बिहार के छपरा ज़िले का मामला. बीते अगस्त महीने में भी इस ज़िले में कथित ज़हरीली शराब पीने से कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई थी. नीतीश कुमार नीत सरकार ने अप्रैल, 2016 से बिहार में शराब उत्पादन, खरीद, बिक्री, सेवन आदि पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था.
पटना: पूर्ण शराबबंदी लागू कर चुके बिहार राज्य के छपरा (छपरा) जिले में कथित रूप से जहरीली शराब पीने से मरने वालों की संख्या बुधवार को बढ़कर 31 हो गई है.
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इस घटना को लेकर बुधवार को राज्य विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीत ‘महागठबंधन’ सरकार और विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला.
बिहार के शराबबंदी मामले के मंत्री सुनील कुमार के अनुसार, छपरा के मशरक और इसुआपुर थाना क्षेत्र में लोगों के मरने की सूचना है.
छपरा के सिविल सर्जन-सह-चिकित्सा अधिकारी प्रभारी डॉक्टर सागर दुलाल सिन्हा ने कहा, ‘ज्यादातर लोगों की मौत जिला मुख्यालय छपरा में स्थित अस्पताल में हुई है. कुछ लोग जो मंगलवार (13 दिसंबर) सुबह से ही बीमार थे, उनकी इलाज के दौरान मौत हो गई.’
सिन्हा ने फोन पर बताया कि चूंकि यह संदेह है कि मरने वाले सभी लोगों ने कुछ नशा किया था, पोस्टमॉर्टम के बाद उनके बिसरा का नमूना परीक्षण के लिए मुजफ्फरपुर भेजा जा रहा है.
इस बीच, जिला प्रशासन ने कहा कि उसने अधिकारियों की टीम गठित की है, जो प्रभावित गांवों का दौरा करेगी और प्रभावित परिवारों से मिलकर उनका पता लगाने का प्रयास करेंगी, जिन्होंने संभवत: जहरीली शराब परोसी होगी.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, इस संबंध में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बृहस्पतिवार को मीडियाकर्मियों से बातचीत में कहा कि अगर कोई जहरीली शराब का सेवन करेगा, तो वह मर जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘पिछली बार जब जहरीली शराब से लोगों की मौत हुई थी तो किसी ने कहा था कि उन्हें मुआवज़ा दिया जाना चाहिए. अगर कोई जहरीली शराब पीता है तो वो मर जाएगा. एक उदाहरण हमारे सामने है. इस पर शोक करना चाहिए, उन स्थानों का दौरा किया जाना चाहिए और लोगों को इसके नतीजों के बारे में बताया जाना चाहिए.’
गौरतलब है कि नीतीश कुमार नीत सरकार ने अप्रैल, 2016 से बिहार में शराब उत्पादन, खरीद, बिक्री, सेवन आदि पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था.
बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम गंभीर अपराधों के लिए कैद की सजा के अलावा आरोपी की संपत्ति कुर्क करने का प्रावधान करता है. कानून में 2018 में संशोधन किया गया, जिसके तहत कुछ प्रावधान हल्के कर दिए गए.
मालूम हो कि बीते अक्टूबर महीने में पटना हाईकोर्ट ने कहा था कि बिहार के लोगों की जान जोखिम में इसलिए पड़ी है, क्योंकि राज्य सरकार अपने बहुचर्चित शराबबंदी कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रही है.
अदालत ने यह भी टिप्पणी की थी कि शराब के अलावा अवैध दवाओं का बड़े पैमाने पर उपयोग चिंता का एक और कारण है. अदालत ने राज्य भर में नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने में विफल होने के लिए सरकार की खिंचाई की थी.
अदालत ने चिंता व्यक्त की थी कि चरस, गांजा और भांग की मांग शराबबंदी के बाद से बढ़ गई और अधिकांश नशा करने वाले 25 साल से कम उम्र के तथा कुछ तो 10 साल से भी कम उम्र के थे.
बिहार में शराबबंदी पर अमल को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं. राज्य में कथित तौर पर जहरीली शराब से लोगों की मौत की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं.
राज्य में कथित शराब के कारण हुईं मौत की अन्य घटनाओं की बात करें तो अगस्त 2022 में छपरा जिले में कथित तौर पर जहरीली शराब पीने से कम से कम सात लोगों की मौत हो गई थी.
इसी महीने में छपरा जिले में हुई एक अन्य घटना में कथित जहरीली शराब पीने से 13 लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग बीमार हो गए थे.
मई 2022 में पूर्ण शराबबंदी वाले बिहार के औरंगाबाद जिले में कथित तौर पर जहरीली शराब पीने से पांच लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद पुलिस ने 67 लोगों को गिरफ्तार किया था.
इससे पहले राज्य के दो जिलों- भागलपुर और मधेपुरा में मार्च 2022 में होली के त्योहार के दौरान कथित तौर पर जहरीली शराब पीने से कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई थी.
जनवरी 2022 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृहजिले नालंदा में कथित तौर पर जहरीली शराब पीने से चार लोगों की मौत हो गई थी.
साल 2021 में दीपावली के आसपास बिहार के चार जिलों (पश्चिम चंपारण, गोपालगांज, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर) में अवैध शराब ने 40 से अधिक लोगों की जान ले ली थी.
पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि दिसंबर 2021 तक शराबबंदी कानून के तहत 3.5 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए और चार लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया.
26 दिसंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने किसी कानून का मसौदा तैयार करने में दूरदर्शिता की कमी के उदाहरण के रूप में बिहार के शराबबंदी कानून का हवाला दिया था.
विधानसभा में विपक्षी दल भाजपा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच तीखी बहस
छपरा जिले में कथित रूप से जहरीली शराब से लोगों की मौत को लेकर बुधवार को विधानसभा के अंदर विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच तीखी बहस देखने को मिली.
भाजपा विधायकों ने विधानसभा के अंदर हंगामा किया. इस दौरान उनमें से कई ने सरकार पर अवैध शराब की बिक्री को रोकने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए नारेबाजी की. भाजपा विधायकों ने छपरा की घटना में जान गंवाने वालों के परिवार के सदस्यों को मुआवजा देने की मांग की.
मुख्यमंत्री कुमार गुस्से में अपनी कुर्सी से उठकर भाजपा विधायकों की ओर उंगली उठाते हुए कुछ कहते देखे गए.
हंगामे के कारण विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी को बुधवार सुबह 11 बजे कार्यवाही शुरू होने के शुरुआती आधे घंटे के अंदर ही 15 मिनट के लिए कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू होने पर भी हंगामा जारी रहा.
भाजपा सदस्यों ने मुख्यमंत्री से माफी की मांग की, जो उस समय अपनी कुर्सी पर नहीं थे. भाजपा विधायक शून्यकाल शुरू होने पर सदन से बहिर्गमन कर गए.
सदन के बाहर नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने संवाददाताओं से कहा, ‘मुख्यमंत्री को हमारी (भाजपा) वजह से वर्तमान कार्यकाल मिला था, लेकिन उन्होंने हमें धोखा दिया और उनमें (राजद में) शामिल हो गए, जिन पर वह ‘जंगल राज’ का आरोप लगा रहे थे. उनकी संगति में रहकर उन्होंने उनके तौर-तरीके अपना लिए हैं. यह सदन के पटल पर हमारे खिलाफ इस्तेमाल की गई डराने-धमकाने वाली व अपमानजनक भाषा से जाहिर होता है.’
हालांकि, राज्य के संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा, ‘भाजपा सदस्यों को यह समझना चाहिए कि बिहार में शराब का सेवन करना एक अपराध है और इससे होने वाली मौतों की भरपाई नहीं की जा सकती. यह शराब के सेवन को अपना समर्थन देने के समान होगा.’
राज्य के मद्य निषेध मंत्री सुनील कुमार ने भाजपा के इस आरोप पर आपत्ति जताई कि शराबबंदी का उल्लंघन इसलिए किया जा रहा है क्योंकि उल्लंघन करने वालों को सरकार का ‘संरक्षण’ प्राप्त है.
मंत्री ने कहा, ‘जब भाजपा हमारी सहयोगी थी, तो उनके नेताओं ने कभी ऐसा आरोप नहीं लगाया. उन्हें याद रखना चाहिए कि आईपीसी और सीआरपीसी के तहत दंडनीय अपराध बंद नहीं हुए हैं, भले ही ये संहिता ब्रिटिश राज के बाद से मौजूद हैं.’
इस बीच, राजद विधायक सुधाकर सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार के साथ सरकार चलाने वाली भाजपा को ‘इस मामले पर शोर मचाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है.’
लेकिन उन्होंने इस विचार का समर्थन किया कि बिहार में शराबबंदी ‘पूरी तरह विफल’ रही.
सिंह ने कहा, ‘मामले की जांच हाईकोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित एक जांच आयोग द्वारा की जानी चाहिए. लगभग हर दिन सैकड़ों लोग शराब का सेवन करने के आरोप में गिरफ्तार हो जाते हैं. अगर सत्ता में बैठे लोग किसी तरह से शामिल नहीं हैं तो इतने सारे लोगों के लिए शराब कैसे उपलब्ध है?’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)