खेड़ा सार्वजनिक पिटाई: कोर्ट में मुस्लिम युवकों को पीटने वाले पुलिसकर्मियों के बचाव में एसपी

बीते वर्ष 3 अक्टूबर को खेड़ा ज़िले में एक मस्जिद के पास गरबा कार्यक्रम का विरोध किए जाने के बाद हिंदू-मुस्लिम समुदाय के बीच विवाद हुआ था. इससे संबंधित एक वीडियो में कुछ पुलिसकर्मी मुस्लिम युवकों को खंबे से बांधकर लाठियों से पीटते दिखे थे. पीड़ितों ने 15 पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

/
गरबा कार्यक्रम को लेकर खेड़ा जिले के उंधेला गांव में हुए विवाद के बाद पुलिस ने मुस्लिम युवकों को पोल से बांधकर सार्वजनिक तौर पर पीटा था.

बीते वर्ष 3 अक्टूबर को खेड़ा ज़िले में एक मस्जिद के पास गरबा कार्यक्रम का विरोध किए जाने के बाद हिंदू-मुस्लिम समुदाय के बीच विवाद हुआ था. इससे संबंधित एक वीडियो में कुछ पुलिसकर्मी मुस्लिम युवकों को खंबे से बांधकर लाठियों से पीटते दिखे थे. पीड़ितों ने 15 पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

गरबा कार्यक्रम को लेकर खेड़ा जिले के उंधेला गांव में हुए विवाद के बाद पुलिस ने मुस्लिम युवकों को पोल से बांधकर सार्वजनिक तौर पर पीटा था.

नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट में अपने हलफनामे में खेड़ा ज़िले के पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार गढ़िया ने अक्टूबर 2022 में उंधेला गांव में मुस्लिम युवकों को सार्वजनिक रूप से पीटने वाले पुलिस अधिकारियों के कृत्य को सही ठहराया है.

इंडियन एक्सप्रेस ने एसपी के हलफनामे के हवाले से लिखा है, ‘… यह केवल शांति और सद्भाव बनाए रखने की दृष्टि से था कि संदिग्धों को पकड़ा गया.’

मालूम हो कि बीते वर्ष 3 अक्टूबर को खेड़ा ज़िले के एक गांव में एक मस्जिद के पास गरबा कार्यक्रम का विरोध किए जाने के बाद हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच विवाद हो गया था. घटना से संबंधित एक वीडियो में कुछ पुलिसकर्मी कुछ मुस्लिम युवकों को पोल से बांधकर उन्हें लाठियों से पीटते नज़र आए थे.

सोशल मीडिया में वायरल वीडियो में सादे कपड़ों में पिटाई करते नजर आ रहे लोगों की पहचान खेड़ा जिले की स्थानीय क्राइम ब्रांच (एलसीबी) इकाई के पुलिसकर्मियों के रूप में की गई.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, हालांकि एसपी ने पुलिस कार्रवाई का बचाव किया है, लेकिन कपड़वंज संभाग के पुलिस उपाधीक्षक द्वारा एक अंतरिम रिपोर्ट में फैसला सुनाया गया था कि ‘जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के रूप में’ आरोपी पुलिसकर्मियों को जरूरत थी कि वे ‘अन्य साधनों का इस्तेमाल करके आरोपियों को नियंत्रित करते और उन्हें अन्य सुरक्षित स्थान पर ले जाते.’

घटना के बाद अक्टूबर में पीड़ित जहीरमिया मालेक (62 वर्ष), मकसूदाबानू मालेक (45 वर्ष), सहदमिया मालेक (23 वर्ष), शकीलमिया मालेक (24 वर्ष) और शहीदराजा मालेक (25) ने 15 पुलिसकर्मियों के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी.

इन पुलिसकर्मियों में पुलिस महानिरीक्षक (आईजी- अहमदाबाद रेंज), खेड़ा पुलिस अधीक्षक (एसपी), मटर थाने के 10 कॉन्स्टेबल और स्थानीय क्राइम ब्रांच (एलसीबी) के तीन अधिकारी शामिल हैं. इसी केस पर गुजरात हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है.

याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले का हवाला दिया है, जिसमें शीर्ष अदालत ने कानूनी प्रावधान किए जाने तक गिरफ्तारी और हिरासत के दौरान पुलिस के लिए बुनियादी ‘दिशानिर्देशों’ का पालन करना निर्धारित किया था.

यह आरोप लगाते हुए कि पुलिस अधिकारियों ने इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया, याचिकाकर्ताओं ने पुलिसकर्मियों पर अदालत की अवमानना ​​का मुकदमा चलाने के साथ मुआवजे की भी मांग की है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पिटाई में शामिल होने के आरोपी पुलिसकर्मियों ने भी हलफनामे के दो सेट दायर किए हैं. एक सेट में पिटाई को उचित ठहराते हुए कहा गया है कि पीड़ितों की आपराधिक पृष्ठभूमि थी और इसलिए कानून और व्यवस्था की रक्षा करना आवश्यक था, और दूसरे सेट में कहा गया है कि अदालत की अवमानना करने संबंधी याचिका सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि वे केवल अपने कर्तव्यों के दायरे में काम कर रहे थे.

मटर पुलिस स्टेशन में पुलिस उप निरीक्षक (पीएसआई) हेतलबेन राबरी और आरोपियों में से एक ने कथित तौर पर अपने हलफनामे में ‘बिना शर्त माफी’ मांगी है, जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘भले ही आरोप… सही पाए जाते हैं, लेकिन उनका सहारा सिर्फ याचिकाकर्ताओं से कुशल तरीके से निपटने और कानून व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने और किसी भी तरह के सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए लिया गया था.’

गौरतलब है कि पुलिस की हिंसा के तुरंत बाद गुजरात के गृह मंत्री हर्ष सांघवी ने इसे ‘अच्छा कार्य’ बताते हुए पुलिसकर्मियों की प्रशंसा की थी.

जैसा कि द वायर  ने एक रिपोर्ट में बताया था कि उंधेला के मुस्लिम निवासियों ने इस कथित क्रूरता का विरोध करने के लिए 2022 के विधानसभा चुनावों का बहिष्कार किया था. हालांकि, उनका विरोध प्रशासन और राजनीतिक दलों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया था.