मोरबी पुल हादसे के मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने पुल के रखरखाव की ज़िम्मेदार ओरेवा कंपनी द्वारा प्रस्तावित मुआवज़े को अपर्याप्त बताते हुए निर्देश दिया कि वह प्रत्येक मृतक के निकट संबंधी को 10 लाख रुपये और दुर्घटना में घायल हुए 56 लोगों में से प्रत्येक को अंतरिम मुआवज़े के रूप में 2 लाख रुपये का भुगतान करे.
अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने मंगलवार को मोरबी केबल ब्रिज का रख-रखाव और संचालन करने वाली कंपनी ओरेवा समूह से अपनी अनुग्रह राशि बढ़ाने के लिए कहा, जिसमें कहा गया था कि वह दुर्घटना में मरने वाले 135 लोगों में से प्रत्येक को मुआवजे के रूप में 3.5 लाख रुपये का भुगतान करेगी. कंपनी ने हादसे में घायल हुए 72 लोगों में से प्रत्येक को 1 लाख रुपये देने की पेशकश की थी.
मालूम हो कि 30 अक्टूबर 2022 को मोरबी में माच्छू नदी पर बना ब्रिटिश काल का पुल अचानक ढह गया था.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, हाईकोर्ट ने कंपनी द्वारा प्रस्तावित दोनों राशियों को अपर्याप्त बताया. मुख्य न्यायाधीश सोनिया गोकानी और जस्टिस संदीप भट्ट की पीठ ने कहा कि अदालत अंतरिम मुआवजा तय करने की प्रक्रिया में है. पीड़ितों के परिजनों की मांग को देखते हुए संभावना है कि सरकार को भी अधिक भुगतान करना पड़ सकता है.
ओरेवा के वकील ने कहा कि चूंकि ओरेवा के सीएमडी जेल में हैं, इसलिए मुआवजे पर फैसला लेना दूसरों के लिए मुश्किल होगा.
लेकिन जब हाईकोर्ट ने सवाल किया कि क्या ओरेवा त्रासदी के लिए जिम्मेदार नहीं है, तो वकील ने स्वीकार किया कि कंपनी पुल का रखरखाव और संचालन देख रही थी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, हाईकोर्ट ने बुधवार को ओरेवा समूह को निर्देश दिया कि वह मृतक के प्रत्येक निकट संबंधी को 10 लाख रुपये और दुर्घटना में घायल हुए 56 लोगों में से प्रत्येक को अंतरिम मुआवजे के रूप में 2 लाख रुपये का भुगतान करे.
अदालत ने ओरेवा द्वारा भुगतान की जाने वाली मुआवजे की राशि को बढ़ाने का आदेश देते हुए कंपनी को आधी राशि वितरित करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया, शेष आधी राशि उसके बाद अगले 15 दिनों में और एक माह के भीतर पूरी राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया.
अदालत ने भोपाल गैस त्रासदी में यूनियन कार्बाइड सहित सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों द्वारा निर्धारित मिसालों पर भरोसा किया. पीड़ितों ने उचित मुआवजे की मांग करते हुए कहा था कि उन्हें भोपाल गैस त्रासदी या फिर उपहार अग्निकांड की तर्ज पर मुआवजा दिया जाना चाहिए.
त्रासदी में मृतक लोगों के निकटतम रिश्तेदारों में से एक द्वारा कहा गया था कि एक निजी पार्टी मुआवजे का 55 प्रतिशत और सरकार 45 प्रतिशत का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है, जहां निजी पार्टी और राज्य दोनों ही लापरवाही के जिम्मेदार हैं.
इसे ध्यान में रखते हुए ओरेवा ग्रुप द्वारा भुगतान किए जाने वाले अंतरिम मुआवजे को बढ़ाने का आदेश देते हुए अदालत ने कहा, ‘भले ही 55 प्रतिशत विभाजन का पालन न करते हुए, कम से कम 50 प्रतिशत की राशि दोनों को देने का निर्देश देना आवश्यक होगा. राज्य और केंद्र मिलकर प्रत्येक मृतक को 10 लाख रुपये की राशि वितरित करें.’
इस बीच, अदालत ने अपने आदेश में दर्ज किया कि दुर्घटना के बाद अनाथ हुए सात बच्चों की देखभाल समेत बाकी जिम्मेदारी कंपनी की होंगी. हाईकोर्ट ने कहा, ‘कंपनी (ओरेवा ग्रुप) इन बच्चों की हर तरह से – शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, रहना आदि सुनिश्चित करेगी. साथ ही जब वे अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे हैं तो उन्हें उनके संबंधित व्यवसायों में समायोजित किया जाएगा.’
इस संबंध में अदालत ने राज्य सरकार को पीड़ितों के लिए परामर्श सेवाओं दिए जाने का भी निर्देश दिया, विशेषकर उन अनाथ बच्चों के लिए, जो मानसिक आघात से गुज़रे हैं.
अदालत ने कहा, ‘यह उम्मीद की जाती है कि राज्य इन पीड़ितों और उनके परिवारों को पहुंचे मानसिक आघात को देखते हुए उन पीड़ितों की उचित देखभाल करेगा. परामर्श केंद्रों की आवश्यकता जरूरी है और विशेष रूप से उनके लिए, जो दुर्भाग्य से अपने माता-पिता दोनों को खो चुके हैं. अगर जरूरत पड़ी तो एनएफएसयू सेंटर फॉर वेल-बीइंग को भी रेफर किया जा सकता है क्योंकि एक सेल पीड़ितों की जरूरतों और उनकी काउंसलिंग का ख्याल रखता है, साथ ही यूनिवर्सिटी और सेंटर के पास ऑनलाइन काउंसलिंग भी उपलब्ध है.’
इसके अलावा, ओरेवा के अध्यक्ष और एमडी जयसुख पटेल के मामले में अदालत ने निर्देश दिया कि उनके खिलाफ ‘जांच शीघ्रता से पूरी की जाए. जहां तक आपराधिक मुकदमे का संबंध है, एक त्वरित प्रक्रिया हो और उस स्तर पर किसी भी कठिनाई को इस अदालत के समक्ष रखा जा सकता है.’
बता दें कि मोरबी में माच्छू नदी पर बना ब्रिटिश काल का केबल पुल 30 अक्टूबर 2022 को ढह गया था, जिसमें 47 बच्चों सहित 135 लोग मारे गए थे. एक निजी कंपनी द्वारा मरम्मत किए जाने के बाद पुल को 26 अक्टूबर को लोगों के लिए फिर से खोला गया था.
दस्तावेजों के अनुसार, मोरबी में घड़ी और ई-बाइक बनाने वाली कंपनी ‘ओरेवा ग्रुप’ को शहर की नगर पालिका ने पुल की मरम्मत करने तथा संचालित करने के लिए 15 साल तक का ठेका दिया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक, ओरेवा समूह ने यह ठेका एक अन्य फार्म को दे दिया था, जिसने रेनोवेशन के लिए आवंटित दो करोड़ रुपये में से मात्र 12 लाख खर्चे थे.
बता दें कि मोरबी पुलिस ओरेवा ग्रुप के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल सहित दस आरोपियों को आईपीसी की धारा 304, 308, 336, 337 और 338 के तहत गिरफ्तार कर चुकी है. इससे पहले गिरफ्तार किए गए नौ लोगों में से चार समूह से संबद्ध थे.
बीते दिनों मामले की जांच कर रही एसआईटी की प्रारंभिक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि एसआईटी ने पुल की मरम्मत, रखरखाव और संचालन में कई खामियां पाई हैं. उन कमियों में केबल पर लगे आधे तारों में जंग लगना और पुराने सस्पेंडर्स को नए के साथ वेल्डिंग कर देना शामिल है.
उल्लेखनीय है कि दुर्घटना के हफ्तेभर बाद गुजरात हाईकोर्ट ने मोरबी पुल हादसे का स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और स्थानीय अधिकारियों को नोटिस जारी किया था. इसके बाद नगर पालिका द्वारा दो नोटिसों के बावजूद घटना पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल न करने पर हाईकोर्ट ने नगर पालिका को फटकार लगाते हुए कहा था कि जबाव दाखिल करे या जुर्माना भरे.
इससे पहले अदालत ने नोटिस दिए जाने के बावजूद सुनवाई में अधिकारियों के उपस्थित न होने को लेकर भी फटकार लगाई थी.
इस घटना को लेकर शीर्ष अदालत ने भी याचिका दायर की गई थी, हालांकि कोर्ट ने इसे सुनने से इनकार करते हुए कहा था कि गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पहले ही घटना का स्वत: संज्ञान लिया है और कई आदेश पारित किए हैं, ऐसे में वह याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करेगी.