सिक्किम की महिला को आयकर अधिनियम के तहत छूट से बाहर रखा जाना भेदभावपूर्ण: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि महिला किसी की जागीर नहीं है और उसकी ख़ुद की एक पहचान है. विवाहित होने के तथ्य के कारण उस पहचान को दूर नहीं करना चाहिए. सिक्किम की महिला को इस तरह की छूट से बाहर करने का कोई औचित्य नहीं है. 

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(फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि महिला किसी की जागीर नहीं है और उसकी ख़ुद की एक पहचान है. विवाहित होने के तथ्य के कारण उस पहचान को दूर नहीं करना चाहिए. सिक्किम की महिला को इस तरह की छूट से बाहर करने का कोई औचित्य नहीं है.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार (13 जनवरी) को सिक्किम की एक महिला को महज इसलिए आयकर अधिनियम के तहत छूट से बाहर रखे जाने को ‘भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक’ बताया, क्योंकि उन्होंने एक अप्रैल, 2008 के बाद एक गैर-सिक्किम व्यक्ति से शादी की थी.

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि महिला किसी की जागीर नहीं है और उसकी खुद की एक पहचान है. विवाहित होने के तथ्य के कारण उस पहचान को दूर नहीं करना चाहिए. सिक्किम की महिला को इस तरह की छूट से बाहर करने का कोई औचित्य नहीं है.

पीठ ने कहा, ‘भेदभाव लैंगिक आधार पर है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का पूर्ण उल्लंघन है. इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि सिक्किम के किसी पुरुष के लिए यह अपात्र होने का आधार नहीं हो सकता, अगर वह एक अप्रैल, 2008 के बाद एक गैर-सिक्किमी महिला से शादी करता है.’

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने एक अलग राय में सहमति व्यक्त की कि 1 अप्रैल, 2008 को या उसके बाद एक गैर-सिक्किमी व्यक्ति, चाहे वह भारतीय नागरिक हो या विदेशी, से शादी करने वाली सिक्किम की महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है.

जस्टिस नागरत्ना ने याद दिलाया कि सिक्किम के भारत में विलय के बाद यह भारत का हिस्सा बन गया है और सिक्किम के सभी विषय और इसके क्षेत्र में रहने वाले सभी लोग भारतीय नागरिक बन गए हैं.

जस्टिस शाह ने कहा कि महिला उत्तराधिकारियों के साथ उनके पुरुष समकक्षों के समान व्यवहार करना होगा. उन्होंने कहा, लैंगिक समानता को विश्व समुदाय द्वारा सामान्य रूप से मानवाधिकार के तौर पर मान्यता दी गई है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि 2008 के बाद एक गैर-सिक्किम व्यक्ति से शादी करने वाली सिक्किम की महिला को आयकर अधिनियम की धारा 10 (26एएए) के तहत छूट के लाभ से वंचित करना, ‘मनमाना, भेदभावपूर्ण और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.’

अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता से संबंधित है, जबकि अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए है और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान है.

शीर्ष अदालत ने यह फैसला ‘एसोसिएशन ऑफ ओल्ड सेटलर्स ऑफ सिक्किम’ और अन्य द्वारा आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 10 (26एएए) को रद्द करने के अनुरोध संबंधी याचिका पर दिया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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