राज्यसभा में भाजपा सांसद हरिनाथ सिंह यादव ने पूछा था कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया या देश के किसी अन्य शैक्षणिक संस्थान में पाकिस्तानी लेखक की किताब पढ़ाई जा रही है और क्या इसके लिए ज़िम्मेदार व्यक्तियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई पर विचार करना चाहिए.
नई दिल्ली: विश्वविद्यालयों के 250 से अधिक शिक्षकों और देश के प्रतिष्ठित स्कॉलर्स ने राज्यसभा में 22 मार्च 2023 को उठाए गए एक प्रश्न पर आपत्ति जताई है. उक्त प्रश्न ‘देश के एक शैक्षणिक संस्थान में पाकिस्तानी लेखक की किताब चलाए जाने’ से संबंधित था.
रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षकों और स्कॉलर्स द्वारा इस तरह की ‘सेंसरशिप’ की निंदा करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया गया है. हस्ताक्षरकर्ताओं में प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर, प्रोफेसर सतीश देशपांडे, प्रोफेसर अपूर्वानंद, प्रोफेसर आयशा किदवई, प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, प्रोफेसर पार्थ चटर्जी, प्रोफेसर जोया हसन शामिल हैं.
हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा, ‘छात्रों को शिक्षित करते हुए उन्हें ‘अपमानजनक’ एवं ‘आपत्तिजनक’ मानी जाने वाली चीजों को जानने और इस पर तर्क के आधार पर प्रतिक्रिया देना सिखाया जाना चाहिए, बजाय इसके कि इसे सुनने से ही इनकार कर दो, या इससे भी बदतर कि इसे अपराध मान लिया जाए, जिसमें सेंसरशिप व हिंसा का खतरा भी जुड़ा हो.’
बता दें कि जिस प्रश्न की बात हो रही है वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद हरिनाथ सिंह यादव द्वारा पूछा गया था और 22 मार्च 2023 को राज्यसभा के पटल पर आया था.
उनका सवाल था, ‘क्या सरकार ने इस तथ्य का संज्ञान लिया है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया या देश के किसी अन्य शैक्षणिक संस्थान में पाकिस्तानी लेखक की कोई किताब पढ़ाई जा रही है और उसकी भाषा भारतीय नागरिकों के प्रति अपमानजनक है और वह आतंकवाद का समर्थन भी करती है; यदि हां, तो उसका विवरण, और क्या सरकार को उक्त पाकिस्तानी लेखक द्वारा लिखित पाठ्यपुस्तकों की सामग्री की जांच करने और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर विचार करना चाहिए?’
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 16 मार्च को विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रारों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों को एक पत्र भेजा था जिसमें उक्त प्रश्न के बारे में जानकारी मांगी गई थी, जिसका उत्तर राज्यसभा में दिया जाना था.
अब शिक्षाविदों के संयुक्त बयान में कहा गया है कि प्रश्न लेखक और पुस्तक के बारे में जानकारी का उल्लेख किए बिना ‘जानबूझकर अस्पष्ट’ तरीके से पूछा गया था.
बयान में कहा गया है, ‘निश्चित तौर पर ये केवल एक त्रुटि नहीं है? किताब का बिना नाम लिए जिक्र करना प्रश्न को इस तरह पढ़ने का संकेत करता है कि किसी भी पाकिस्तानी लेखक की कोई भी किताब जिसे संभवतः ‘भारतीय नागरिकों के लिए अपमानजनक’ और ‘आतंकवाद का समर्थन करने’ के रूप में पढ़ा जा सकता है, को किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाया जाना चाहिए; ऐसी किसी भी किताब को पढ़ाने से दंडात्मक कार्रवाई होगी और शायद शिक्षकों के खिलाफ आपराधिक आरोप दर्ज किए जाएं.’
हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा कि इस तरह की ‘सजा देने संबंधी धमकियां’ पाठ्यक्रम विशेष के लिए चुनी गई पाठ्यपुस्तकों के बारे में चर्चा या संवाद को रोकती हैं.
बयान में कहा गया है, ‘ऐसा लगता है कि एक शिक्षक को निर्दिष्ट पाठ के सभी तर्कों से सहमत होना चाहिए. लेकिन शिक्षक शब्दों -विशेष रूप से कथा साहित्य या यहां तक कि ऐतिहासिक वृत्तांत- को इस तरह प्रस्तुत नहीं करते हैं कि मानो वह अंतिम सत्य है. यह अक्सर ऐसा होता है कि छात्रों को विभिन्न ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोणों से अवगत कराने के लिए, विशेष रूप से मानविकी और सामाजिक विज्ञान में, पाठ्यक्रम तैयार किए जाते हैं. शिक्षकों के रूप में हमारी भूमिका छात्रों को इन दृष्टिकोणों के बारे में चर्चा, सवाल करने और सीखने के लिए प्रोत्साहित करने की है, न कि बिना आलोचना उनका समर्थन करने या उनका अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित करने की.’
आगे कहा गया, ‘सरकार शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता को बढ़ावा देकर, फैकल्टी को सशक्त बनाकर और सभी संभावित विषयों पर बहस, आलोचनात्मक विचार और चर्चा को प्रोत्साहित करते हुए अपने संवैधानिक जनादेश को सर्वोत्तम तरीके से पूरा कर सकती है और लोकतांत्रिक जगह तैयार कर सकती है. यह करने का सबसे अच्छा तरीका छात्रों को किताबों, लेखों और फिल्मों सहित यथासंभव संसाधनों के व्यापक संग्रह से रूबरू कराना है.’
साथ ही, बयान में इस तरह के सवाल को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया जैसे विशिष्ट मुस्लिम संस्थानों को ‘आतंकवाद’ के साथ जोड़ने का प्रयास बताया गया है.
(पूरा बयान पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)