भारत ने सिंधु जल संधि की समीक्षा और संशोधन करने को लेकर पाकिस्तान को नोटिस भेजा

सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में की गई थी. संधि के तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया था. पूर्वी नदियों का औसत 33 मिलियन एकड़ फुट जल पूरी तरह इस्तेमाल के लिए भारत को दे दिया गया और पश्चिमी नदियों का क़रीब 135 मिलियन एकड़ फुट पानी पाकिस्तान को दिया गया.

/
लेह के पास इंडस नदी. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया/KennyOMG)

सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में की गई थी. संधि के तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया था. पूर्वी नदियों का औसत 33 मिलियन एकड़ फुट जल पूरी तरह इस्तेमाल के लिए भारत को दे दिया गया और पश्चिमी नदियों का क़रीब 135 मिलियन एकड़ फुट पानी पाकिस्तान को दिया गया.

लेह के पास इंडस नदी. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया/KennyOMG)

नई दिल्ली: भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि की समीक्षा और उसमें संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस भेजा है. पाकिस्तान को पहली बार यह नोटिस छह दशक पुरानी इस संधि को लागू करने से जुड़े विवाद निपटारा तंत्र के अनुपालन को लेकर अपने रुख पर अड़े रहने के कारण भेजा गया. सरकारी सूत्रों ने शुक्रवार (27 जनवरी) को यह जानकारी दी.

सूत्रों ने बताया कि यह नोटिस भारत के सिंधु जल आयुक्त के माध्यम से संधि के प्रावधानों के तहत उनके पाकिस्तानी समकक्ष को 25 जनवरी को भेजा गया. यह नोटिस इसलिए भेजा गया है, ताकि 19 सितंबर 1960 को किए गए इस समझौते में बदलाव को लेकर प्रक्रिया शुरू की जा सके.

एक सूत्र ने बताया कि इस नोटिस में सिंधु जल संधि के उल्लंघन में सुधार के वास्ते अंतर-सरकारी वार्ता शुरू करने के लिए पाकिस्तान से 90 दिन के भीतर जवाब मांगा गया है.

उन्होंने कहा कि संधि की समीक्षा और उसमें संशोधन के लिए भारत का नोटिस विवाद समाधान तंत्र तक ही सीमित नहीं है और पिछले 62 साल के अनुभवों के आधार पर संधि के विभिन्न प्रावधानों पर भी चर्चा हो सकती है.

यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है, जब करीब 10 महीने पहले विश्व बैंक ने किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े मुद्दे पर मतभेद के समाधान को लेकर तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने और मध्यस्थता अदालत की पीठ भेजने की दो अलग-अलग प्रक्रियाओं की घोषणा की थी.

गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की वार्ता के बाद 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किए थे. विश्व बैंक भी इस संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल था.

इस संधि के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भारत बिना रोक-टोक के इस्तेमाल कर सकता है. भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार उसे (भारत को) दिया गया.

समझा जाता है कि भारत द्वारा पाकिस्तान को यह नोटिस किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े मुद्दे पर मतभेद के समाधान को लेकर पड़ोसी देश के अपने रुख पर अड़े रहने के मद्देनजर भेजा गया है. यह नोटिस सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12(3) के प्रावधानों के तहत भेजा गया है.

सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान के साथ हुई सिंधु जल संधि और उसकी भावना को अक्षरश: लागू करने का भारत दृढ़ समर्थक व जिम्मेदार साझेदार रहा है.

उन्होंने बताया, ‘पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों एवं इसे लागू करने पर प्रतिकूल प्रभाव डाला और भारत को इसमें संशोधन के लिए उचित नोटिस जारी करने के लिए मजबूर किया.’

वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने का आग्रह किया था.

वर्ष 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव किया.

सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान का यह एकतरफा कदम संधि के अनुच्छेद-9 में विवादों के निपटारे के लिए बनाए गए तंत्र का उल्लंघन है.

इसी के अनुरूप, भारत ने इस मामले को तटस्थ विशेषज्ञ को भेजने का अलग से आग्रह किया.

सूत्र ने बताया, ‘एक ही प्रश्न पर दो प्रक्रियाएं साथ शुरू करने और इसके असंगत या विरोधाभासी परिणाम आने की संभावना एक अभूतपूर्व और कानूनी रूप से अस्थिर स्थिति पैदा करेगी, जिससे सिंधु जल संधि खतरे में पड़ सकती है.’

उन्होंने कहा कि विश्व बैंक ने 2016 में इसे माना था और दो समानांतर प्रक्रियाएं शुरू करने को रोकने का निर्णय लिया था, साथ ही भारत और पाकिस्तान से परस्पर सुसंगत रास्ता तलाशने का आग्रह किया था.

सूत्रों ने बताया कि भारत द्वारा लगातार परस्पर सहमति से स्वीकार्य रास्ता तलाशने के प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान ने वर्ष 2017 से 2022 के दौरान स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में इस पर चर्चा करने से इनकार कर दिया.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लगातार जोर देने पर विश्व बैंक ने हाल ही में तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत की प्रक्रियाएं शुरू कीं.

उन्होंने कहा कि एक ही मुद्दे पर समानांतर विचार किया जाना सिंधु जल संधि के प्रावधानों के दायरे में नहीं आता है.

सूत्रों ने कहा कि इस तरह से सिंधु जल संधि के प्रावधानों के उल्लंघन के मद्देनजर भारत संशोधन का नोटिस देने के लिए बाध्य हो गया.

भारत की आपत्ति के बाद विश्व बैंक ने तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने और मध्यस्थता अदालत की पीठ में भेजने की प्रक्रियाओं पर रोक लगा दी थी, लेकिन उसने मार्च 2022 में इस रोक को वापस ले लिया.

मार्च 2022 में जब दोनों समानांतर प्रक्रियाएं शुरू हुईं, तब भारत ने केवल तटस्थ विशेषज्ञ के साथ सहयोग किया और मध्यस्थता अदालत की प्रक्रिया में शामिल नहीं हुआ था.

सूत्रों ने बताया कि अब हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं कि अगर दोनों प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाया जाता है, तब इसके विरोधाभासी फैसले सामने आएंगे और संधि की अखंडता पर भी सवाल उठेंगे.

उन्होंने बताया कि संधि में संशोधन करने की तात्कालिक एवं कानूनी जरूरत का कारण यही है.

ज्ञात हो कि भारत और पाकिस्‍तान के बीच 1960 में हुई सिंधु नदी जल संधि के तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया. सतलुज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया, जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया.

रावी, सतलुज और ब्‍यास जैसी पूर्वी नदियों का औसत 33 मिलियन एकड़ फुट (एमएएफ) जल पूरी तरह इस्तेमाल के लिए भारत को दे दिया गया. इसके साथ ही पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का करीब 135 एमएएफ पानी पाकिस्तान को दिया गया.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारतीय नोटिस का जवाब देते हुए पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज़ ज़हरा बलूच ने कहा, ‘जैसा कि हम बोलते हैं, किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं पर पाकिस्तान की आपत्तियों पर द हेग में एक मध्यस्थता अदालत अपनी पहली सुनवाई कर रही है. मध्यस्थता न्यायालय संधि के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया है. इस तरह की मीडिया रिपोर्ट्स को मध्यस्थता न्यायालय की महत्वपूर्ण कार्यवाही से ध्यान नहीं हटाना चाहिए.’

2021 में संसदीय समिति ने केंद्र से सिंधु संधि पर फिर से बातचीत करने का आग्रह किया था

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे ‘अत्यावश्यक मुद्दों’ का हवाला देते हुए एक संसदीय स्थायी समिति ने 2021 में सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) पर फिर से बातचीत करने की सिफारिश की थी.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जल संसाधन पर विभागीय रूप से संबंधित स्थायी समितियों ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, ‘समिति का मानना है कि हालांकि सिंधु जल संधि समय की कसौटी पर खरी उतरी है, लेकिन उनका मत है कि संधि को 1960 के दशक में इसके समझौते के समय मौजूदा ज्ञान और प्रौद्योगिकी के आधार पर तैयार किया गया था. उस समय दोनों देशों का दृष्टिकोण नदी प्रबंधन और बांधों, बैराजों, नहरों और पनबिजली उत्पादन के माध्यम से पानी के उपयोग तक ही सीमित था.’

भाजपा सांसद संजय जायसवाल की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा था, ‘जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन आदि जैसे वर्तमान समय के अत्यावश्यक मुद्दों को संधि द्वारा ध्यान में नहीं रखा गया. इसे देखते हुए संधि पर फिर से बातचीत करने की आवश्यकता है, ताकि सिंधु बेसिन में पानी की उपलब्धता और अन्य चुनौतियों – जो संधि के तहत शामिल नहीं हैं – पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दूर करने के लिए किसी प्रकार की संस्थागत संरचना या विधायी ढांचा स्थापित किया जा सके.’

5 अगस्त 2021 को संसद में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने सिफारिश की कि केंद्र ‘पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि पर फिर से बातचीत करने के लिए आवश्यक कूटनीतिक उपाय’ करे.

समिति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हालांकि आईडब्ल्यूटी के तहत भारत को पश्चिमी नदियों पर 3.6 मिलियन एकड़-फीट (एमएएफ) तक जल क्षमता भंडारण बनाने का अधिकार है, लेकिन भारत द्वारा अब तक भंडारण क्षमता नहीं बनाई गई है.

समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि लगभग 20,000 मेगावाट की अनुमानित बिजली क्षमता में से, जिसे पश्चिमी नदियों की बिजली परियोजनाओं से प्राप्त किया जा सकता है, अभी तक केवल 3,482 मेगावाट की क्षमता का निर्माण किया गया है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि संधि भारत को पश्चिमी नदियों के पानी के माध्यम से 13,43,477 एकड़ के सिंचित फसल क्षेत्र (आईसीए) को विकसित करने का अधिकार प्रदान करती है. हालांकि, फसल वर्ष 2019-20 के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत द्वारा पश्चिमी नदियों पर विकसित आईसीए 7,59,859 एकड़ है.

इसमें कहा गया कि वनों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए समिति सिफारिश करती है कि भारत सरकार को सिंधु जल संधि के प्रावधानों का अधिकतम उपयोग करने की व्यवहार्यता की जांच करनी चाहिए.

कमेटी ने पंजाब और राजस्थान में नहरों के समुचित रखरखाव की कमी और उनकी जल धारण क्षमता पर इसके प्रभाव के बारे में भी चिंता व्यक्त की थी.

समिति की सिफारिशों पर 22 जुलाई 2022 को संसद में पेश की गई एक्शन टेकेन रिपोर्ट से पता चलता है कि जल शक्ति मंत्रालय ने सिंधु जल संधि पर फिर से बातचीत करने की आवश्यकता के संबंध में समिति की सिफारिशों को विदेश मंत्रालय के साथ साझा किया था.

जिसके बाद इस साल 25 जनवरी को भारत ने सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को एक नोटिस जारी किया था, जिस पर सितंबर 1960 में हस्ताक्षर किए गए थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq