केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि गुजरात के किसानों की तुलना में बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के किसान बेहतर स्थिति में हैं. गुजरात के प्रत्येक किसान परिवार पर 56,568 रुपये का क़र्ज़ है, जबकि बिहार के एक किसान परिवार पर 23,534 रुपये का क़र्ज़ है.
नई दिल्ली: गुजरात में किसानों की स्थिति देश के अन्य राज्यों के किसानों के मुकाबले काफी ख़राब है.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, केंद्रीय कृषि मंत्रालय की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के किसान गुजरात के किसानों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं.
गुजरात के प्रत्येक किसान परिवार पर 56,568 रुपये का कर्ज है, जबकि बिहार के एक किसान परिवार पर 23,534 रुपये का कर्ज है. पश्चिम बंगाल में यह आंकड़ा 26,452, ओडिशा में 32,721, छत्तीसगढ़ में 21,443 और उत्तराखंड में 48,338 रुपये का है.
इसी तरह, गुजरात में एक किसान परिवार की मासिक आय 12,631 रुपये है जो बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के किसानों की मासिक आय की तुलना में बहुत कम है. यहां एक किसान परिवार फसलों से औसत 4,318 रुपये, पशुपालन से 3,477 रुपये, मजदूरी से 4,415 रुपये, किराए की जमीन से 53 रुपये और अतिरिक्त 369 रुपये प्रति माह कमाता है.
गुजरात में 66,02,700 परिवार हैं, जिनमें से 40,36,900 कृषि में काम करते हैं. यानी राज्य के 61.10% परिवार कृषि क्षेत्र में हैं. राज्य में औसत कृषक परिवार के पास 0.616 हेक्टेयर भूमि है. इस तरह प्रति परिवार जमीन के मामले में गुजरात देश में 10वें स्थान पर है.
इस अख़बार से बात करते हुए दक्षिण गुजरात के एक किसान रमेश पटेल ने कहा, ‘खाद के दाम बढ़ गए हैं. वहीं, बीज के दाम दोगुने से भी ज्यादा हो गए हैं. इसके अलावा, किसानी से जुड़ी मशीनरी और ट्रैक्टरों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले डीजल की कीमत में वृद्धि हुई है. नतीजतन, किसानों की कुल आय में कमी आई जबकि लागत बढ़ी है. अधिकांश किसान अपने पिछले कर्ज भी चुका रहे हैं.’
राजेंद्र खिमानी कृषि-विज्ञानी और गुजरात विद्यापीठ के पूर्व कुलपति हैं. उनका कहना है, ‘कृषि उत्पादों की कीमतें खेती की लागत के हिसाब से नहीं बढ़ती हैं. नतीजतन, किसान कर्जदार हो जाता है. खेती की लागत की कीमतों में 60 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है. जबकि पिछले तीन सालों में फसल की कीमतों में 30% से अधिक की वृद्धि नहीं हुई है. सीधे शब्दों में समझें, तो कृषि उत्पादन लागत और उत्पादन उत्पाद आय के बीच एक बड़ा अंतर दिखता है, जो किसानों का कर्ज बढ़ा रहा है.’
संसद में पेश आंकड़ों के अनुसार, गुजरात में कृषि ऋण 2019-20 के 73,228.67 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 में 96,963.07 करोड़ रुपये हो गया. बताया गया है कि बीते दो वर्षों के दौरान कृषि ऋण कार्यक्रम के तहत प्राप्त ऋण भी 45% तक बढ़े हैं. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, एक तिमाही के दौरान प्रति खाता कृषि ऋण (per-account agriculture credit) 1.71 लाख रुपये से बढ़कर 2.48 लाख रुपये हो गया है.
अर्थशास्त्री हेमंत शाह कहते हैं, ‘कर्ज का बढ़ता आंकड़ा गवाह है कि कई किसान काफी कर्ज में डूबे हुए हैं और जो हाशिये के वर्ग से हैं, कर्ज के चलते उनकी आया में वृद्धि नहीं होगी. सरकार ने दावा किया था कि 2022 से पहले किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी, लेकिन उनके अपने डेटा में दिख रहा है कि किसान कर्ज दोगुना हो गया है.’
रिपोर्ट बताती है कि जैसे-जैसे कर्ज का स्तर बढ़ा है, वैसे ही गुजरात में कृषि मजदूरों और किसानों में आत्महत्या की दर में भी वृद्धि हुई है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, महामारी के दौरान वर्ष 2020 में गुजरात में 126 खेतिहर मजदूरों और किसानों की मौत की वजह आत्महत्या थी.