नए यूजीसी मानदंड: विदेशी विश्वविद्यालय भारत में कैंपस स्थापित कर फीस तय कर सकते हैं

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारत में परिसर स्थापित करने के संबंध में मसौदा नियम जारी किए हैं. इसके तहत उन्हें भारत में परिसर स्थापित करने से पहले यूजीसी से मंज़ूरी लेनी होगी. साथ ही कहा गया है कि ये संस्थान ऐसा कोई भी अध्ययन कार्यक्रम पेश नहीं करेंगे, जो भारत के राष्ट्रीय हित या भारत में उच्च शिक्षा के मानकों को ख़तरे में डालता है.

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(फोटो साभार: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग)

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारत में परिसर स्थापित करने के संबंध में मसौदा नियम जारी किए हैं. इसके तहत उन्हें भारत में परिसर स्थापित करने से पहले यूजीसी से मंज़ूरी लेनी होगी. साथ ही कहा गया है कि ये संस्थान ऐसा कोई भी अध्ययन कार्यक्रम पेश नहीं करेंगे, जो भारत के राष्ट्रीय हित या भारत में उच्च शिक्षा के मानकों को ख़तरे में डालता है.

(फोटो साभार: https://www.ugc.ac.in/)

नई दिल्ली: विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारत में परिसर स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने बृहस्पतिवार को इसका मसौदा नियमन जारी किया है. इसके तहत विदेशी विश्वविद्यालय भारत में अपने परिसर स्थापित कर सकते हैं, अपनी प्रवेश प्रक्रिया, शुल्क संरचना तय कर सकते हैं.

यूजीसी के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार द्वारा घोषित मसौदा मानदंडों के अनुसार ये विश्वविद्यालय अब अपने मूल परिसरों में धन भेजने में भी सक्षम होंगे. कुमार ने बताया कि विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में परिसर स्थापित करने के लिए यूजीसी से मंजूरी लेनी होगी.

उन्होंने नई दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि विदेशी विश्वविद्यालय केवल परिसर में प्रत्यक्ष कक्षाओं के लिए पूर्णकालिक कार्यक्रम पेश कर सकते हैं, ऑनलाइन माध्यम या दूरस्थ शिक्षा माध्यम से नहीं.

कुमार ने यूजीसी (भारत में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों का परिसर स्थापित करने एवं परिचालन करने) संबंधी नियमन 2023 पर संवाददाताओं से चर्चा के दौरान यह बात कही. उन्होंने कहा कि शुरू में इन्हें 10 साल के लिए मंजूरी दी जाएगी तथा उन्हें दाखिला प्रक्रिया, शुल्क ढांचा तय करने की छूट होगी.

उन्होंने बताया कि कुछ शर्तों को पूरा करने पर इनका नवीनीकरण नौवें वर्ष में किया जाएगा.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जहां यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के अनुरूप है, जिसमें भारत में शीर्ष वैश्विक विश्वविद्यालयों को संचालित करने की अनुमति देने के लिए एक विधायी ढांचे की परिकल्पना की गई है, वहीं पूर्व की सरकारों ने जब इस तरह के प्रयास किए थे, जिसमें यूपीए सरकार भी शामिल है, तब उन्हें भाजपा और वामपंथी दलों द्वारा विरोध का सामना करना पड़ा था. उस समय भाजपा विपक्ष में थी.

कुमार की घोषणा के बाद जारी किया गया मसौदा यूजीसी (भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों के परिसरों की स्थापना और संचालन) विनियम 2023, भारतीय बाजार में विदेशी शिक्षा संस्थानों को काफी स्वतंत्रता प्रदान करता है. साथ ही इसमें यह रेखांकित किया गया है कि वे ऐसा कोई भी अध्ययन कार्यक्रम पेश नहीं करेंगे, जो ‘भारत के राष्ट्रीय हित या भारत में उच्च शिक्षा के मानकों को खतरे में डालता है’.

मसौदे में कहा गया है, ‘विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों का संचालन भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता के विपरीत नहीं होगा.’

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ये संस्थान ऐसे कार्यक्रम की पेशकश नहीं करेंगे, जो भारत के राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल हों या उच्च शिक्षा के मानकों के अनुरूप नहीं हों.

यह पूछे जाने पर कि क्या यह खंड (राष्ट्रीय हित संबंधी) बहुत अधिक प्रतिबंधात्मक है, कुमार ने कहा कि किसी भी पीड़ित पक्ष को न्यायपालिका से संपर्क करने का अधिकार होगा.

उन्होंने कहा, ‘इसमें (राष्ट्रीय हित संबंधी खंड) ज्यादा नहीं पढ़ा जाना चाहिए. बहुत ही अपवाद वाले मामले होने जा रहे हैं, जहां राष्ट्रीय हित से संबंधित मुद्दे हो सकते हैं. अगर यूजीसी द्वारा कोई कार्रवाई की जाती है और पीड़ित पक्ष को लगता है कि यह सही नहीं है, तो हमारे पास देश में एक अच्छी तरह से स्थापित न्यायिक प्रणाली है. इसलिए, मुझे नहीं लगता कि उस खंड के संबंध में कोई समस्या है.’

यूजीसी के अध्यक्ष ने बताया कि यूरोप के कुछ देशों के विश्वविद्यालयों ने भारत में परिसर स्थापित करने में रूचि दिखायी है.

उन्होंने कहा कि चूंकि विदेशी विश्वविद्यालय भारत सरकार से वित्तपोषित संस्थान नहीं हैं, ऐसे में उनकी दाखिला प्रक्रिया, शुल्क ढांचे के निर्धारण में यूजीसी की भूमिका नहीं होगी.

कुमार ने कहा, ‘विदेशी विश्वविद्यालयों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके भारतीय परिसरों में प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता, उनके मुख्य परिसर में दी जाने वाली शिक्षा के समान ही गुणवत्तापूर्ण हो.’

उन्होंने कहा कि विदेशी विश्वविद्यालय, भारत में शैक्षणिक संस्थानों के साथ गठजोड़ करके परिसर स्थापित कर सकते हैं.

यूजीसी अध्यक्ष ने कहा, ‘विदेश से कोष का आदान-प्रदान विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के तहत होगा.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, विदेशी विश्वविद्यालयों को मूल कैंपस में धन प्रत्यावर्तित करने की अनुमति देने का निर्णय महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमेशा से अड़ंगा डालने वाला बिंदु रहा है.

मसौदा में कहा गया है, ‘धन की सीमा-पार आवाजाही और विदेशी मुद्रा खातों का रखरखाव, भुगतान का तरीका, प्रेषण, प्रत्यावर्तन विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) 1999 और इसके नियमों के अनुसार ही होगी.’

उन्होंने कहा, ‘यह एक ऐसा क्षेत्र रहा है जिस पर पहले भी बहस हुई थी. अब इन नियमों में यह बहुत स्पष्ट है कि विदेशी उच्च शिक्षा संस्थान द्वारा स्थापित कैंपस द्वारा सृजित धन को प्रत्यावर्तित किया जा सकता है. इस संबंध में ऑडिट रिपोर्ट सालाना यूजीसी को यह प्रमाणित करते हुए प्रस्तुत की जानी चाहिए कि संचालन फेमा अधिनियम 1999 और उसके नियमों के तहत हैं.’

उन्होंने कहा कि धन का प्रत्यावर्तन और धन की अन्य सीमा-पार आवाजाही विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 द्वारा शासित होगी. यूजीसी के पास किसी भी समय कैंपस का निरीक्षण करने का अधिकार होगा.

वैश्विक रैंकिंग में भाग लेने वाले विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस स्थापित करने के लिए आवेदन करने के लिए शीर्ष 500 (या तो समग्र या विषयवार श्रेणी में) में स्थान की आवश्यकता होगी, जबकि ऐसी रैंकिंग में भाग नहीं लेने वालों को उनके संबंधित देशों में ‘प्रतिष्ठित’ होने की आवश्यकता होगी.

नियम विदेशी संस्थानों को विदेश या भारत से फैकल्टी और अन्य स्टाफ सदस्यों को नियुक्त करने के लिए पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करते हैं.

नियम रेखांकित करते हैं कि भारतीय परिसर में पढ़ाने के लिए नियुक्त विदेशी फैक्लटी सदस्य एक उचित अवधि के लिए रहेंगे. कुमार ने कहा कि इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि संस्थान उन्हें विजिटिंग फैकल्टी की तरह सेवा न दें.

उन्होंने जोर देकर कहा कि वे रैगिंग विरोधी और अन्य आपराधिक कानूनों के दायरे से बाहर नहीं होंगे.

यह पूछे जाने पर कि क्या इन विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसरों में आरक्षण नीति लागू होगी, कुमार ने कहा कि दाखिले संबंधी नीति निर्धारण के बारे में निर्णय विदेशी विश्वविद्यालय करेंगे तथा इसमें यूजीसी की भूमिका नहीं होगी.

उन्होंने कहा कि मूल्यांकन प्रक्रिया और छात्रों की जरूरतों का आकलन करने के बाद आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को छात्रवृत्ति की व्यवस्था हो सकती है, जैसा कि विदेशों में विश्वविद्यालयों में होता है.

कुमार ने कहा कि जहां इन विश्वविद्यालयों को दाखिला प्रक्रिया और शुल्क ढांचे पर निर्णय करने की स्वतंत्रता होगी, वहीं आयोग ने फीस को ‘व्यावहारिक एवं पारदर्शी’ रखने का सुझाव दिया है.

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में यह संकल्पना की गई है कि दुनिया के उत्कृष्ट विश्वविद्यालयों को भारत में परिसर स्थापित करने की सुविधा दी जाएगी. उन्होंने कहा कि इसके लिए एक विधायी ढांचा तैयार किया जाएगा और इन विश्वविद्यालयों को भारत के स्वायत्त संस्थानों के समतुल्य नियमन, प्रशासन, सामग्री आदि की सुविधा होगी.

कुमार ने कहा कि यूजीसी सभी देशों के दूतावासों और जाने-माने विदेशी विश्वविद्यालयों को मसौदा नियमन पर राय पेश करने के लिए पत्र लिखेगी.

यह पूछे जाने पर कि क्या यूजीसी ने यह पता लगाने के लिए कोई शोध किया है कि क्या विदेशी उच्च शिक्षण संस्थान भारत में निवेश करने में रुचि रखते हैं, कुमार ने बताया कि 2022 में 4.5 लाख से अधिक भारतीय छात्र अध्ययन के लिए विदेश गए, जिससे 28-30 बिलियन डॉलर का बाहर जाने का अनुमान है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)