कश्मीरी पंडितों की हत्या को ‘सामान्य’ बताने की कोशिश कर रहे हैं उपराज्यपाल: प्रदर्शनकारी

कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों समेत अन्य अल्पसंख्यकों की आतंकियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रहीं हत्याओं के विरोध में वहां कार्यरत कर्मचारी पिछले कई महीने से जम्मू में प्रदर्शन कर रहे हैं. एक कार्यक्रम में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा था कि कश्मीर में हत्याओं को धर्म के आधार पर देखना बंद करें. कर्मचारियों ने इस बयान पर रोष जताया है.

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कश्मीर घाटी से पुनर्वास करने की मांग को लेकर कश्मीरी पंडितों का प्रदर्शन जम्मू में जारी है. (फोटो: पीटीआई)

कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों समेत अन्य अल्पसंख्यकों की आतंकियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रहीं हत्याओं के विरोध में वहां कार्यरत कर्मचारी पिछले कई महीने से जम्मू में प्रदर्शन कर रहे हैं. एक कार्यक्रम में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा था कि कश्मीर में हत्याओं को धर्म के आधार पर देखना बंद करें. कर्मचारियों ने इस बयान पर रोष जताया है.

कश्मीर में तैनात कर्मचारियों का उन्हें जम्मू भेजे जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन. (फाइल फोटो: पीटीआई)

जम्मू/श्रीनगर: कश्मीरी पंडितों ने पुनर्वास के मुद्दे को लेकर सोमवार को जम्मू में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान उन्होंने घाटी में काम पर न लौटने की सूरत में वेतन रोकने संबंधी जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल (एलजी) मनोज सिन्हा की टिप्पणी पर भी नाराजगी जाहिर की.

इससे पहले कश्मीरी पंडितों ने यह बात दोहराते हुए प्रदर्शन किया था कि उन्हें आतंकवादियों से धमकियां मिल रही हैं और वे काम पर वापस नहीं जा सकते.

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को आरोप लगाया कि उपराज्यपाल कश्मीरी पंडितों की हत्याओं को ‘सामान्य’ बताने की कोशिश कर रहे हैं.

हाल ही में एक कार्यक्रम में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा था, ‘कश्मीर में हत्याओं को धर्म के आधार पर देखना बंद करें.’

प्रदर्शनकारियों के मुताबिक, इस मुद्दे पर उपराज्यपाल का रुख उनके दुख के प्रति ‘असंवेदनशील’ था.

प्रदर्शनकारियों में से एक ने कहा, ‘एलजी साहब स्वीकार करते हैं कि यह ‘टारगेट-किलिंग’ का एक उदाहरण है, लेकिन वह इसे ‘छिटपुट’ कहते हैं, जो वास्तव में नहीं है.’

एक अन्य प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘विरोध 200 दिनों से अधिक समय से चल रहा है. हम उच्च अधिकारियों से संवेदनशीलता की उम्मीद करते हैं. लेकिन एलजी साहब की टिप्पणी अक्सर बदलती रहती है.’

प्रदर्शनकारियों ने एक स्वर में कहा कि उन्हें अपनी जान का खतरा है.

केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह, वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद का उदाहरण देते हुए एक प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘इन नेताओं ने हमारी दुर्दशा के प्रति संवेदनशीलता दिखाई है. हम उपराज्यपाल से इसी तरह के व्यवहार की उम्मीद करते हैं. इस मामले को धर्म के आधार पर नहीं बल्कि मानवीय आधार पर देखा जाना चाहिए.’

गौरतलब है कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने तबादले के लिए प्रदर्शन कर रहे कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारियों को बीते 21 दिसंबर को यह स्पष्ट संदेश दिया था कि काम पर न आने वालों को वेतन नहीं दिया जाएगा.

उन्होंने कहा था कि घाटी में सेवारत कश्मीरी पंडितों सहित अल्पसंख्यक समुदाय के कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय किए गए हैं.

उपराज्यपाल की इस टिप्पणी से नाराज डोगरा और कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने घाटी से तबादले की मांग को लेकर महीनों से जारी अपना विरोध प्रदर्शन और तेज करते हुए जम्मू स्थित भाजपा कार्यालय पर प्रदर्शन किया था.

इससे पहले बीते 5 दिसंबर को प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत कश्मीर घाटी में काम कर रहे 56 कश्मीरी पंडितों के नाम लेते हुए लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकी समूह द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) द्वारा जारी की गई एक ‘हिटलिस्ट’ से भयभीत समुदाय ने विरोध प्रदर्शन कर कर्मचारियों के लीक हुए विवरणों की उच्च-स्तरीय जांच की मांग की थी.

आतंकी संगठन ने कश्मीरी पंडितों को धमकी दी है कि उनकी कॉलोनियों को कब्रिस्तान में बदल दिया जाएगा.

बता दें कि आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रहीं हत्याओं (Targeted Killings) के बाद से घाटी में प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत काम कर रहे अनेक कश्मीरी पंडित जम्मू जा चुके हैं और 200 से अधिक दिन से स्थान परिवर्तन की मांग के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं. वे जम्मू स्थित पुनर्वास आयुक्त कार्यालय के बाहर डेरा डाले हैं.

मई 2022 में कश्मीर में राहुल भट की हत्या के बाद से पिछले छह महीनों में प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत कार्यरत कश्मीरी पंडित जम्मू में पुनर्वास आयुक्त कार्यालय में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

सितंबर 2022 में सरकार ने संसद को सूचित किया था कि जम्मू-कश्मीर में अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद से और इस साल जुलाई के मध्य तक पांच कश्मीरी पंडित और 16 अन्य हिंदुओं तथा सिखों सहित 118 नागरिक मारे गए थे.

राजनीतिक दलों ने कश्मीरी पंडित और डोगरा कर्मचारियों की मांगों का समर्थन किया

इस बीच जम्मू कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समेत सभी प्रमुख दल कश्मीरी पंडितों और डोगरा कर्मचारियों के समर्थन में खुलकर सामने आ गए हैं. उन्होंने आतंकवादियों द्वारा निशान बनाकर की जा रहीं हत्याओं के मद्देनजर कश्मीर से ‘दूसरी जगह बसाने’ व स्थानांतरण नीति की कश्मीरी पंडितों की मांगों का समर्थन किया है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), आम आदमी पार्टी (आप), अपनी पार्टी और अन्य ने पिछले आठ महीने से धरने पर बैठे कर्मचारियों से ‘सौतेले व्यवहार और नौकरशाही की उदासीनता’ को लेकर केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन की आलोचना की.

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की इस हालिया टिप्पणी पर इन दलों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की कि आरक्षित श्रेणी (डोगरा) के कर्मचारियों को जम्मू में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है और जो (कश्मीरी पंडित कर्मचारी) घर बैठे हैं उन्हें वेतन नहीं मिलेगा.

कांग्रेस के नेता हीरालाल पंडिता ने कहा कि राहुल गांधी के नेतृत्व में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के अगले महीने जम्मू कश्मीर पहुंचने पर पार्टी इसे मुख्य मुद्दा बनाएगी. उन्होंने कहा कि पार्टी की इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन करने की भी योजना है.

कर्मचारियों की मांगों पर प्रतिक्रिया देते हुए जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए. अगर आप कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते तो उन्हें बलि का बकरा न बनाएं. कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को घाटी में वापस लौटने और ड्यूटी पर लौटने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.’

जम्मू कश्मीर भाजपा अध्यक्ष रविंद्र रैना ने कहा, ‘हम यह दोहराते हैं कि हम उनकी मांगों का समर्थन करते हैं. हम कश्मीरी पंडितों और आरक्षित श्रेणी (डोगरा) के कर्मचारियों के साथ मजबूती से खड़े हैं.’

पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि कश्मीरी पंडितों के कर्मचारियों को ड्यूटी पर लौटने का अल्टीमेटम देने के बजाय जम्मू कश्मीर प्रशासन को घाटी में हालिया लक्षित हत्याओं को ध्यान में रखते हुए बीच का रास्ता निकालना चाहिए.

मुफ्ती ने कहा, ‘प्रशासन को उनकी समस्याओं को जानने और उन्हें हल करने की कोशिश करनी चाहिए. काम पर न लौटने पर वेतन रोकने की चेतावनी देना गलत है.’

आम आदमी पार्टी ने उपराज्यपाल और केंद्र की भाजपा सरकार से कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने को कहा. पार्टी के वरिष्ठ नेता एमके योगी ने कहा कि ‘आप’ ने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास और कर्मचारियों की विशेष पैकेज की मांगों का भी समर्थन किया है.

स्थिति सुधरने तक कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को जम्मू स्थानांतरित किया जाए: आजाद

डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी (डीएपी) के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने भी रविवार को कहा कि कश्मीर में स्थिति में सुधार होने तक कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को जम्मू स्थानांतरित किया जाना चाहिए.

New Delhi: Senior Congress leader Ghulam Nabi Azad speaks during a news conference in which MLA's of various local parties in Haryana who joined Congress, in New Delhi, Sunday, Sept. 15, 2019. (PTI Photo/Kamal Kishore) (PTI9_15_2019_000167B)
गुलाम नबी आजाद. (फोटो: पीटीआई)

आजाद ने श्रीनगर में संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘दुर्भाग्य से कुछ घटनाएं हो गई हैं. जीवन प्राथमिकता में है और इसलिए मेरी राय है कि कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को जम्मू में सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाए. स्थिति में सुधार होने के बाद उन लोगों को वापस लौटना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि जीवन रोजगार से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है और केंद्रशासित प्रदेश में उनकी पार्टी के सत्ता में आने पर ऐसा कदम उठाने का वादा किया.

उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि सरकार का रुख क्या है, लेकिन अगर हमारी पार्टी सत्ता में आती है तो हम ऐसा (अस्थायी तौर पर कर्मचारियों को जम्मू स्थानांतरित) करेंगे.’

जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने में देरी के बारे में पूछे जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हम पिछले छह साल से इंतजार कर रहे हैं. मैंने संसद में भी कई बार इस मुद्दे को उठाया. वे हमें पंचायत चुनाव या डीडीसी चुनाव दिखाते हैं, लेकिन असली चुनाव विधानसभा का होता है, जो नहीं हो रहा है.’

माकपा नेता तारिगामी ने कर्मचारियों के मुद्दों के हल के लिए बातचीत का सुझाव दिया

कश्मीर के बाहर स्थानांतरित किए जाने की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी कर्मचारियों के साथ बातचीत का सुझाव देते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता एमवाई तारिगामी ने सोमवार को जोर दिया कि चेतावनी, मुद्दों को सुलझाने के बजाय उन्हें जटिल बना सकती है.

तारिगामी ने जम्मू में कहा, ‘वे लोग एक मुश्किल स्थिति में फंस गए हैं और उनकी मांगों को पूरा करने के लिए सहानुभूतिपूर्ण और मानवीय दृष्टिकोण की जरूरत है. अपने लोगों को चेतावनी नहीं दी जाती है, यह स्थिति को और जटिल बना सकती है.’

उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक कर्मचारी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और ‘अपने ही लोगों के साथ व्यवहार करना सीखें और उनसे बातचीत करें तथा अगर आपको लगता है कि घाटी में स्थिति सामान्य है तो उन्हें संतुष्ट करें, हालांकि स्थिति अलग है.’

तारागामी ने कहा, ‘हर नागरिक की प्रारंभिक मांग उनके जीवन और संपत्ति की सुरक्षा है. हम विरोध करने वाले कर्मचारियों के साथ हैं और चाहते हैं कि सरकार उन्हें सामान्य तरीके से अपनी ड्यटी करने के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करे.’

कश्मीरी पंडितों के संबंध में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के बयान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सिंह की टिप्पणी उपराज्यपाल के बयान के विपरीत है. सिंह ने कहा था कि कीमती मानव जीवन बचाना जरूरी है, भले ही इसके लिए दर्जनों कार्यालयों को बंद करना पड़े.

माकपा नेता ने कहा कि उन्हें एक साथ बैठना चाहिए और इस बारे में आम सहमति बनानी चाहिए कि क्या बोलना है या क्या नहीं. उन्होंने घाटी में सामान्य स्थिति बहाल होने के प्रशासन के दावों को भी खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई संकेत नहीं है जिससे पता लगता हो कि घाटी में स्थिति सामान्य है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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