टीवीएफ मीडिया लैब्स प्राइवेट लिमिटेड, वेब सीरीज़ ‘कॉलेज रोमांस’ के कास्टिंग डायरेक्टर और इसके प्रमुख अभिनेताओं के ख़िलाफ़ केस दर्ज करने के निर्देश देने वाले आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. हाईकोर्ट ने कहा है कि पब्लिक डोमेन में बच्चों के लिए भी उपलब्ध ‘अश्लील भाषा’ वाले कंटेट को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है.
नई दिल्ली: द वायरल फीवर (टीवीएफ) के वेब सीरीज ‘कॉलेज रोमांस’ में अश्लील भाषा वाला कंटेंट होने के आरोप में इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के साल 2019 के निर्देश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.
हाईकोर्ट ने निर्माताओं को फटकार लगाते हुए कहा है कि पब्लिक डोमेन में बच्चों के लिए भी उपलब्ध ‘अश्लील भाषा’ वाले कंटेट को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है.
टीवीएफ मीडिया लैब्स प्राइवेट लिमिटेड, वेब सीरीज के कास्टिंग डायरेक्टर और इसके प्रमुख अभिनेताओं के खिलाफ केस दर्ज करने के निर्देश देने वाले आदेश को चुनौती देने वाली इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्र से अश्लील भाषा वाले कंटेंट पर अपने नियमों को सख्ती से लागू करने के लिए कदम उठाने को कहा.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह देखते हुए कि ‘अश्लील सामग्री’ वाले कॉलेज रोमांस के एपिसोड अभी भी यूट्यूब पर थे, जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की एकल न्यायाधीश पीठ ने अपने 6 मार्च के फैसले में मंच (यूट्यूब) को उचित उपचारात्मक कदम उठाने का निर्देश दिया.
हाईकोर्ट ने कहा कि यह अदालत सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का ध्यान उन स्थितियों की ओर आकर्षित करता है, जो दैनिक आधार पर तेजी से सामने आ रही हैं.
अदालत ने आईटी नियम, 2021 में अधिसूचित मध्यस्थों के रूप में इसके नियमों को सख्ती से लागू करने और इस फैसले में की गई टिप्पणियों के आलोक में कोई भी कानून या नियम बनाने के लिए उपयुक्त कदम उठाने के लिए कहा है.
इसके अलावा हाईकोर्ट ने इस फैसले की एक प्रति सचिव, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार और यूट्यूब इंडिया के संबंधित अधिकारियों को भेजने को कहा है.
इसके बाद अदालत ने याचिका का निस्तारण कर दिया.
हाईकोर्ट ने आईटी अधिनियम की धारा 67 और 67ए के तहत एफआईआर दर्ज करने के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा, ‘यह स्पष्ट किया जाता है कि वर्तमान मामले में केस दर्ज करने के निर्देश में किसी भी आरोपी/याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने का निर्देश शामिल नहीं है.’
एफआईआर के अनुसार, शो के पहले सीजन के पांचवे एपिसोड में ‘अश्लील भाषा’ का इस्तेमाल किया गया. इसमें कहा गया है कि यह एपिसोड लड़कियों या महिलाओं के अश्लील चित्रण को सबसे खराब रूप में दिखाता है.
रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2019 में अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया था. हालांकि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने नवंबर 2020 में इस आदेश में संशोधन करते हुए निर्देश दिया कि केस केवल आईटी अधिनियम की धारा 67ए के तहत दर्ज की जाए.
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस शर्मा ने कुछ एपिसोड देखने के बाद पाया कि वेब सीरीज के कलाकार हमारे देश में इस्तेमाल होने वाली ‘नागरिक भाषा’ का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.
हाईकोर्ट ने कहा कि वेब सीरीज की पूरी सामग्री एक आम आदमी को इस निष्कर्ष पर ले जाएगी कि इसमें उपयोग की जाने वाली भाषा गंदी और अपवित्र है, जो ‘प्रभावशाली दिमाग’ को भ्रष्ट कर सकती है.
अदालत ने कहा, ‘इसलिए, इस जांच के आधार पर यह माना जा सकता है कि वेब सीरीज की सामग्री निश्चित रूप से आईटी अधिनियम की धारा 67 के तहत कार्रवाई योग्य है.’
मामले में अभिव्यक्ति की आजादी और सार्वजनिक शालीनता/नैतिकता के बीच टकराव के संबंध में हाईकोर्ट ने कहा कि वेब सीरीज में इस्तेमाल भाषा और अश्लीलता के स्तर को इस फैसले में दर्शाया तक नहीं जा सकता है.
अदालत ने कहा कि पुरुष नायक ‘महिला और पुरुष के निजी अंगों और यौन क्रिया का वर्णन करने वाले शब्दों का उपयोग करता है. बग्गा नाम के पुरुष नायक की खराब भाषा को लोगों की भाषा को प्रदूषित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है’.
अदालत ने टीवीएफ मीडिया लैब्स प्राइवेट लिमिटेड, जिसे सोनीलिव, यूट्यूब और याचिकाकर्ता के अपने प्लेटफॉर्म टीवीएफ प्ले जैसे प्लेटफॉर्म पर स्ट्रीम किया जाता है, की खिंचाई की. हाईकोर्ट ने कहा, ‘वेब सीरीज हर आयु वर्ग के लिए उपलब्ध थी, इसलिए यह आईटी नियमों के उल्लंघन के तहत आती है.’
अदालत ने याचिकाकर्ताओं की उन दलीलों को भी खारिज कर दिया कि भाषा या व्यवहार वासनापूर्ण विचारों को पैदा नहीं करता है और कहा कि ‘अश्लील भाषा’ और कम उम्र के बच्चों के लिए भी ‘पब्लिक डोमेन तथा सोशल मीडिया प्लेटफार्मों में उपलब्ध बुरे शब्दों’ के उपयोग को ‘गंभीरता’ से लिया जाना चाहिए.
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि ‘अदालतें मोरल पुलिसिंग नहीं कर सकती हैं’, लेकिन वेब सीरीज में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा ‘सार्वजनिक शालीनता’ की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है, क्योंकि अधिकांश भारतीय नागरिक भाषा का उपयोग करना चाहते हैं, इसलिए ‘अपशब्दों से भरी ऐसी अपवित्र भाषा का उपयोग करने के विकल्प के व्यक्तिवाद’ को उन लोगों के बहुसंख्यकवाद को रास्ता देना होगा जो नागरिक भाषा बोलना और सुनना चाहते हैं.