राजनीति में भाषा की शालीनता गुज़रे दिनों की बात हो चुकी है

गुजरात के लोग अशिष्ट, भद्दे और असभ्य बयानों के आदी हो चुके हैं. हमारे लिए यह सब सामान्य हो चुका है. यहां ‘100 करोड़ नी गर्लफ्रेंड’ एक चुटकुला बन जाता है और प्रधानमंत्री मोदी की स्त्रीविरोधी टिप्पणियां उनके ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ के सबूत के तौर पर तालियां बटोरती हैं.

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नरेंद्र मोदी व राहुल गांधी. (फोटो साभार: पीआईबी और फेसबुक/@rahulgandhi)

गुजरात के लोग अशिष्ट, भद्दे और असभ्य बयानों के आदी हो चुके हैं. हमारे लिए यह सब सामान्य हो चुका है. यहां ‘100 करोड़ नी गर्लफ्रेंड’ एक चुटकुला बन जाता है और प्रधानमंत्री मोदी की स्त्रीविरोधी टिप्पणियां उनके ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ के सबूत के तौर पर तालियां बटोरती हैं.

नरेंद्र मोदी व राहुल गांधी. (फोटो साभार: पीआईबी और फेसबुक/@rahulgandhi)

अहमदाबाद: राहुल गांधी को उनके ‘सभी चोर, चाहे वह नीरव मोदी हों, ललित मोदी हों या नरेंद्र मोदी, उनके नाम में मोदी क्यों है?’ वाले बयान के लिए संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य क़रार दे दिया गया.

गुजरात के किसी भी पत्रकार के लिए राहुल गांधी का यह बयान एक नीरस और लापरवाह राजनीतिक बयान से ज्यादा कुछ नहीं है. वजह यह है कि हम में से कई नरेंद्रभाई मोदी को स्थाई तौर पर और लगातार देखते-सुनते रहे हैं. अगर अपनी बात करूं, तो मैं उस समय से उन्हें देखती आई हूं, जब मैं इंडियन एक्सप्रेस में युवा रिपोर्टर थी और सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा के गुजरात चरण को कवर कर रही थी. 1995 में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बनने में उनकी कड़ी मेहनत का हाथ माना गया. उसके बाद उनका निर्वासन शुरू हुआ और 2001 में गुजरात में भूकंप आने के बाद वे ‘दैवीय तरीके से’ फिर प्रकट हुए.

तो, 1990 के दशक से 2001 तक नरेंद्र मोदी एक लक्ष्य केंद्रित, ठीक-ठाक पढ़े-लिखे व्यक्ति थे, जिनकी सबसे बड़ी ताकत जनता के मूड को भांपना था. वे अक्सर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को बस में बैठाने के काम की निगरानी करते थे. वे कांग्रेस के भ्रष्टाचार की बात करते थे, भाई-भतीजावाद की बात करते थे, कि कांग्रेस सिर्फ हाशिये के लोगों और गरीबों की पार्टी है, कि कांग्रेस सवर्ण समुदाय को नुकसान पहुंचा रही है. यह काम कर गया. लेकिन अगर निष्पक्ष तरीके से कहा जाए तो उस वक्त उन्होंने अशिष्ट, विभाजनकारी और असभ्य भाषा का इस्तेमाल नहीं किया.

यहां तक कि मैं उनके मुस्लिम हज्जाम से भी मिली थी, जो कांकरिया के नजदीक 20 वर्षों से ज्यादा समय तक उनकी दाढ़ी ट्रिम करता था. वह मोदी के बारे में अच्छी बातें करता था. संक्षेप में कहें, तो उस समय तक मोदी कोई ‘कल्ट’ नहीं बने थे. लेकिन ऐसा हुआ 2002 में.

एक निर्मम राजनीतिज्ञ, जो मसीहा भी है और गुरु भी-  इस अलौकिक छवि ने 1.3 अरब आबादी वाले इस बड़े और असाधारण विविधता वाले देश के दो आम चुनावों में भारी बहुमत से जीत दिलाई है. लेकिन असली मोदी कौन है?

यह पता लगाने के क्रम में, मैं बार-बार तीन सवालों पर लौटती रही. वे खुद को किस देश का नेतृत्व करता हुआ देखते हैं: भारत का या हिंदू भारत का? क्या वे भारतीय लोकतंत्र की रक्षा कर रहे हैं या इसकी जड़ें खोद रहे हैं. और क्या वे, जैसा वो बार-बार कहते हैं एक सच्चे आर्थिक सुधारक हैं- या कि एक कट्टर धार्मिक राष्ट्रवादी जिनके लिए आधुनिकीकरण अपना वर्चस्व जताने का एक औजार है- जो सुधारों का इस्तेमाल सांप्रदायिक फायदे के लिए करता है?

मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि इन सवालों का समाधान तब तक नहीं किया जा सकता है, जब तक वे किसी छोर की तरफ न झुक जाएं, क्योंकि मोदी न सुलझाई जा सकने वाली पहेली का नाम हैं. अपनी युवावस्था में एक कट्टर हिंदुत्वादी रहे मोदी अब एक अर्ध-पश्चिमी राजनीतिक ढांचे के भीतर काम करते हैं, जिसे वे आधा स्वीकार करते हैं और आधा अस्वीकार, और अब तक उन्होंने इसमें आमूलचूल बदलाव करने की कोशिश नहीं की है या कह सकते हैं कि वे ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं हुए हैं.

पहले से मौजूद विभाजन को चौड़ा करने वाले

मोदी को यह समझते देर नहीं लगी कि हिंदुओं एक अच्छे-खासे बड़े तबके में मुस्लिम विरोधी भावनाओं का दोहन करना काफी आसान है और उन्होंने इस मौके को तुरंत लपक लिया.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 2019 के उनके एक बयान के लिए संसद की सदस्यता से अयोग्य कर दिया गया है, जिसमें उन्होंने ललित मोदी और नीरव मोदी का नाम लेते हुए लापरवाह तरीके से कहा था कि इन दिनों भारत में सभी चोरों के नाम में मोदी क्यों लगा है? गांधी का भाषण अंग्रेजी में था और इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया जा रहा था. यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि मैं किसी भी सूरत में राहुल गांधी या किसी भी ऐसे व्यक्ति का समर्थन नहीं करूंगी जो भद्दे, अश्लील या यहां तक कि लापरवाह सार्वजनिक विमर्श में मुब्तिला होता है.

लेकिन जब मैं 2019 में कोल्लार में मौजूद थी और मैंने राहुल गांधी को सुना था, तब मुझे इसमें कुछ भद्दा, अश्लील या अमर्यादित नहीं लगा. मैं 2019 लोकसभा चुनाव को कवर कर रही थी. बल्कि मैंने यह महसूस किया कि राहुल की टिप्पणियां तीखी थीं और उनके राजनीतिक हमले ज्यादा धारदार और पैने होते जा रहे थे.

गुजरात का हाल

मैं गुजरात से हूं. 2001 से मैं सार्वजनिक विमर्श में शालीनता के क़त्ल की गवाह रही हूं. यहां यह स्पष्ट किया जाना जाहिए कि इससे पहले भी भाजपा सत्ता में थी लेकिन यह इस स्तर पर कीचड़ उछालने का काम नहीं करती थी. 1998 में जब भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक गुजरात में हो रही थी, उस समय मैंने अटल बिहारी बाजपेयी से पूछा था कि भाजपा के लिए उनका सपना क्या है?

उन्होंने कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि भाजपा भारत पर शासन करे. लेकिन हमने महात्मा गांधी की धरती से शुरू किया है. गुजरात हमारे लिए खास है. हम महात्मा गांधी द्वारा निर्धारित आदर्शों का अनुसरण करेंगे.’ आज शायद बेचारे बाजपेयी की आत्मा कलप रही होगी!

निस्संदेह प्रधानमंत्री मोदी भाषण कला में माहिर हैं- गुजराती में और अब काफी हद तक हिंदी में. जब वे गुजराती में बोलते हैं, वे भीड़ को सम्मोहित कर सकते हैं. उनकी हिंदी में भी काफी सुधार हुआ है. टेलीप्रॉम्पटर की सहायता के बावजूद उनकी अंग्रेजी मजाकिया ज्यादा रहती है, न कि गंभीर संवाद की भाषा.

सार्वजनिक विमर्श में शालीनता पर लौटें, तो इसकी हत्या करने का सेहरा मोदी के अलावा और किस पर बंध सकता है?

मोदी के पुराने भाषणों का रहस्य

आश्चर्यजनक तरीके से और एक तरह से देखा जाए तो उम्मीद के अनुसार ही, हम उनकी 2002 की गौरव यात्रा के भाषणों पर यूट्यूब पर नहीं खोज सकते हैं. लेकिन यहां मैं एक लिंक की तरफ इशारा करना चाहूंगी जिसे मैं काफी मेहनत और समय बिताने के बाद खोज पाई.

एक अन्य आयोजन में उन्होंने साफ-साफ शब्दों में कहा, ‘देश कैसे तरक्की करेगा? ‘तुम पांच, तुम्हारे पच्चीस’, जिसमें उन्होंने स्पष्ट तौर पर मुसलमानों को निशाना बनाया था, जिन्हें कानून चार शादियां करने की इजाजत देता है. वे धार्मिक कट्टरपंथियों की इस आम भावना को भड़का रहे थे कि इस वजह से उनके कई गुना बच्चे होते हैं.

अगर यह भद्दा नहीं था, तो गुजरात की महिलाओं के लिए उनकी इन टिप्पणियों को किस श्रेणी में रखेंगे? कि कुपोषण एक गलत धारणा है. ‘हमारी औरतों का ध्यान सुंदर दिखने पर होता है. वे दुबली रहना पसंद करती हैं.’

अगर सोनिया गांधी की नीच राजनीति वाली टिप्पणी ने मोदी को आहत कर दिया और उन्होंने बखूबी इसे खुद को पीड़ित की तरह पेश करते हुए इसे एक राष्ट्रीय मसला बना दिया, तो सोनिया गांधी को मोदी के शब्दबाणों को चुपचाप सहने का श्रेय दिया जाना चाहिए. दुख की बात है कि उनकी सुस्त पार्टी ने इन पर कोई उचित कार्रवाई नहीं की. आज मोदी और उनके सक्षम डिजिटल साम्राज्य ने उन अभद्र वीडियोज के सबूत डिजिटल प्लेफॉर्म से मिटा दिए हैं, जिनमें वे मर्यादाओं को तार-तार करते हुए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर अपमानजनक टिप्पणियां करते हुए देखे जा सकते हैं.

मिसाल के लिए, गुजरात में उन्होंने सोनिया गांधी पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘सोनियाबेन तो एक जर्सी गाय छे, आ राहुल तो एक हाइब्रिड बछड़ा छे. (सोनिया गांधी एक जर्सी गाय है और राहुल एक हाइब्रिड बछड़ा है). मोदी ने साथ ही तीखे हमले में यह भी जोड़ा कि सोनिया एक विदेशी है, सिर्फ एक मूर्ख गाय और चूंकि उनकी शादी एक भारतीय से हुई है, इसलिए राहुल एक राहुल एक हाइब्रिड बछड़ा है.

इसके बाद उन्होंने कहा, ‘मे 20 लोको नो पूछयू कोई सोनियाबेन ने क्लर्क नी नोकरी नो आपे अने राहुल पटवाला नी. आवा लोको ने आपने आपदो देश अपाय? (मैंने 20 लोगों से पूछा. कोई भी सोनियाबेन को क्लर्क और राहुल को चपरासी भी नहीं बनाना चाहता.)

चूंकि यह गुजरात था, लोगों ने इस पर भी तालियां बजाई.

हम अशिष्ट, भद्दे और असभ्य बयानों के इतने आदी हो चुके हैं कि इन चोरों के नाम में मोदी होने वाले राहुल के बयान पर गुजरात में कम लोगों ने ही ध्यान दिया.

और हमारे लिए यह सब सामान्य हो चुका है. यहां ‘100 करोड़ नी गर्लफ्रेंड’ एक चुटकुला बन जाता है और प्रधानमंत्री मोदी की स्त्रीविरोधी टिप्पणियां उनके ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ के सबूत के तौर पर तालियां बटोरती हैं.

(दीपल त्रिवेदी वाइब्स ऑफ इंडिया वेबसाइट की सीईओ और संस्थापक संपादक हैं.)

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