विभिन्न अधिकार समूहों का कहना है कि बजट में विशेष रूप से सक्षम समुदाय के लिए कुछ अलग नहीं है. वहीं, कई वरिष्ठ नागरिक असुरक्षित हैं और उन तक पहुंचने के लिए विशेष प्रयासों की ज़रूरत है. बाल अधिकार संरक्षण से जुड़ी प्रमुख संस्था ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ ने कहा है कि लगता है कि बच्चे बजट की प्राथमिकता में छूट गए हैं.
नई दिल्ली: विभिन्न अधिकार समूहों ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि केंद्रीय बजट 2023-24 में हाशिये पर पड़े तबके, बच्चों, विशेष रूप से सक्षम लोगों व बुजुर्गों को देने लिए बहुत कम प्रावधान किए गए हैं.
नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर राइट्स ऑफ डिसएबल्ड (एनपीआरडी) ने एक बयान में दावा किया कि विशेष रूप से सक्षम समुदाय की लगातार उपेक्षा की गई है. उसमें कहा गया है, ‘जहां तक विशेष रूप से सक्षम समुदाय का संबंध है तो इस साल के बजट में भी कुछ अलग नहीं है.’
एनपीआरडी ने कहा कि पिछले साल की तुलना में इस क्षेत्र के लिए आवंटन में केवल एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि वित्त वर्ष 2022-2023 के लिए आवंटित 196 करोड़ रुपये की राशि का पूरा उपयोग नहीं हुआ.
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम को लागू करने के वास्ते योजना के लिए आवंटित रकम को 90 करोड़ रुपये कर 150 करोड़ रुपये कर दिया गया, जबकि यह पिछले साल 240.39 करोड़ रुपये (बजट अनुमान) थी.
एनपीआरडी ने कहा कि यह भी दुखद है कि भारतीय राष्ट्रीय न्यास और पुर्नवास परिषद जैसी संसद के अधिनियम के तहत स्थापित की गई अहम स्वायत्त संस्थाओं का आवंटन भी जस का तस है.
इसने विशेष रूप से सक्षम लोगों के लिए प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में आय मानदंड को हटाने के सरकार के कदम की भी आलोचना की.
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांग पेंशन योजना के लिए आवंटन में कोई बदलाव नहीं किया गया है और यह पिछले की तरह 290 करोड़ रुपये है.
एनपीआरडी ने कहा, ‘सरकार ने पेंशन का दायरा और राशि दोनों नहीं बढ़ाए. राशि एक दशक से अधिक वक्त से नहीं बढ़ी है और यह 300 रुपये है. इसके दायरे में सिर्फ 3.8 फीसदी विशेष रूप से सक्षम आबादी आती है, जिसकी पहचान 2011 की जनगणना में की गई थी.’
बुजुर्गों के जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले ‘हेल्पएज इंडिया’ ने वेतनभोगी मध्य वर्ग को कर राहत देने का स्वागत किया और कहा कि इससे वरिष्ठ नागरिकों को भी फायदा होगा.
इस योजना का लाभ उठाने के लिए 80 प्रतिशत या उससे अधिक की शारीरिक अक्षमता होनी चाहिए और बीपीएल श्रेणी के अंतर्गत आना चाहिए.
संगठन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रोहित प्रसाद ने कहा, ‘हम वरिष्ठ नागरिकों के लिए लागू कुछ प्रावधानों से संबंधित विशिष्ट कर उपायों और मौजूदा सीमाओं में वृद्धि की उम्मीद कर रहे थे.’
उन्होंने कहा, ‘कई वरिष्ठ नागरिक अनौपचारिक क्षेत्र में हैं और कर दायरे से बाहर हैं और या तो गरीबी रेखा के करीब या उससे नीचे जी रहे हैं, उनके लिए हम विशेष रूप से सामाजिक सुरक्षा उपायों के पक्षधर थे, जिससे उन्हें लाभ होता.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, संगठन ने कहा कि कई वरिष्ठ नागरिक असुरक्षित हैं और उन तक पहुंचने के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत है.
प्रसाद ने कहा, ‘इसलिए हम समावेशी विकास, बुनियादी ढांचे के निर्माण और अंतिम मील तक पहुंचने पर दिए गए ध्यान की सराहना करते हैं. हम आशा करते हैं कि सरकार बुजुर्गों के लिए विशिष्ट उपाय करेगी.’
लगता है कि बच्चे बजट की प्राथमिकता में छूट गए: क्राई
बाल अधिकार संरक्षण से जुड़ी प्रमुख संस्था ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ (क्राई) ने बुधवार (1 फरवरी) को कहा कि बजट कोविड-19 महामारी के बाद देश के समावेशी विकास की दिशा में एक मजबूत रूपरेखा तैयार करने की कोशिश को दर्शाता है, लेकिन ऐसा लगता है कि इस बजट की प्राथमिकता में बच्चे पीछे छूट गए हैं.
‘क्राई’ की क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर) सोहा मोइत्रा ने एक बयान में कहा, ‘केंद्रीय बजट कोविड-19 महामारी के बाद देश के समावेशी विकास की दिशा में एक मजबूत रोडमैप बनाने की पुरजोर कोशिश को दर्शाता है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के बच्चे जो की इस देश की कुल आबादी का एक तिहाई से अधिक हिस्सा हैं, इस बजट की प्राथमिकता में पीछे छूट गए हैं.’
उन्होंने कहा कि बाल शिक्षा और स्वास्थ्य के बजट में इस वर्ष कुछ वृद्धि देखी गई है, लेकिन मिशन वात्सल्य (जो की बच्चों की सुरक्षा पर केंद्रित है) के लिए आवंटन (1,472.17 करोड़) में कोई बदलाव नहीं किया गया है.
मोइत्रा ने कहा, ‘यह वास्तव में एक सकारात्मक खबर है कि केंद्रीय बजट वित्त वर्ष 2023-24 में कुल राजकोषीय परिव्यय 2022-23 से 14.15 प्रतिशत बढ़ गया है. साथ ही कुल बाल बजट में भी 11054.20 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है.’
उन्होंने कहा, ‘कुल मिलाकर यह लगता है कि बहुआयामी गरीबी की छाया में रहने वाले कमजोर तबके के बच्चों के समग्र विकास की बात आने पर केंद्रीय बजट समाज के अंतिम छोर तक पहुंचने में विफल प्रतीत होता है.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, क्राई ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि भारत की कुल आबादी के एक तिहाई से अधिक बच्चे बड़े पैमाने पर बजट से बाहर रह गए हैं. केंद्रीय बजट में बाल बजट के आवंटन के हिस्से में वित्त वर्ष 2022-23 के 2.35 प्रतिशत से 2023-24 के बजट में 2.30 प्रतिशत तक यानी 0.05 प्रतिशत अंक की गिरावट आई है.
क्राई की सीईओ पूजा मारवाह ने कहा, ‘आगे के विश्लेषण से पता चलता है कि जीडीपी के संदर्भ में 2023-24 बजट अनुमान में बाल बजट का प्रतिशत हिस्सा घटकर 0.34 प्रतिशत हो गया है, जबकि 2022-23 बजट अनुमान में 0.36 प्रतिशत था.’
उन्होंने कहा, ‘कुल मिलाकर जैसा कि बाल-केंद्रित कार्यक्रमों और पहलों में विस्तृत बजट आवंटन से पता चलता है, ऐसा लगता है कि बहु-आयामी गरीबी की छाया में रहने वाले कमजोर बच्चों के समग्र विकास की बात आने पर केंद्रीय बजट अंतिम छोर तक पहुंचने में विफल रहेगा.’
वहीं, सेव द चिल्ड्रन, इंडिया के सीईओ सुदर्शन सुचि ने बच्चों और किशोरों के लिए राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय की घोषणा के माध्यम से पढ़ने की संस्कृति का निर्माण करके बच्चों की शिक्षा पर बजट के जोर की सराहना की.
हालांकि, उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के भाषण में बच्चों की सुरक्षा और पोषण संबंधी जरूरतों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)