सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में टैक्स छूट से जुड़े अपने एक निर्णय में सिक्किमी नेपाली समुदाय का ज़िक्र करते हुए उन्हें ‘विदेशी मूल’ का बताया था. इसे लेकर सिक्किमी नेपाली समुदाय ने कड़ी आपत्ति जताई थी और राज्यभर में विरोध-प्रदर्शन हुए थे. कोर्ट ने इस संदर्भ को फैसले से हटाते हुए कहा कि त्रुटि इसलिए हुई क्योंकि मूल रिट याचिकाकर्ताओं ने इस तथ्य को अदालत के संज्ञान में नहीं लाया.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सिक्किम में कर छूट को लेकर 13 जनवरी के अपने फैसले से सिक्किम-नेपालियों को ‘विदेशी मूल के लोग’ बताने वाले संदर्भ को बुधवार को अपने आदेश से हटा दिया.
शीर्ष अदालत द्वारा अपने फैसले में की गई टिप्पणी के बाद सिक्किमी-नेपाली समुदाय ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी और इसे लेकर सिक्किम में विरोध प्रदर्शन हुआ था.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने सिक्किम और निजी पक्षों द्वारा टिप्पणी में संशोधन के अनुरोध वाली अर्जियों के साथ केंद्र की अर्जी पर सुनवाई करते हुए अपने फैसले को संशोधित किया. शुरू में शीर्ष अदालत ‘नेपालियों की तरह सिक्किम में बसे विदेशी मूल के व्यक्तियों’ के हिस्से को हटाने पर सहमत हुई, लेकिन केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से आग्रह किया कि पूरे वाक्य को हटा दिया जाए.
पीठ तब ‘भूटिया लेपचा और नेपाली की तरह सिक्किम में बसे विदेशी मूल के लोगों’ वाले हिस्से को हटाने पर सहमत हुई. पीठ ने कहा कि त्रुटि इसलिए हुई, क्योंकि मूल रिट याचिकाकर्ताओं ने याचिका में 25 से अधिक संशोधन किए, लेकिन इस तथ्य को अदालत के संज्ञान में नहीं लाया गया.
मेहता ने अदालत से यह स्पष्ट करने का अनुरोध किया कि निर्णय ने संविधान के अनुच्छेद 371एफ के पहलू को नहीं छुआ है, जो सिक्किम से जुड़े विशेष प्रावधानों से संबंधित है.
हालांकि, पीठ ने कहा कि इस तरह का स्पष्टीकरण अनावश्यक है, क्योंकि अनुच्छेद 371 एफ मामले का विषय नहीं था. अपने 13 जनवरी के फैसले में, शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘इसलिए सिक्किम के मूल निवासियों, अर्थात भूटिया-लेपचा और सिक्किम में बसे विदेशी मूल के व्यक्ति जैसे नेपाली या भारतीय मूल के व्यक्तियों के बीच कोई अंतर नहीं है, जो कई पीढ़ियों पहले सिक्किम में बस गए थे.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पीठ ने आगे कहा, ‘इस तथ्य को अदालत के ध्यान में लाना उनका (वकील का) कर्तव्य था. अब सुधार के लिए विविध आवेदन दाखिल किए गए हैं जैसे कि अदालत की ओर से कोई त्रुटि हुई हो. हालांकि, संबंधित पक्षों के वकील को सुनने के बाद हमें लगता है कि फैसले के कुछ पैराग्राफ में शब्दों को ठीक करना न्यायोचित और उचित है.’
पीठ की ओर से जस्टिस नागरत्ना ने 13 जनवरी का फैसला लिखा था. शीर्ष अदालत ने 13 जनवरी को फैसला सुनाया था कि सिक्किम की महिला को आयकर अधिनियम के तहत दी गई छूट से केवल इसलिए बाहर रखा गया, क्योंकि उसने एक अप्रैल, 2008 के बाद एक गैर-सिक्किम व्यक्ति से शादी की, यह ‘भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक’ है.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा था कि महिला कोई जागीर नहीं है और उसकी अपनी एक पहचान है. पीठ ने कहा था कि सिक्किम की महिला को इस तरह की छूट से बाहर करने का कोई औचित्य नहीं दिखाया गया है.
आयकर अधिनियम की धारा 10(26एएए) के तहत सिक्किम में या शेयर पर लाभांश या ब्याज के माध्यम से सिक्किम के व्यक्ति की आय को कर गणना के लिए कुल आय में शामिल नहीं किया जाता है.
बता दें कि फैसला आने के बाद इसका स्वागत तो किया गया लेकिन फैसले में ‘सिक्किमी नेपाली’ नागरिकों को लेकर की गई टिप्पणी की व्यापक आलोचना शुरू हो गई.
मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने भी प्रदर्शनों के बीच कोर्ट की टिप्पणी को लेकर भी चिंता जाहिर की थी. जनाक्रोश के बीच राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) सुदेश जोशी, जो शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने 1 फरवरी को इस्तीफा दे दिया था.
राज्य के राजनीतिक दलों ने महाधिवक्ता पर सिक्किम में बसी नेपाली आबादी और पूर्व में यहां बसे लोगों के बीच अंतर के बारे में अदालत को पर्याप्त जानकारी न देने का आरोप लगाया था.
इसके अगले ही दिन 2 फरवरी को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मणि कुमार शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के मामले से राज्य सरकार द्वारा सही से न निपटने के विरोध में इस्तीफा दे दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)