पटना हाईकोर्ट ने यह आदेश उस याचिका पर दिया है, जिसमें कहा गया है कि बिहार में खुलेआम फ़र्ज़ी तरीके से मदरसों का संचालन किया जा रहा है और सरकारी अनुदान भी लिया जा रहा है. अदालत ने सरकार से कथित जाली दस्तावेज़ों के आधार पर 609 मदरसों को अनुदान जारी करने की चल रही जांच को चार सप्ताह के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया है.
पटना: पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार से कथित रूप से जाली दस्तावेजों के आधार पर 609 मदरसों को अनुदान जारी करने की चल रही जांच को चार सप्ताह के भीतर पूरा करने और तब तक इन पंजीकृत संस्थानों को दी जाने वाली रकम रोकने का निर्देश दिया है.
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और जस्टिस पार्थ सारथी की खंडपीठ ने मोहम्मद अलाउद्दीन बिस्मिल की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को यह कहते हुए फटकार लगाई कि सरकार जांच के परिणाम को रिकॉर्ड पर रखने से कतरा रही है. इसमें सिर्फ इतना कहा गया कि जिलाधिकारियों को रिमाइंडर भेजे गए हैं.
पीठ ने मंगलवार को कहा, ‘यह एक समय-सीमा के भीतर जांच पूरी नहीं करने के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं है, खासकर जब सरकार ने वर्ष 2020 में अकेले सीतामढ़ी जिले में मदरसा अधिनियम के तहत पंजीकृत कम से कम 88 शैक्षणिक संस्थानों के संबंध में अनुदान को रद्द कर दिया था.’
शिक्षा विभाग ने पिछले साल अनुदान प्राप्त करने वाले 609 शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति की जांच के लिए समितियों का गठन किया था.
आदेश में कहा गया, ‘विभाग 17 सितंबर 2021 के संचार द्वारा गठित तीन सदस्यीय समितियों के सभी अध्यक्षों की एक बैठक बुलाएगा, जिसमें आगे के निर्देश के साथ शीघ्र आधार पर जांच पूरी करने का निर्देश दिया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इसमें चार हफ्ते से ज्यादा का समय न लगे.’
अदालत ने कहा कि जब तक कानून और सरकारी प्रस्तावों के वैधानिक प्रावधानों की पात्रता और अनुपालन के संबंध में व्यक्तिगत जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक 609 शिक्षण संस्थानों के पक्ष में सहायता अनुदान के रूप में राशि जारी नहीं की जाएगी.
अदालत ने पुलिस को भी इस संदर्भ में दर्ज एफआईआर पर जांच तेजी से पूरी करने के लिए कहने के साथ ही प्रदेश के पुलिस प्रमुख को दो हफ्ते के अंदर नवीनतम स्थिति रिपोर्ट के संबंध में हलफनामा दाखिल करने को कहा है.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, बिहार के सीतामढ़ी जिले के याचिकाकर्ता मोहम्मद अलाउद्दीन बिस्मिल ने एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि राज्य में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मदरसों को फर्जी मान्यता दी जा रही है.
याचिकाकर्ता के वकील राशिद इजहार ने अदालत को बताया कि माध्यमिक शिक्षा के विशेष निदेशक मो. तसनीमुर रहमान की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी अनुदान लेने वाले मदरसों पर सीतामढ़ी जिले में करीब 88 मदरसों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सरकारी अनुदान लिया है.
कोर्ट ने पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) से जांच की पूरी रिपोर्ट कोर्ट को देने को कहा है.
याचिका में आगे कहा गया है कि राज्य में खुलेआम फर्जी तरीके से मदरसों का संचालन किया जा रहा है और सरकारी अनुदान वसूला जा रहा है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, अदालत ने मामले की सुनवाई की अगली तारीख 14 फरवरी तय की. अदालत ने कहा कि मदरसा अधिनियम के तहत 2,459 से अधिक शैक्षणिक संस्थान पंजीकृत हैं.
हाईकोर्ट ने सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि सहायता अनुदान जारी न करने या वैधानिक प्रावधानों का पालन न करने के कारण शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने के परिणामस्वरूप कोई भी बच्चा पीड़ित न हो. अदालत ने कहा, ‘एक विशेष उम्र तक के प्रत्येक बच्चे को शिक्षित होने का संवैधानिक और वैधानिक अधिकार है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)