आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गणतंत्र दिवस समारोह में कहा कि बाबा साहेब ने कहा था कि देश आपस में लड़कर ग़ुलाम हो गया, किसी दुश्मन के सामर्थ्य के कारण नहीं. हम आपस में लड़ते रहे, इसलिए गुलाम हुए.. हमारा बंधुवाद समाप्त हो गया. स्वतंत्रता और समता एक साथ लानी है तो बंधुभाव लाना चाहिए.
जयपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश में हर व्यक्ति स्वतंत्र है और एक दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करना और उसकी रक्षा करना ही हमें भारतीय बनाता है.
जयपुर के पास जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में गणतंत्र दिवस समारोह में भागवत ने कहा कि आज के दिन लोगों को संविधान सभा के पूर्ण विचार विनिमय के बाद बना संविधान लोकार्पण करते हुए डॉ. आंबेडकर ने जो दो भाषण संसद में किए हैं उसे सबको एक बार पूरा पढ़ना चाहिए.
भागवत ने कहा कि आंबेडकर ने बताया कि कर्त्तव्य क्या है. उन्होंने बताया कि अब देश में किसी भी प्रकार गुलामी नहीं है, रूढ़िगत गुलामी भी नहीं है, अंग्रेज भी चले गए हैं, लेकिन सामाजिक विषमता के चलते जो गुलामी आई थी उसको हटाने के लिए राजनीतिक समानता और आर्थिक समानता का प्रावधान हमारे संविधान में कर दिया गया है.
उन्होंने कहा, ‘बाबा साहेब ने कहा कि अपना देश आपस में लड़कर गुलाम हो गया, किसी दुश्मन के सामर्थ्य के कारण नहीं. हम लोग आपस में लड़ते रहे, इसलिए गुलाम हो गए.. हमारा बंधुवाद समाप्त हो गया. स्वतंत्रता और समता एक साथ लानी है तो दूसरा इलाज नहीं, बंधुभाव लाना चाहिए. इसलिए स्वतंत्रता और समानता के साथ बंधुत्व शब्द हमारे संविधान में है.’
उन्होंने कहा कि बाबा साहब कहते थे कि उस बंधुत्व भाव को संपूर्ण देश में प्रचलित करना पड़ेगा.
द हिंदू के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘अगर हम चाहते हैं कि भारत में स्वतंत्रता और समानता एक साथ फले-फूले, तो लोगों के बीच भाईचारे को मजबूत करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.’
भागवत ने कहा कि सभी को भारत को ज्ञानियों का देश बनाने का संकल्प लेना चाहिए, ऐसे लोगों का देश जो लगातार सक्रिय हैं और दुनिया के हितों के बारे में चिंतित हैं.
उन्होंने कहा, ‘एक गणराज्य के नाते हम अपने देश को ज्ञानवान लोगों का देश बनाएंगे.. त्यागी लोगों का देश बनाएंगे और दुनिया के हित में सतत कर्मशील रहने वाले लोगों का देश बनाएंगे. हमारी सार्वभौम प्रभुसत्ता का प्रतीक तिरंगा हम उत्साह, आनंद और अभिमान से फहराते है. तिरंगे में ही हमारा गंतव्य नीहित है, हमको भारत को भारत के नाते दुनिया में बड़ा करना है.’
संघ प्रमुख ने कहा, ‘हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए? सबके साथ समानता का व्यवहार करें. हमें सभी की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए. अगर मैं आजाद हूं तो मुझे यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि बाकी सभी को भी आजादी है.’
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि संसद में सभी राज्यों से बहस और चर्चा अच्छी होती है लेकिन देश के विकास के लिए बहस को नफरत का कारण नहीं बनना चाहिए.
भागवत ने कहा, ‘कई राज्य संसद के अंदर समूह बनाते हैं और एक दूसरे की आलोचना करते हैं. यह ठीक है. लोकतंत्र में ऐसे ही चर्चा होती है और ऐसे ही समाधान मिलते हैं. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे विविधतापूर्ण देश में एकता और समानता होनी चाहिए.’
राष्ट्रीय ध्वज के रंगों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि केसरिया रंग की सबसे ऊपर की पट्टी भारत की प्रकृति का परिचायक है और वो हमारे सनातन जीवन का प्रतीक है. भगवा रंग (केसरिया रंग) ज्ञान, त्याग और कर्मशीलता का प्रतीक है.
उन्होंने कहा कि दिशा नहीं है तो ज्ञान घातक होता है…, क्योंकि विद्या विवाद का कारण बनती है और शक्ति दुर्बलों को कष्ट देने का कारण बनती है, इसलिए दिशा का होना अनिवार्य है और इसके लिए सर्वत्र पवित्रता का प्रतीक सफेद रंग हमारे ध्वज में दूसरा रंग है.
उन्होंने कहा कि देशवासियों को अंदर और बाहर से शुचिता से युक्त बनना है क्योंकि जो अंदर-बाहर से पवित्र है वो कभी दूसरों का बुरा नहीं चाहता है, बल्कि भलाई करना चाहता है.
उन्होंने कहा कि जो उदार बुद्धि और शुद्ध मन से आगे बढ़ते हैं, पवित्र व्यवहार करते हैं, वे तो सबको अपना मानकर चलते हैं, नागरिकों को ऐसा बनना है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)