क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में बताया कि एक फरवरी, 2023 को राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार देश भर के उच्च न्यायालयों में 59,87,477 मामले लंबित हैं. इनमें से 10.30 लाख मामले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित हैं. सिक्किम हाईकोर्ट में सबसे कम 171 मामले हैं.
नई दिल्ली: सरकार ने संसद में बताया कि उच्चतम न्यायालय में 69,000 से अधिक मामले लंबित हैं, जबकि देश के 25 उच्च न्यायालयों में 59 लाख से अधिक मामले लंबित हैं.
गुरुवार को राज्यसभा में सरकार द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामले बढ़ रहे हैं जहां अधीनस्थ अदालतों में 4.32 करोड़ से अधिक केस लंबित हैं.
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट के ब्यौरे का हवाला देते हुए बताया कि एक फरवरी तक शीर्ष अदालत में 69,511 मामले लंबित थे.
उन्होंने कहा, ‘एक फरवरी, 2023 को राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार देश भर के उच्च न्यायालयों में 59,87,477 मामले लंबित हैं.’
उन्होंने कहा कि इनमें से 10.30 लाख मामले देश के सबसे बड़े उच्च न्यायालय यानी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित हैं. सिक्किम उच्च न्यायालय में सबसे कम 171 मामले हैं.
रिजिजू ने कहा कि सरकार ने न्यायपालिका द्वारा मामलों के त्वरित निपटान के उद्देश्य से ‘उपयुक्त वातावरण’ प्रदान करने के लिए कई पहल की हैं.
इससे पहले बीते तीन फरवरी को संसद में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया था कि देश की विभिन्न जिला और अधीनस्थ अदालतों में 20 साल से अधिक समय से करीब 6.72 लाख मामले लंबित हैं. वहीं, उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या 2,94,547 है.
इसके अलावा उन्होंने बताया था कि देश भर के विभिन्न अदालतों में चार लाख से अधिक ऐसे मामले है, जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित हैं. उनके मुताबिक ऐसे लंबित मामलों की कुल संख्या 4,01,099 है.
उल्लेखनीय है कि इससे पहले राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) के डेटा में सामने आया था कि 20 जनवरी तक देश की निचली अदालतों में लंबित चार करोड़ से अधिक मामलों में से लगभग 63 लाख मामले इसलिए लंबित थे क्योंकि वकील ही उपलब्ध नहीं हैं.
बीते दिसंबर महीने एक कार्यक्रम में इसी डेटा का हवाला देते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि लोगों को जिला अदालतों को अधीनस्थ न्यायपालिका के रूप में मानने की औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा पाना चाहिए, क्योंकि जिला अदालतें न केवल न्यायपालिका की रीढ़ हैं, बल्कि अनेक लोगों के लिए न्यायिक संस्था के रूप में पहला पड़ाव भी हैं.
उन्होंने यह भी जोड़ा था, ‘एनजेडीजी के आंकड़ों के अनुसार 63 लाख से अधिक मामले वकीलों की अनुपलब्धता के कारण लंबित माने जाते हैं. हमें यह सुनिश्चित करने के लिए वास्तव में बार के समर्थन की आवश्यकता है कि हमारी अदालतें अधिकतम क्षमता से काम करें.’
वहीं, इसी महीने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अभय एस. ओका ने एक कार्यक्रम में अदालतों में लंबित मामलों का संदर्भ देते हुए कहा था कि भारत में प्रति 10 लाख लोगों पर 50 न्यायाधीशों की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा प्रति दस लाख लोगों पर केवल 21 का है, जिससे अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है.
बीते दिसंबर महीने में ही केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए बताया था कि देश में अब तक लगभग पांच करोड़ लंबित मामले हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)