‘मोरल पुलिसिंग’ करने वाले सीआईएसएफ जवान की बर्ख़ास्तगी को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया

मामला वर्ष 2001 का है. गुजरात के वडोदरा स्थित एक पार्क में रात की शिफ्ट कर रहे सीआईएसएफ के एक जवान ने बाइक सवार जोड़े को रोककर युवती के साथ कुछ समय बिताने की मांग की थी और बाद में युवक की घड़ी लेकर उन्हें जाने दिया था. युवक की शिकायत के बाद सीआईएसएफ की विभागीय जांच में जवान को बर्ख़ास्त कर दिया गया था. 

(फोटो: रॉयटर्स)

मामला वर्ष 2001 का है. गुजरात के वडोदरा स्थित एक पार्क में रात की शिफ्ट कर रहे सीआईएसएफ के एक जवान ने बाइक सवार जोड़े को रोककर युवती के साथ कुछ समय बिताने की मांग की थी और बाद में युवक की घड़ी लेकर उन्हें जाने दिया था. युवक की शिकायत के बाद सीआईएसएफ की विभागीय जांच में जवान को बर्ख़ास्त कर दिया गया था.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 21 साल पुरानी एक घटना पर फैसला सुनाते हुए सीआईएसएफ के एक जवान की बर्खास्तगी पर मुहर लगाई है.

द हिंदू की खबर के मुताबिक, 21 साल पहले गुजरात के वडोदरा स्थित एक पार्क में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के एक कॉन्स्टेबल ने एक युवक-युवती को प्रताड़ित किया था.

अदालत ने कॉन्स्टेबल के आचरण को ‘दुखद और चौंका देने वाला’ पाया.

सीआईएसएफ जवान ने यह कहते हुए भयभीत युवती का अपमान किया था कि वह उसके साथ कुछ समय बिताना चाहता है और अंत में उन्हें ‘बेनकाब’ करने की धमकी देते हुए युवक की घड़ी लेकर मामला निपटाया था.

यह घड़ी अगले दिन तब वापस कर दी गई, जब सीआईएसएफ कॉन्स्टेबल संतोष कुमार पांडे का उनके वरिष्ठ अधिकारियों से सामना हुआ. अधिकारियों ने प्रताड़ित किए गए युवक की शिकायत के आधार पर कार्रवाई की थी.

लाइव लॉ के मुताबिक, शिकायत के बाद पांडे पर विभागीय जांच बैठी थी और उन्हें कदाचार के चलते सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. युवती ने भी जांच अधिकारी के समक्ष अपने बयान दिए थे.

हालांकि, युवती ने कहा था कि वह पांडे और अपने होने वाली पति (युवक) के बीच की बातचीत नहीं सुन सकी थी, लेकिन पांडे को घड़ी लेते हुए देखा था.

बता दें कि 2001 में जब संतोष कुमार पांडे गुजरात के वडोदरा में आईपीसीएल टाउनशिप के ग्रीनबेल्ट क्षेत्र में रात की ड्यूटी पर एक कॉन्स्टेबल के रूप में तैनात थे, तब उन्होंने रात के लगभग 1 बजे अपने एक सहकर्मी को अपनी मंगेतर के साथ मोटरसाइकिल पर जाते हुए देखा. वे गरबा देखने जा रहे थे, पांडे ने उन्हें रोक लिया और अपने सहकर्मी से पूछा कि क्या वह उसकी मंगेतर के साथ ‘कुछ समय बिता सकता’ है.

उसने जोड़े को जाने देने के बदले में कुछ मांगा और युवक को अपनी घड़ी देनी पड़ी.

जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली खंडपीठ ने हाल के आदेश में कहा, ‘संतोष कुमार पांडे पुलिस अधिकारी नहीं हैं, और यहां तक कि पुलिस अधिकारियों को भी मोरल पुलिसिंग करने, शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहने या कोई सामान मांगने की जरूरत नहीं है.’

यह आदेश गुजरात हाईकोर्ट द्वारा कॉन्स्टेबल के पक्ष में सुनाए फैसले के खिलाफ सीआईएसएफ की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिया.

हाईकोर्ट ने संतोष कुमार पांडे के पक्ष में फैसला देते हुए कहा था कि उन्हें उनके पद से हटाए जाने की तारीख से 50 फीसदी पुराना वेतन देने के साथ ही सेवा में बहाल किया जाए.

कॉन्स्टेबल के पक्ष में तर्क यह था कि युवक ने एक पत्र में उनके खिलाफ अपनी शिकायत वापस ले ली थी और उसे घड़ी लौटा दी गई थी.

अदालत ने कहा, ‘शिकायत वापस लेने का पत्र संतोष कुमार पांडे पर लगे आरोपों को रद्द या उन्हें दोषमुक्त नहीं करेगा.’

वहीं, अदालत ने यह भी कहा कि युवती के बयान को केवल इसलिए अधिकारी को बरी करने वाला नहीं माना जा सकता, क्योंकि उसने अपने मंगेतर और पांडे के बीच की बातचीत नहीं सुनी थी.