बिलक़ीस केस: सुप्रीम कोर्ट ने सज़ा माफ़ी के ख़िलाफ़ याचिका पर जल्द नई पीठ के गठन का आश्वासन दिया

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने बिलक़ीस बानो की वकील को आश्वासन दिया है कि उनकी याचिका सुन रही पीठ से जस्टिस बेला त्रिवेदी के अलग होने के चलते नई पीठ गठित कर जल्द ही मामले को सूचीबद्ध किया जाएगा.

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बिलकीस बानो. (फाइल फोटो: पीटीआई)

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने बिलक़ीस बानो की वकील को आश्वासन दिया है कि उनकी याचिका सुन रही पीठ से जस्टिस बेला त्रिवेदी के अलग होने के चलते नई पीठ गठित कर जल्द ही मामले को सूचीबद्ध किया जाएगा.

बिलकीस बानो. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार की शिकार बिलकीस बानो को मंगलवार को आश्वासन दिया कि नई पीठ के गठन के तुरंत बाद 11 दोषियों की सजा में छूट के खिलाफ उसकी याचिका पर सुनवाई की जाएगी.

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी परदीवाला की पीठ ने बिलकीस बानो का प्रतिनिधित्व कर रही वकील शोभा गुप्ता को आश्वासन दिया कि नई पीठ का गठन जल्द से जल्द किया जाएगा.

गुप्ता ने त्वरित सुनवाई के लिए मामले का विशेष उल्लेख किया और कहा कि भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) द्वारा एक नई पीठ गठित करने की आवश्यकता है, क्योंकि जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मैं जल्द से जल्द पीठ गठित करूंगा. मामले को जल्द ही सूचीबद्ध किया जाएगा.’

इससे पहले गुजरात सरकार द्वारा सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने वाली बानो की याचिका पर 24 जनवरी को शीर्ष अदालत में सुनवाई नहीं हो सकी थी, क्योंकि संबंधित न्यायाधीश निष्क्रिय इच्छामृत्यु से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही पांच-सदस्यीय संविधान पीठ में शामिल थे.

राज्य सरकार ने 11 अपराधियों की उम्रकैद की सजा में छूट देते हुए उन्हें समय से पहले रिहा करने का आदेश दिया था, जिसे बानो ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है.

मालूम हो कि बीते 15 अगस्त को अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा माफी दिए जाने के बाद बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था.

शीर्ष अदालत द्वारा इस बारे में गुजरात सरकार से जवाब मांगे जाने पर राज्य सरकार ने कहा था कि दोषियों को केंद्र की मंज़ूरी से रिहा किया गया. गुजरात सरकार ने कहा था कि इस निर्णय को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंजूरी दी थी, लेकिन सीबीआई, स्पेशल क्राइम ब्रांच, मुंबई और सीबीआई की अदालत ने सजा माफी का विरोध किया था.

अपने हलफनामे ने सरकार ने कहा था कि ‘उनका (दोषियों) व्यवहार अच्छा पाया गया था’ और उन्हें इस आधार पर रिहा किया गया कि वे कैद में 14 साल गुजार चुके थे. हालांकि, ‘अच्छे व्यवहार’ के चलते रिहा हुए दोषियों पर पैरोल के दौरान कई आरोप लगे थे.

एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि 11 दोषियों में से कुछ के खिलाफ पैरोल पर बाहर रहने के दौरान ‘महिला का शील भंग करने के आरोप’ में एक एफआईआर दर्ज हुई और दो शिकायतें भी पुलिस को मिली थीं. इन पर गवाहों को धमकाने के भी आरोप लगे थे.

इसी बीच दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने सजा माफी के विरोध में दायर याचिकाओं याचिकाओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देते हुए इस याचिका को ‘अव्यवहार्य और राजनीति से प्रेरित’ बताया था.

इन्हीं राधेश्याम शाह पर इससे कुछ दिन पहले मामले के एक प्रमुख गवाह को धमकाने के भी आरोप लगे थे. मामले के प्रमुख गवाह इम्तियाज घांची ने इस संबंध में भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखते हुए जान के खतरे के मद्देनजर सुरक्षा की मांग की थी.

दोषियों की रिहाई के बाद सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया था. इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की थी.

उस समय इस निर्णय से बेहद निराश बिलकीस ने भी इसके बाद अपनी वकील के जरिये जारी एक बयान में गुजरात सरकार से इस फैसले को वापस लेने की अपील की थी.

उल्लेखनीय है कि 13 दिसंबर 2022 को जस्टिस अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की पीठ ने बिलकिस की एक याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें मई 2022 के उसके आदेश की समीक्षा की मांग की गई थी.

शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से नौ जुलाई 1992 की नीति के तहत दोषियों की समय से पूर्व रिहाई की मांग वाली याचिका पर दो महीने के भीतर विचार करने को कहा था. बिलकीस बानो ने अपनी याचिका में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का यह विचार कि दोषियों को रिहा करने का फैसला करने के लिए गुजरात में ‘उपयुक्त सरकार’ है, दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के विपरीत है.

बिलकीस ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 (7) (बी) का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया है कि जिस राज्य के भीतर अपराधी को सजा सुनाई गई है, उस राज्य की सरकार को छूट पर भी विचार करना होगा. दोषियों को महाराष्ट्र की एक अदालत ने सजा सुनाई है. उन्होंने तर्क दिया था कि दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार को छूट आवेदन पर सुनवाई करनी चाहिए थी.

मई 2022 में इसी पीठ ने फैसला सुनाया था कि गुजरात सरकार के पास छूट के अनुरोध पर निर्णय लेने का अधिकार है क्योंकि अपराध गुजरात में हुआ था.

दिसंबर में इस मामले की सुनवाई होने पर जस्टिस त्रिवेदी ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. ज्ञात हो कि वे 2004 से 2006 तक गुजरात सरकार की कानून सचिव रही हैं.

मालूम हो कि 11 लोगों ने 3 मार्च 2002 को अहमदाबाद के पास एक गांव में 19 वर्षीय बिलकीस बानो के साथ गैंगरेप किया था. उस समय वह गर्भवती थीं और तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. हिंसा में उसके परिवार के 7 सदस्य भी मारे गए थे, जिसमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी.

बिलकीस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था.

केस की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया.

21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था.

सीबीआई की विशेष अदालत ने सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. एक आरोपी की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी.

इसके बाद 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सात लोगों को बरी करने के निर्णय को पलट दिया था. अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकीस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास देने का आदेश दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)