाहिए. यह किसी धर्म या वर्ग के खिलाफ नहीं है. हमें एकजुट होकर विकसित राष्ट्र बनाना चाहिए.’

उन्होंने सवाल किया कि क्या किसी भी धर्म की महिला को चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो या सिख हो उन्हें समान अधिकार नहीं मिलना चाहिए? गडकरी ने पूछा कि दुनिया के किस मुस्लिम देश में दो नागरिक संहिता है?

केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘अगर केंद्र सरकार किसी मुद्दे पर कोई फैसला लेती है और राज्य आपत्ति करते हैं, तो इससे बाहर जो संदेश जाएगा वो अच्छा नहीं होगा, क्योंकि ऐसे मामले समवर्ती सूची में है. इसलिए मेरा मानना है कि अगर राज्य और सभी पार्टी सामूहिक रूप से फैसला लेते हैं, तो यह मानवता एवं राष्ट्र के लिए अच्छा होगा.’

केरल के राज्यपाल ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया

नितिन गडकरी के अलावा केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने समान नागरिक संहिता लाने (के विचार) का शुक्रवार को समर्थन किया और कहा कि जिसने भी संविधान की शपथ ली है वह इसका कभी विरोध नहीं करेगा.

समान नागरिक संहिता पर उनकी राय के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘संविधान की शपथ लेने वाला कोई भी व्यक्ति यह नहीं कहेगा कि इसे नहीं आना चाहिए.’

खान ने एक निजी समाचार चैनल के कार्यक्रम में कहा, ‘हिंदू कोड पहले से ही है, क्या इसने हिंदुओं, सिखों और जैनियों में एकरूपता लाई? हम विविधता वाले देश हैं. समान नागरिक संहिता विवाह या रीति-रिवाजों के बारे में नहीं है. यह समान न्याय के बारे में है.’

उन्होंने कहा, ‘ऐसे मामले हैं, जहां लोगों ने दो पत्नियां रखने के लिए धर्म परिवर्तन किया है. मैं किसी का नाम नहीं लूंगा.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)