केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा संचालित मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फेलोशिप योजना के लाभार्थियों को महीनों से उनकी अनुदान राशि न मिलने के चलते उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. कुछ तो अपनी पढ़ाई छोड़ने पर भी विचार कर रहे हैं. सरकार द्वारा पिछले दिसंबर में कहा गया था कि अब से इस फेलोशिप को बंद किया जा रहा है.
नई दिल्ली: मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेलोशिप (एमएएनएफ) के लाभार्थियों को बीते कुछ समय से फेलोशिप की राशि नहीं मिल रही है.
कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय (गांदेरबल) के पीएचडी छात्र 27 वर्षीय जीशान अहमद शेख भी फेलोशिप की राशि न पाने वालों में से एक हैं.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, जीशान को एमएएनएफ के तहत हर महीने 33,700 रुपये मिल रहे थे. जिनसे वह न सिर्फ अपनी शिक्षा का खर्च उठा रहे थे, बल्कि अपने छोटे भाई-बहन की स्कूल की फीस भी भर रहे थे.
अगस्त 2022 से जीशान यह खर्च रिश्तेदारों और दोस्तों से पैसा उधार लेकर पूरा कर रहे हैं क्योंकि उन्हें फेलोशिप की राशि के वितरण का इंतजार है.
दिसंबर 2021 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (यूजीसी नेट) पास करने वाले जीशान फरवरी 2022 से एमएएनएफ के लिए पात्र हुए. उनका कहना है कि उन्हें अब तक केवल एक बार अनुदान मिला है और उसमें से अधिकांश ब्याज सहित लिए गए ऋण को चुकाने में चला गया.
कश्मीर में एक ठेकेदार के बेटे जीशान अपने परिवार में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़ देनी चाहिए और काम करना शुरू कर देना चाहिए ताकि वह अपने पिता की मदद कर सकें.
जीशान कहते हैं, ‘ऐसा महसूस होता है कि मैं किसी ऐसी चीज के लिए भीख मांग रहा हूं जिसे मैंने कमाया है और उसके योग्य हूं.’
उनका आरोप है कि इस योजना को (बंद करने से पहले) चलाने वाले अल्पसंख्यक मंत्रालय ने उनके ईमेल का कभी जवाब नहीं दिया और जब उन्होंने लैंडलाइन नंबर पर फोन लगाया तो अधिकारियों ने उनके साथ बदसलूकी की.
जीशान की तरह ही देश भर के सैकड़ों पीएचडी के छात्र एमएएनएफ से फंडिंग मिलने का इंतजार कर रहे हैं.
एमएएनएफ केंद्र सरकार द्वारा मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, बौद्ध और जैन सहित अल्पसंख्यक समुदायों को प्रदान की जाने वाली पांच साल की फेलोशिप है. यह योजना संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा सच्चर समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन के एक हिस्से के रूप में शुरू की गई थी.
सरकार द्वारा लोकसभा में साझा किए गए यूजीसी के आंकड़ों के अनुसार, 2014-15 और 2021-22 के बीच एमएएनएफ योजना के तहत लगभग 6,722 उम्मीदवारों का चयन किया गया था और इस अवधि में 738.85 करोड़ रुपये की फेलोशिप वितरित की गई थी.
मुंबई की कंवलप्रीत कौर (35) को भी आखिरी बार अगस्त 2022 में ही फेलोशिप की राशि मिली थी. अब उन्हें अपने परिवार को यह समझाने में मुश्किल हो रही है कि वे उन्हें अपने सपने पूरे करने दें और शादी का दबाव न बनाएं.
वे कहती हैं, ‘हमारे समुदाय में कम उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती है. मैं इस संस्कृति के खिलाफ लड़ी और अपने पैसों से अपने सपने पूरे किए. लेकिन ऐसे हालात में जब हमें छह-सात महीने से फेलोशिप नहीं मिल रही है, गुजारा करना मुश्किल हो गया है.’
उन्होंने कहा कि एमएएनएफ फेलोशिप अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिए एक वरदान है और इसे बंद नहीं किया जाना चाहिए.
गौरतलब है कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने दिसंबर 2022 में लोकसभा को बताया था कि एमएएनएफ योजना को बंद किया जा रहा है. अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा है कि यह फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि एमएएनएफ योजना कई अन्य योजनाओं के साथ ओवरलैप हो रही थी.
वित्तीय वर्ष 2023-24 में एमएएएफ के अलावा अल्पसंख्यकों के लिए कई अन्य योजनाओं के बजट में काफी कटौती की गई है. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए केंद्रीय बजट का अनुमान 2022-23 में 5,020.50 करोड़ रुपये था. इस बार, मंत्रालय को 3,097 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले साल की तुलना में 38 फीसदी कम है.
एमएएनएफ प्राप्त करने वालीं केरल की नसीरा एनएम दो बच्चों की मां भी हैं. उनका कहना है, ‘सरकार कैसे कह सकती है कि फेलोशिप की ओवरलैपिंग हो रही है, जबकि हम आधार पहचान के साथ नामांकन करते हैं. यूआईडी (विशिष्ट पहचान) के साथ नामांकित होने पर भी सरकार ओवरलैपिंग को सुव्यवस्थित करने में सक्षम नहीं है तो सरकार क्या करेगी?’
नसीरा ने आरोप लगाया कि अन्य राष्ट्रीय फेलोशिप- जैसे कि अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप (एनएफओबीसी), अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप योजना (एनएफएससी) आदि- की तुलना में एमएएनएफ में अनुदान के वितरण में होने वाली देरी काफी लंबी है.
नसीरा ने अल्पसंख्यक मंत्रालय को लिखे एक पत्र में लिखा, ‘फेलोशिप में देरी के कारण हमने अत्यधिक मानसिक और वित्तीय पीड़ा का अनुभव किया है. यह सम्मान के साथ जीने के हमारे अधिकार को छीन रहा है.’
एमएएनएफ के स्कॉलर्स ने बताया कि फेलोशिप की अवधि के दौरान उन्हें कहीं और काम करने या कोई अन्य वजीफा या मानदेय प्राप्त करने की अनुमति नहीं है.
एजाज अहमद को अक्टूबर 2022 से योजना का लाभ नहीं मिला है, उन्होंने कहा, ‘अगर हम ऐसा करते हैं तो हमें सारा पैसा चुकाना होगा और हमारी फेलोशिप भी रद्द कर दी जाएगी. इसलिए हम गंभीर संकट में हैं.’
इस बीच, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा ने कहा है कि एनसीएम ने एमएएनएफ के लाभार्थियों से मिलने और उनकी चिंताओं का समाधान करने के लिए अपने उपाध्यक्ष केरसी कैखुशरू देबू की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है.
उल्लेखनीय है कि बीते सप्ताह केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में बताया था कि अल्पसंख्यक छात्रों के लिए बंद की गई प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति या एमएएनएफ को बहाल करने की कोई योजना नहीं है.