आईटी नियमों में प्रस्तावित संशोधन कहता है कि पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई या किसी अन्य सरकारी एजेंसी द्वारा ‘फ़र्ज़ी’ क़रार दी गई सामग्री सोशल मीडिया समेत सभी मंचों से हटानी होगी. डिजिटल मीडिया संगठनों के संघ डिजीपब ने कहा कि यह प्रेस की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाने का संस्थागत तंत्र बन सकता है.
नई दिल्ली: डिजिटल मीडिया संगठनों के एक संघ ‘डिजीपब’ ने गुरुवार को कहा कि आईटी नियमों में प्रस्तावित संशोधन संभावित रूप से प्रेस की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाने के लिए एक सुविधाजनक संस्थागत तंत्र बन सकता है.
‘डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन’ ने एक बयान में यह भी कहा कि सरकार को यह तय करने कि शक्ति खुद तक नहीं रखनी चाहिए कि कौन सी जानकारी/समाचार वास्तविक या फर्जी है.
DIGIPUB’s statement on the draft amendments to the IT Rules, 2021, made by MEITY. pic.twitter.com/ufQFVYngc7
— DIGIPUB News India Foundation (@DigipubIndia) January 19, 2023
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने मंगलवार को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के मसौदे में संशोधन जारी किया, जिसे पहले सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया गया था.
इसमें कहा गया है कि प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट-चेकिंग इकाई द्वारा ‘फर्जी (फेक)’ मानी गई किसी भी खबर को सोशल मीडिया मंचों समेत सभी मंचों से हटाना पड़ेगा. ऐसी सामग्री जिसे ‘फैक्ट-चेकिंग के लिए सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य एजेंसी’ या ‘केंद्र के किसी भी कार्य के संबंध में’ भ्रामक के रूप में चिह्नित किया गया है, उसे ऑनलाइन मंचों (Intermediaries) पर अनुमति नहीं दी जाएगी.
इसका विरोध करते हुए डिजिटल प्रकाशकों के संगठन ने अपने बयान में कहा है, ‘डिजीपब का यह दृढ़ विश्वास है कि गलत सूचना की जांच की जानी चाहिए. हालांकि, प्रस्तावित संशोधन किसी भी प्रक्रिया को निर्धारित किए बिना भारत सरकार को मनमाने तरीके से यह तय करने का अधिकार देते हैं कि सामग्री ‘फर्जी’ है या नहीं.’
बयान में यह भी कहा गया, ‘किसी लोकतंत्र में सरकार ही एकमात्र हितधारक नहीं है. मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और डिजिटल), सूचना कार्यकर्ता, नागरिक समाज आदि की भी लोकतंत्र के कल्याण और संवैधानिक रूप से संरक्षित बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने में समान भूमिका है. इसलिए, सरकार को यह तय करने कि कौन-सी सूचना/खबर असली या फर्जी है, की शक्ति अपने तक सीमित नहीं रखनी चाहिए.
इसने इस बात का भी जिक्र किया है कि 180 देशों के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक- 2022 में भारत 142 से 150 स्थान नीचे आ गया है और कहा कि ‘प्रेस को सेंसर करने के लिए ऐसा कदम चिंता का कारण है।’
बयान में आगे कहा गया है, ‘भारत सरकार को देशहित में मीडिया के लिए स्वतंत्र रूप से काम करने का माहौल बनाना चाहिए और इसे बढ़ावा देना चाहिए. मीडिया का संवैधानिक और नैतिक कर्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि नागरिक सच्चाई जानें. मीडिया के अधिकारों को कमजोर करना खुद लोकतंत्र को कमजोर करना है. इसलिए सरकार को प्रस्तावित संशोधनों को वापस लेने पर विचार करना चाहिए.’
ज्ञात हो कि इससे पहले बुधवार को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी सरकार से आग्रह किया था कि सोशल मीडिया कंपनियों को पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) द्वारा फर्जी माने जाने वाले समाचारों को हटाने के लिए निर्देश देने वाले आईटी नियमों में संशोधन के मसौदे को हटाया जाए.
गिल्ड ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि फर्जी समाचारों के निर्धारण का जिम्मा केवल सरकार के हाथों में नहीं हो सकता है… गिल्ड को लगता है कि यह (ड्राफ्ट संशोधन) प्रेस की सेंसरशिप के समान है.
गौरतलब है कि 2019 में स्थापित पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई, जो सरकार और इसकी योजनाओं से संबंधित खबरों को सत्यापित करती है, पर वास्तविक तथ्यों पर ध्यान दिए बिना सरकारी मुखपत्र के रूप में कार्य करने का आरोप लगता रहा है.
मई 2020 में न्यूज़लॉन्ड्री ने ऐसे कई उदाहरण बताए थे, जहां पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई वास्तव में तथ्यों के पक्ष में नहीं थी, बल्कि सरकारी लाइन पर चल रही थी.
फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा का भी कहना है कि समस्या यह भी है कि पीआईबी किन खबरों का फैक्ट-चेक करने का फैसला करता है और किनको नजरअंदाज करता है.
उन्होंने न्यूजलॉन्ड्री से कहा, ‘मुद्दा यह है कि पीआईबी फैक्ट चेक इकाई क्या सत्यापित करने का फैसला करती है. यदि आप पीआईबी द्वारा किए गए फैक्ट-चेक देखते हैं तो कुछ अपवादों को छोड़कर वे सरकार की छवि को नुकसान पहुंचने से बचाने की कोशिश करते हैं. वे उन चुनिंदा खबरों का फैक्ट-चेक करते हैं जो स्वभाव से राजनीतिक हैं और सत्तारूढ़ पार्टी के लिए आलोचनात्मक हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यह कहना कि केवल पीआईबी फैक्ट-चेकिंग इकाई ही यह तय करेगी कि क्या सच है और क्या झूठ है, बताता है कि केवल सरकार के खिलाफ गलत सूचना को हटाया जाएगा. अन्य सभी गलत सूचनाओं को ऑनलाइन बने रहने की अनुमति होगी.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)