विक्टोरिया गौरी को हाईकोर्ट जज बनाने का विरोध, वकीलों ने राष्ट्रपति-कॉलेजियम को पत्र लिखा

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ में वकालत करने वालीं लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी के नाम को जज के तौर सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने हरी झंडी दी है. सोशल मीडिया पर उपलब्ध उनसे संबंधित भाषणों के अनुसार, वे भाजपा के महिला मोर्चा की महासचिव हैं. मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों के एक समूह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और कॉलेजियम को लिखे पत्र में कहा है कि गौरी की पदोन्नति ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित’ करती है.

लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी. (फोटो साभार: ट्विटर)

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ में वकालत करने वालीं लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी के नाम को जज के तौर सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने हरी झंडी दी है. सोशल मीडिया पर उपलब्ध उनसे संबंधित भाषणों के अनुसार, वे भाजपा के महिला मोर्चा की महासचिव हैं. मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों के एक समूह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और कॉलेजियम को लिखे पत्र में कहा है कि गौरी की पदोन्नति ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित’ करती है.

भाजपा के एक कार्यक्रम में लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी (बीच में). (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों के एक समूह ने हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी की प्रस्तावित पदोन्नति के खिलाफ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम दोनों को अभ्यावेदन भेजा है.

विक्टोरिया गौरी 17 जनवरी को कॉलेजियम द्वारा मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति के लिए अनुशंसित पांच अधिवक्ताओं में से एक हैं.

जैसा कि रिपोर्टों में बताया गया है कि कथित तौर पर उनसे संबंध रखने वाले सोशल मीडिया एकाउंट और यूट्यूब पर उपलब्ध भाषणों के अनुसार, गौरी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की महिला इकाई की महासचिव हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि क्या गौरी अभी भी राजनीतिक दल से जुड़ी हैं. आर्टिकल 14 की एक रिपोर्ट में गौरी द्वारा दिए गए कई अल्पसंख्यक विरोधी बयानों का भी विवरण दिया गया है.

अपने पत्र में मद्रास हाईकोर्ट बार के सदस्यों ने कहा है कि गौरी की पदोन्नति ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित’ करती है और इस आरोप के समर्थन में उनके द्वारा साक्षात्कारों में की गईं कई टिप्पणियों का उल्लेख किया है.

पत्र में उल्लिखित गौरी द्वारा दिए गए बयानों में ये बयान भी शामिल है:

विश्व स्तर पर वे इस्लामी समूह को ईसाई समूहों की तुलना में अधिक खतरनाक पाते हैं, लेकिन जहां तक भारत का सवाल है, मैं कहना चाहूंगी कि ईसाई समूह इस्लामिक समूहों की तुलना में अधिक खतरनाक है. धर्म परिवर्तन खासकर लव जिहाद के मामले में दोनों समान रूप से खतरनाक हैं. एक हिंदू का एक मुस्लिम से शादी… एक हिंदू लड़की का एक मुस्लिम लड़के से शादी, जब तक वे एक दूसरे के साथ प्यार से रह रहे हैं, मुझे कोई आपत्ति नहीं है.

लेकिन अगर मैं अपनी लड़की हिंदू को उसके साथ उसकी पत्नी के रूप में नहीं पाती हूं. इसके बजाय अगर मुझे अपनी लड़की सीरियाई आतंकवादी शिविरों में मिलती है, तो मुझे आपत्ति है और इसे ही मैं लव जिहाद के रूप में परिभाषित करती हूं.

वकीलों ने कहा है कि ‘अल्पसंख्यकों के प्रति इतनी तीव्र शत्रुता रखने वाले व्यक्ति के नाम को जज के तौर पर आगे बढ़ाना परेशान करने वाला है.’ उन्होंने तर्क दिया कि एक मुस्लिम या ईसाई समुदाय का याचिकाकर्ता अगर उनकी (गौरी की) अदालत में पेश होता है तो उसे शायद ही न्याय मिले.

पत्र में कहा गया है, ‘एक न्यायाधीश संवैधानिक अधिकारों का संरक्षक होता है और इसका विध्वंसक नहीं हो सकता. इसलिए हम यह कहने के लिए मजबूर हैं कि एक ऐसे व्यक्ति को हाईकोर्ट के जज के तौर पर नियुक्त करना जो एक पूरे समुदाय के प्रति कटुता और शत्रुता रखता है, न्यायपालिका को गंभीर नुकसान पहुंचाया.’

पूरा पत्र नीचे पढ़ें.

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वरिष्ठ वकील एनजीआर प्रसाद, आर वैगाई, अन्ना मैथ्यू, डी. नागसैला और सुधा रामलिंगम समेत 22 वकीलों के हस्ताक्षर वाले ज्ञापन में कहा गया है कि गौरी ने खुद ही स्वीकार किया है कि वह भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की महासचिव हैं.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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