ज़िला और निचली अदालतों में 20 साल से अधिक समय से क़रीब 6.72 लाख मामले लंबित: किरेन रिजिजू

क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में बताया कि देशभर की विभिन्न अदालतों में चार लाख से अधिक ऐसे मामले है, जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित हैं. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार उच्च न्यायालय और ज़िला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में 25 वर्षों से अधिक समय से लंबित वादों की संख्या क्रमशः 1,24,810 और 2,76,208 है.

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(इलस्ट्रेशन: द वायर)

क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में बताया कि देशभर की विभिन्न अदालतों में चार लाख से अधिक ऐसे मामले है, जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित हैं. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार उच्च न्यायालय और ज़िला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में 25 वर्षों से अधिक समय से लंबित वादों की संख्या क्रमशः 1,24,810 और 2,76,208 है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: सरकार ने शुक्रवार को लोकसभा में बताया कि देश की विभिन्न जिला और अधीनस्थ अदालतों में 20 साल से अधिक समय से करीब 6.72 लाख मामले लंबित हैं. वहीं, उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या 2,94,547 है.

कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा, ‘27 जनवरी, 2023 को एकीकृत मामला प्रबंधन सूचना प्रणाली (आईसीएमआईएस) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, उच्चतम न्यायालय में 20 वर्ष से अधिक समय से लंबित मामलों की संख्या 208 है.’

उन्होंने कहा, ‘एक फरवरी, 2023 को राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार (25) उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या 2,94,547 और जिला तथा अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 6,71,543 है जो 20 से अधिक वर्षों से लंबित हैं.’

रिजिजू ने कहा कि अदालती मामलों के इतने लंबे समय से लंबित रहने के विषय पर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं हैं.

कानून मंत्री ने कहा, ‘अदालती मामलों के लंबित रहने की समस्या के अनेक पहलू हैं. देश की आबादी में वृद्धि और जनता के बीच उनके अधिकारों को लेकर जागरूकता के कारण हर साल तेजी से बड़ी संख्या में नए मामले दायर किए जा रहे हैं.’

अदालतों में चार लाख से अधिक ऐसे मामले जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित

उन्होंने बताया कि देश भर के विभिन्न अदालतों में चार लाख से अधिक ऐसे मामले है, जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित हैं. उनके मुताबिक ऐसे लंबित मामलों की कुल संख्या 4,01,099 है.

रिजिजू ने बताया, ‘27 जनवरी 2023 तक एकीकृत वाद प्रबंधन सूचना प्रणाली (आईसीएमआईएस) से प्राप्त डेटा के अनुसार भारत के उच्चतम न्यायालय में 25 वर्षों से अधिक समय तक लंबित मुकाबलों की संख्या 81 है.’

उन्होंने कहा कि 30 जनवरी 2023 तक राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध डेटा के अनुसार उच्च न्यायालय और जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में 25 वर्षों से अधिक समय तक लंबित वादों की संख्या क्रमशः 1,24,810 और 2,76,208 है.

यह पूछे जाने पर कि क्या न्याय के लिए लंबे समय तक चल रहे मुकदमों पर होने वाले खर्च का कोई अध्ययन कराया गया है, जिससे पता चल सके कि न्याय पाने में आम आदमी पर कितना आर्थिक दवाब पड़ता है, केंद्रीय मंत्री ने बताया कि ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया है.

उन्होंने बताया कि लंबित मामलों की समस्या एक बहुआयामी समस्या है जो देश की जनसंख्या में वृद्धि और जनता में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ ही साल दर साल नए मामलों की संख्या भी बढ़ रही है.

उन्होंने कहा कि न्यायालयों में बड़ी संख्या में लंबित मामलों के कई कारण है और इनमें अन्य बातों के साथ पर्याप्त संख्या में न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारियों की उपलब्धता, सहायक न्यायालय कर्मचारीवृंद और भौतिक अवसंरचना, बार-बार स्थगन और मॉनिटर करने की पर्याप्त व्यवस्था में कमी, सुनवाई के लिए ट्रैक और बहु मामले, साक्ष्यों की जटिलता, साक्ष्य की प्रकृति, साक्षियों और वादियों तथा नियमों एवं प्रक्रियाओं के उचित आवेदन सम्मिलित है.

रिजिजू ने कहा कि इसके अतिरिक्त वर्ष 2020 के आसपास आई कोविड-19 महामारी ने भी पिछले तीन वर्षों में लंबित मामलों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

उन्होंने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि आपराधिक न्याय प्रणाली विभिन्न अभिकरणों यानी पुलिस, फॉरेंसिक प्रयोगशाला, हस्तलेख विशेषज्ञ और विधिक चिकित्सा विशेषज्ञ की सहायता से कार्य करती है.

उन्होंने कहा कि संबद्ध अभिकरणों द्वारा आपसी सहायता प्रदान करने में देरी से भी मामलों के निपटान में विलंब होता है.

उल्लेखनीय है कि इससे पहले राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) के डेटा में सामने आया था कि 20 जनवरी तक देश की निचली अदालतों में लंबित चार करोड़ से अधिक मामलों में से लगभग 63 लाख मामले इसलिए लंबित थे क्योंकि वकील ही उपलब्ध नहीं हैं.

बीते दिसंबर महीने एक कार्यक्रम में इसी डेटा का हवाला देते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि लोगों को जिला अदालतों को अधीनस्थ न्यायपालिका के रूप में मानने की औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा पाना चाहिए, क्योंकि जिला अदालतें न केवल न्यायपालिका की रीढ़ हैं, बल्कि अनेक लोगों के लिए न्यायिक संस्था के रूप में पहला पड़ाव भी हैं.

उन्होंने यह भी जोड़ा था, ‘एनजेडीजी के आंकड़ों के अनुसार 63 लाख से अधिक मामले वकीलों की अनुपलब्धता के कारण लंबित माने जाते हैं. हमें यह सुनिश्चित करने के लिए वास्तव में बार के समर्थन की आवश्यकता है कि हमारी अदालतें अधिकतम क्षमता से काम करें.’

वहीं, इसी महीने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अभय एस. ओका ने एक कार्यक्रम में अदालतों में लंबित मामलों का संदर्भ देते हुए कहा था कि भारत में प्रति 10 लाख लोगों पर 50 न्यायाधीशों की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा प्रति दस लाख लोगों पर केवल 21 का है, जिससे अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है.

बीते दिसंबर महीने में ही केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए बताया था कि देश में अब तक लगभग पांच करोड़ लंबित मामले हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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