सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा- मैला ढोने की प्रथा ख़त्म करने के लिए क्या क़दम उठाए गए हैं

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और आने वाली पीढ़ियों को इस ‘अमानवीय प्रथा’ से रोकने के अपने लगभग 10 साल पुराने फैसले को लागू करने के लिए उठाए गए क़दमों का रिकॉर्ड छह सप्ताह के भीतर अदालत के सामने पेश करे.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और आने वाली पीढ़ियों को इस ‘अमानवीय प्रथा’ से रोकने के अपने लगभग 10 साल पुराने फैसले को लागू करने के लिए उठाए गए क़दमों का रिकॉर्ड छह सप्ताह के भीतर अदालत के सामने पेश करे.

(फोटो: जाह्नवी सेन/द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और आने वाली पीढ़ियों को इस ‘अमानवीय प्रथा’ से रोकने के अपने लगभग 10 साल पुराने फैसले को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों का रिकॉर्ड छह सप्ताह के भीतर अदालत के सामने रिकॉर्ड पर रखे.

द हिंदू के मुताबिक, जस्टिस एस. रवींद्र भट के नेतृत्व वाली एक पीठ ने हाल ही में इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लिया कि हाथ से मैला ढोने और सीवर लाइनों में फंसे लोगों की मौत एक वास्तविकता बनी हुई है, जबकि इस प्रथा पर ‘मैला ढोने वालों का नियोजन और शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993’ और ‘हाथ से मैला ढोने वालों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ लागू करने के साथ प्रतिबंध लगा दिया गया था.

शीर्ष अदालत ने सफाई कर्मचारी आंदोलन और अन्य बनाम भारत संघ के मामले के संबंध में दिए गए अपने फैसले में इस प्रतिबंध लगा दिया था और हाथ से मैला ढोने वालों के रूप में पारंपरिक रूप से और अन्य कार्यरत लोगों के पुनर्वास का निर्देश दिया था.

फैसले ने उनके ‘न्याय और परिवर्तन के सिद्धांतों के आधार पर पुनर्वास’ का आह्वान किया था. अदालत ने जोर देकर कहा था, ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग से मुक्त किए गए व्यक्तियों को कानून के तहत उनके वैध देय को प्राप्त करने में बाधाएं नहीं आनी चाहिए.’

जस्टिस भट ने व्यक्तिगत रूप से डॉ. बलराम सिंह द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए 2014 के फैसले के अनुपालन में केंद्र द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण मांगा.

साथ ही इसमें ‘मैला ढोने वालों’ की परिभाषा के अंतर्गत आने वाले लोगों के पुनर्वास, शुष्क शौचालयों को राज्यवार समाप्त करना; छावनी बोर्डों और रेलवे में सूखे शौचालयों और सफाई कर्मचारियों के रोजगार की स्थिति; सीवेज सफाई के यंत्रीकरण, मुआवजे के भुगतान और परिवारों के पुनर्वास सहित सीवेज से होने वाली मौतों और अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई की ऑनलाइन ट्रैकिंग के संबंध में भी जानकारी मांगी गई थी.

अदालत ने मामले में प्रतिवादी के रूप में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को पक्षकार बनाया है. इसके अलावाअधिवक्ता के. परमेश्वर को न्याय-मित्र (Amicus Curiae) नियुक्त किया है.

सामाजिक न्याय मंत्रालय को छह सप्ताह में सूचना के साथ अपनी रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा गया है.

27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में आदेश दिया था कि साल 1993 से सीवरेज कार्य (मैनहोल, सेप्टिक टैंक) में मरने वाले सभी व्यक्तियों के परिवारों की पहचान करें और उनके आधार पर परिवार के सदस्यों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाए.

सफाई कर्मचारी मामले में 2014 के फैसले में अदालत ने मैनुअल मैला ढोने वालों के रूप में कार्यरत लोगों को एकमुश्त नकद सहायता, उनके लिए घर, उनके परिवारों के कम से कम एक सदस्य को आजीविका कौशल प्रशिक्षण, अन्य कल्याणकारी उपायों के साथ-साथ उन्हें आर्थिक रूप से सहारा देने और व्यवसाय खोजने के लिए रियायती ऋण देने का निर्देश दिया था.

अदालत ने सरकार को आदेश दिया था, ‘1993 से सीवरेज काम (मैनहोल, सेप्टिक टैंक) में मरने वाले सभी लोगों के परिवारों की पहचान करें और ऐसे प्रत्येक मौत के लिए परिवार के सदस्यों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दें.’

इसने रेलवे को पटरियों पर मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए समयबद्ध रणनीति बनाने का भी निर्देश दिया था.

मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में किसी सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.