सरकार स्वतंत्रता के अंतिम स्तंभ ‘न्यायपालिका’ पर क़ब्ज़ा चाहती है: कपिल सिब्बल

जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच चल रहे गतिरोध को लेकर पूर्व क़ानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार इस तथ्य से सामंजस्य नहीं बैठा पा रही है कि उच्च न्यायपालिका में होने वाली नियुक्तियों को लेकर उसकी बात अंतिम नहीं है.

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कपिल सिब्बल. (फोटोः पीटीआई)

जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच चल रहे गतिरोध को लेकर पूर्व क़ानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार इस तथ्य से सामंजस्य नहीं बैठा पा रही है कि उच्च न्यायपालिका में होने वाली नियुक्तियों को लेकर उसकी बात अंतिम नहीं है.

कपिल सिब्बल. (फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: राज्यसभा सदस्य और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने रविवार को आरोप लगाया कि सरकार न्यायपालिका पर ‘कब्जा’ करने का प्रयास कर रही है.

उन्होंने कहा कि सरकार ऐसी स्थिति बनाने की पूरी कोशिश कर रही है, जिसमें एक बार फिर से उच्चतम न्यायालय में ‘दूसरे स्वरूप’ में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का परीक्षण किया जा सके.

कपिल सिब्बल (74) ने मौजूदा समय में केशवानंद भारती के फैसले के बुनियादी ढांचे के सिद्धांत को बहुत महत्वपूर्ण बताते हुए सरकार को खुले तौर पर यह कहने की चुनौती दी कि यह त्रुटिपूर्ण है.

उन्होंने दावा किया कि सरकार ने इस तथ्य से सामंजस्य नहीं बैठा पा रही है कि उच्च न्यायपालिका की नियुक्तियों में उसकी बात अंतिम नहीं है.

सिब्बल ने समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ साक्षात्कार में कहा, ‘वे (सरकार) ऐसी स्थिति बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, जिसमें एक बार फिर से उच्चतम न्यायालय में ‘दूसरे स्वरूप’ में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का परीक्षण किया जा सके.’

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की उस हालिया टिप्पणी के बाद सिब्बल की यह प्रतिक्रिया सामने आई है, जिसमें धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा एनजेएसी को रद्द करने के फैसले की आलोचना की थी.

धनखड़ ने 1973 के केशवानंद भारती मामले के ऐतिहासिक फैसले पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा था कि इस फैसले ने एक गलत मिसाल कायम की और वह उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से असहमत हैं कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन इसकी मूल संरचना में नहीं.

उच्चतम न्यायालय ने एनजेएसी अधिनियम को 2015 में असंवैधानिक करार दिया था, जिसका उद्देश्य उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को बदलना था.

धनखड़ की टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर सिब्बल ने कहा, ‘जब एक उच्च संवैधानिक प्राधिकारी और कानून के जानकार व्यक्ति इस तरह की टिप्पणी करते हैं, तो सबसे पहले यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या वह व्यक्तिगत राय रख रहे हैं या सरकार की ओर से बोल रहे हैं.’

सिब्बल ने कहा, ‘इसलिए, मुझे नहीं पता कि वह किस हैसियत से बोल रहे हैं… सरकार को इसकी पुष्टि करनी होगी. अगर सरकार सार्वजनिक रूप से कहती है कि वह उनके विचारों से सहमत है, तो इसका एक अलग अर्थ है.’

पीटीआई के मुताबिक, केशवानंद भारती मामले के फैसले पर राज्यसभा के सभापति की टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर सिब्बल ने कहा कि अगर यह उनकी निजी राय है तो वह ऐसा बोल सकते हैं.

हालांकि, सिब्बल ने न्यायपालिका और कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ अपनी आलोचनात्मक टिप्पणियों के लिए कानून मंत्री किरेन रिजिजू की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है और गंभीर चिंता का विषय है.

सिब्बल ने कहा, ‘मैंने पहले भी कहा है कि कानून मंत्री शायद अदालतों के कामकाज से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हैं और न ही वह अदालती प्रक्रियाओं से परिचित हैं. वह शायद धारणाओं और अधूरे तथ्यों के आधार पर इस तरह की टिप्पणी कर रहे हैं. जाहिर तौर पर उन्हें ठीक से जानकारी नहीं दी गई है. लेकिन जो कुछ भी है, सार्वजनिक रूप से इस तरह के बयान देना अनुचित है.’

सिब्बल ने कहा कि सरकार का उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट है और वे उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के अधिकार पर ‘कब्जा’ करना चाहते हैं और चाहते हैं कि इस संबंध में उनका कहा ही अंतिम हो.

सिब्बल ने कहा, ‘अगर वे ऐसा करने में कामयाब होते हैं, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होगा. वैसे भी तमाम संस्थानों पर उनका कब्जा हो गया है. न्यायपालिका स्वतंत्रता का अंतिम गढ़ है. यदि उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर अंतिम निर्णय सरकार पर छोड़ दिया जाता है, तो वे इन संस्थानों को ऐसे व्यक्तियों से भर देंगे जिनकी विचारधारा सत्ताधारी राजनीतिक दल से जुड़ी है.’

उन्होंने कहा, ‘वैसे भी, हमें इस सरकार, जिसने सभी संस्थानों को अपने कब्जे में ले लिया है, की ताकत की बराबरी करना मुश्किल हो रहा है. हमें लगता है कि ये संस्थान सरकार के निर्देश पर काम करते हैं या सरकार को खुश करना चाहते हैं, जिसके बारे में वही बेहतर जानते हैं.’

सिब्बल ने कहा कि चीन के ‘लद्दाख और साथ ही अरुणाचल प्रदेश में हमारे क्षेत्र में घुसपैठ’ को देखते हुए आसन्न वैश्विक मंदी के मद्देनजर देश बड़ी मुश्किल में है, चीन के पक्ष में ऐतिहासिक व्यापार संतुलन; निजी निवेश में उछाल का अभाव और घरेलू बचत दरें ऐतिहासिक निम्न स्तर पर हैं.

उन्होंने कहा, ‘पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य सहित जनता से संबंधित वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय सरकार कोई कदम न उठाते हुए विभाजनकारी ताकतों को प्रोत्साहित कर रही है जो हमारे सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद कर देगी.’

सिब्बल ने जोर देकर कहा कि ऐसे समय में उच्च न्यायपालिका पर हमला असामयिक और गलत है. सिब्बल ने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना साजिशन की जा रही है. सरकार को यह पसंद नहीं है कि उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियां सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के हाथों में हों.’

सिब्बल ने यह भी कहा कि संविधान सर्वोच्च है क्योंकि न्यायिक समीक्षा की शक्ति अदालत के पास है. सिब्बल ने कहा, ‘मैं यह कहने की हिम्मत करता हूं कि सरकार के पास इस समय यह कहने का साहस नहीं है कि बुनियादी संरचना सिद्धांत त्रुटिपूर्ण है. वास्तव में, संविधान की मूल संरचना को मजबूत करने की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि ऐसे समय में हम महसूस करते हैं कि बुनियादी संरचना सिद्धांत कितना महत्वपूर्ण है और केशवानंद भारती (फैसला) संविधान की उन विशेषताओं को प्रतिपादित करने के लिए कितना सही था जो हमारे जीवन के लिए बुनियादी हैं- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, संघीय ढांचा, हमारी राजनीति की समावेशी प्रकृति, शक्तियों का पृथक्करण और न्यायिक समीक्षा.’

सिब्बल ने कहा कि हालांकि वह कॉलेजियम प्रणाली के आलोचक थे, लेकिन राजनीति के इस मोड़ पर उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों को सरकार को नहीं सौंपा जा सकता है.

सिब्बल की टिप्पणी उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के मुद्दे पर चल रही बहस की पृष्ठभूमि में आई है, जिसमें सरकार वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठा रही है और सर्वोच्च न्यायालय इसका बचाव कर रहा है.

इस खींचतान के बीच केंद्रीय कानून मंत्री द्वारा सीजेआई को पत्र लिखकर कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधियों को जगह देने की बात भी सामने आई है.

उल्लेखनीय है कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली बीते कुछ समय से केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध का विषय बनी हुई है, जहां कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू कई बार विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां कर चुके हैं.

दिसंबर 2022 में संपन्न हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान रिजिजू सुप्रीम कोर्ट से जमानत अर्जियां और ‘दुर्भावनापूर्ण’ जनहित याचिकाएं न सुनने को कह चुके हैं, इसके बाद उन्होंने अदालत की छुट्टियों पर टिप्पणी की और कोर्ट में लंबित मामलों को जजों की नियुक्ति से जोड़ते हुए कॉलेजियम के स्थान पर नई प्रणाली लाने की बात दोहराई.

इससे पहले भी रिजिजू कुछ समय से न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान देते रहे हैं.

नवंबर 2022 में किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.

सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.

नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.

इसके बाद दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है और इसके खिलाफ टिप्पणी करना ठीक नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए ‘बाध्यकारी’ है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन होना चाहिए.

इसके उलट रिजिजू के अलावा 7 दिसंबर 2022 को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अपने पहले संसदीय संबोधन में एनजेएसी कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को लेकर अदालत पर निशाना साधा था.

धनखड़ ने बीते 11 जनवरी को भी इस कानून को रद्द किए जाने को लेकर न्यायपालिका को घेरा था. उन्होंने कहा कि संसदीय क़ानून को अमान्य करना लोकतांत्रिक नहीं था. साथ ही कहा था कि वह शीर्ष अदालत द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध से सहमत नहीं हैं कि संसद संविधान के ‘मूल ढांचे’ में संशोधन नहीं कर सकती है.

इससे पहले 2 दिसंबर 2022 को धनखड़ ने कहा था कि वह ‘हैरान’ थे कि शीर्ष अदालत द्वारा एनजेएसी कानून को रद्द किए जाने के बाद संसद में कोई चर्चा नहीं हुई. उससे पहले उन्होंने संविधान दिवस (26 नवंबर 2022) के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)