किशोरावस्था जोख़िमपूर्ण, पूर्ण परिपक्वता 18 नहीं, 25 की उम्र में आती है: केरल विश्वविद्यालय

बीते दिनों केरल यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज से संबद्ध कोझिकोड गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज की छात्राओं पर रात 9:30 बजे के बाद छात्रावास से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई थी. मामला केरल हाईकोर्ट पहुंचा तो विश्वविद्यालय ने अपनी सफाई में कहा है कि 18 की आयु प्राप्त करने पर पूर्ण स्वतंत्रता मांगना समाज के लिए हानिकारक होगा, परिपक्वता पूरी तरह से 25 की उम्र में आती है.

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(फोटो साभार: फेसबुक)

बीते दिनों केरल यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज से संबद्ध कोझिकोड गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज की छात्राओं पर रात 9:30 बजे के बाद छात्रावास से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई थी. मामला केरल हाईकोर्ट पहुंचा तो विश्वविद्यालय ने अपनी सफाई में कहा है कि 18 की आयु प्राप्त करने पर पूर्ण स्वतंत्रता मांगना समाज के लिए हानिकारक होगा, परिपक्वता पूरी तरह से 25 की उम्र में आती है.

(फोटो साभार: फेसबुक)

तिरुवनंतपुरम: कोझिकोड गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज की छात्राओं को रात 9:30 बजे के बाद छात्रावास से बाहर निकलने से रोकने वाली अधिसूचना को सही ठहराते हुए केरल यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज (केयूएचएस) ने मंगलवार को केरल हाईकोर्ट को बताया कि ‘18 की आयु प्राप्त करने पर पूर्ण स्वतंत्रता मांगना समाज के लिए उचित और अच्छा नहीं होगा और परिपक्वता पूरी तरह से 25 वर्ष की आयु में आती है.’

अदालत कोझिकोड मेडिकल कॉलेज की पांच एमबीबीएस की छात्राओं और कॉलेज संघ के पदाधिकारियों द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिन्होंने उच्च शिक्षा विभाग के एक निर्देश को चुनौती दी थी, जो उन्हें रात 9:30 बजे के बाद महिला छात्रावास से बाहर जाने से रोकता है. यह संस्थान केरल यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज से संबद्ध है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि पुरुष छात्रों के लिए कोई भी प्रतिबंध नहीं है.

याचिका पर विचार कर रही जस्टिस देवन रामचंद्रन की एकल पीठ ने आदेश की पहले तीखी आलोचना की थी और विश्वविद्यालय समेत सभी हितधारकों से उनके विचार मांगे थे.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, विश्वविद्यालय ने अपने हलफनामे में कहा कि यदि उचित वैज्ञानिक अध्ययन के बिना, बिना किसी नियमन के छात्रावासों के द्वार खोले जाते हैं तो यह समाज के लिए अहितकारी/हानिकारक होगा. किशोर व्यवहार पर किए गए विभिन्न अध्ययन इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि उनमें सड़क दुर्घटनाओं और मौतों का प्रतिशत, ड्रग्स और अन्य पदार्थों का इस्तेमाल, आत्महत्या और हत्या की दर आदि बहुत ज्यादा हैं.

विश्वविद्यालय ने कहा, ‘यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि किशोरावस्था की उम्र को संभालना बहुत जोखिम भरा है और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करना, जो याचिकाकर्ताओं को उनके घरों में भी नहीं मिल सकती है, उचित नहीं है.’

हलफनामे में विश्वविद्यालय ने अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए चिकित्सा संबंधी पहलुओं को भी पेश किया है.

इसमें कहा गया है, ‘परिपक्वता की उम्र जरूरी नहीं कि मस्तिष्क की परिपक्वता लाए. न्यूरोबिहेवियरल, न्यूरो-मॉर्फोलॉजिकल, न्यूरोकेमिकल, न्यूरोफिजियोलॉजिकल और न्यूरोफार्माकोलॉजिकल प्रमाण बताते हैं कि किशोरावस्था के दौरान मस्तिष्क परिपक्वता की सक्रिय अवस्था में रहता है. यह साक्ष्य इस परिकल्पना का समर्थन करते हैं कि किशोर मस्तिष्क संरचनात्मक और कार्यात्मक रूप से पर्यावरणीय तनाव, जोखिम भरे व्यवहार, नशीली दवाओं की लत और असुरक्षित यौन संबंध के प्रति संवेदनशील होता है.’

इसमें कहा गया है, ‘मस्तिष्क के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स का विकास जटिल व्यवहार के प्रदर्शन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स का विकास और परिपक्वता 25 साल की उम्र में पूरी तरह से संपन्न होती है.’

गौरतलब है कि याचिकाकर्ताओं ने कॉलेजों द्वारा संचालित छात्रावासों से बाहर जाने और प्रवेश करने संबंधी नियमों को अपनी शिकायत में सामने रखा था.

लेकिन विश्वविद्यालय ने हाईकोर्ट से कहा कि सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए समय निर्धारित किया गया है और किसी भी वास्तविक जरूरत के मामले में संबंधित अधिकारियों से अनुमति प्राप्त की जा सकती है. संबद्ध महाविद्यालयों के साथ-साथ संबद्ध संस्थानों द्वारा चलाए जा रहे छात्रावासों में भी अनुशासन सुनिश्चित करना विश्वविद्यालय का कर्तव्य है.

विश्वविद्यालय ने हलफनामे में कहा है, ‘आमतौर पर एक छात्रावास एक होटल या ऐसे ही किसी अन्य उपलब्ध आवास से अलग होता है.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘छात्रावास में विभिन्न गतिविधियों के लिए नियम बनाकर अनुशासन सुनिश्चित किया जाता है. छात्रावास में अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए ऐसे नियम जरूरी हैं. ऐसे कई नियम छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के कदम के रूप में भी काम करते हैं.’

बीते सात दिसंबर को मामले की सुनवाई करते हुए केरल हाईकोर्ट ने सवाल किया था कि सिर्फ लड़कियों और महिलाओं के ही रात में बाहर निकलने पर पाबंदी क्यों है? साथ ही राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने को कहा कि उन्हें भी लड़कों और पुरुषों के समान आजादी मिलनी चाहिए.

बीते 30 नवंबर को मामले की सुनवाई में केरल हाईकोर्ट ने महिला छात्रावास में कर्फ्यू पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि सुरक्षा की आड़ में इस तरह के प्रतिबंध लगाना और कुछ नहीं बल्कि पितृसत्ता है.