बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक पुलिस कॉन्स्टेबल को अपनी तलाक़शुदा पत्नी को प्रति माह छह हज़ार रुपये का गुज़ारा भत्ता देने का निर्देश देते हुए कहा कि पति होने के नाते याचिकाकर्ता पर अपनी पत्नी के भरण-पोषण की व्यवस्था करने का वैधानिक दायित्व है.
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि एक महिला तलाक के बाद भी घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत गुजारा भत्ता पाने की हकदार है.
जस्टिस आरजी अवाचत की एकल पीठ 24 जनवरी को पारित आदेश में सत्र अदालत के मई 2021 के फैसले को बरकरार रखते हुए एक पुलिस कॉन्स्टेबल को अपनी तलाकशुदा पत्नी को प्रति माह छह हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया.
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिका सवाल उठाती है कि क्या एक तलाकशुदा महिला अधिनियम के तहत गुजारा भत्ते का दावा करने के लिए पात्र है.
पीठ ने कहा कि ‘घरेलू संबंध’ की परिभाषा में दो व्यक्तियों के बीच ऐसे संबंध का जिक्र है, जिसके तहत वे विवाह या वैवाहिक प्रकृति के संबंधों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हुए थे और एक साझा घर में साथ रहते हैं या फिर अतीत में किसी भी समय साथ रह चुके हैं.
हाईकोर्ट ने कहा, ‘पति होने के नाते याचिकाकर्ता पर अपनी पत्नी के भरण-पोषण की व्यवस्था करने का वैधानिक दायित्व है. चूंकि, वह इसका इंतजाम करने में नाकाम रहा, प्रतिवादी/पत्नी के पास घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत याचिका दायर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.’
जस्टिस अवाचत ने कहा कि याचिकाकर्ता भाग्यशाली है कि उसे सिर्फ प्रति माह छह हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया है, जबकि वह पुलिस सेवा में कार्यरत है और हर महीने 25 हजार रुपये से अधिक वेतन पाता है.
याचिका के मुताबिक, पुलिस कॉन्स्टेबल और महिला की मई 2013 में शादी हुई थी तथा दोनों वैवाहिक मतभेदों के चलते जुलाई 2013 से अलग रहने लगे थे. बाद में उन्होंने तलाक ले लिया था. तलाक की अर्जी पर सुनवाई के दौरान महिला ने डीवी अधिनियम के तहत गुजारे भत्ते की मांग की थी.
इंडिया टुडे के मुताबिक, पत्नी ने आरोप लगाया था कि कॉन्स्टेबल ने उसके साथ बुरा बर्ताव किया और उसे ससुराल से निकाल दिया था. वहीं, कॉन्स्टेबल के अनुसार, पत्नी ने उसके साथ बुरा व्यवहार किया था और उसने खुद वैवाहिक घर छोड़ दिया था. इसलिए, उन्होंने तलाक के लिए याचिका दायर की थी. जिस पर पत्नी को कोई आपत्ति नहीं थी.
तलाक की याचिका पहले पति द्वारा दायर की गई थी. तलाक की याचिका लंबित होने के कारण पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत भरण-पोषण के लिए अर्जी दाखिल की.
परिवार अदालत ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने सत्र अदालत का रुख किया था. सत्र अदालत ने मई 2021 में उनकी मांग स्वीकार कर ली थी.
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दावा किया था कि चूंकि दोनों के बीच अब कोई वैवाहिक संबंध अस्तित्व में नहीं है, इसलिए उनकी पूर्व पत्नी अधिनियम के तहत किसी भी राहत की हकदार नहीं है.
उन्होंने आगे कहा कि शादी टूटने की तारीख तक भरण-पोषण से संबंधित सभी बकाया चुका दिया गया था.
महिला ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि एक पत्नी, जिसे तलाक दे दिया गया है या जो तलाक ले चुकी है, वह भी गुजारा भत्ता और अन्य राहत के लिए दावा करने की पात्र है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)