रामनवमी हिंसा: राम के कंधे पर सवार होकर भाजपा की हिंसक राजनीति पूरे देश में पहुंच गई है

भारतीय जनता पार्टी के नेता अब खुलकर रामनवमी में हिंसा का उकसावा कर रहे हैं. और वे सरकारों  में हैं. उन्होंने इसे हिंदुत्व के लिए गोलबंदी का ज़रिया बना लिया है. अब रामनवमी उन राज्यों में भी मनाई जाने लगी है जहां इसका रिवाज न था.

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(प्रतीकात्मक फोटो: शोम बासु)

भारतीय जनता पार्टी के नेता अब खुलकर रामनवमी में हिंसा का उकसावा कर रहे हैं. और वे सरकारों  में हैं. उन्होंने इसे हिंदुत्व के लिए गोलबंदी का ज़रिया बना लिया है. अब रामनवमी उन राज्यों में भी मनाई जाने लगी है जहां इसका रिवाज न था.

(फाइल फोटो: शोम बासु)

बंगाल के हावड़ा के शिबपुर में रामनवमी के दूसरे रोज़ भी हिंसा जारी रही. कुछ अख़बारों ने इसे पहले पृष्ठ की पहली खबर बनाया है. जिन अख़बारों ने इस हिंसा को इतना असाधारण माना कि अपनी पहली खबर बनाया, उन्होंने ठीक एक रोज़ पहले पूरे भारत में रामनवमी के रोज़ हुई हिंसा की घटनाओं को इतना गंभीर नहीं माना कि पहले पृष्ठ पर उन्हें जगह दे जाए.

जबकि रामनवमी के रोज़ एक बार फिर पूरे भारत से मुसलमानों पर हिंसा की खबरें मिली थीं. क्या मान लिया गया है कि रामनवमी के दिन तो हिंसा होगी ही? एक रोज़ बाद क्यों हो रही है, क्या यह आश्चर्य की बात है और इसलिए खबर है?

रामनवमी के दिन मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा को अभी भी खबर होना चाहिए. कुछ लोग कहेंगे कि यह वक्तव्य एकतरफ़ा है. लेकिन पहला सच यही है. इस हिंसा में कुछ हिंदू भी घायल हुए होंगे लेकिन हम जानते हैं कि कई बार आग लगाने वालों के अपने हाथ भी जलते हैं.

गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश ,जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश, झारखंड, बंगाल से एक ही तरह की तस्वीरें और वीडियो मिले हैं जिनमें रामनवमी के जुलूस में शामिल हिंदू लाठियों, हॉकी स्टिक, तलवारों, बंदूकों के साथ मुसलमान बहुल मोहल्लों, गलियों में घुसकर मुसलमानों को अपमानित करने वाले नारे लगा रहे हैं, मस्जिदों ,दरगाहों पर चढ़कर भगवा झंडे लहरा रहे हैं और वहां तोड़फोड़ कर रहे हैं.

भारत की संघीय सरकार के गृह मंत्री ने लेकिन सिर्फ़ बंगाल के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को फ़ोन किया है. बंगाल को लेकर उनकी यह विशेष चिंता क्यों है, अनुमान करना कठिन नहीं है.

हिंसा के ब्यौरे देने की ज़रूरत नहीं. उनमें एक तरह की उबाऊ एकरूपता है. तलवार, बंदूक़, भगवा गमछे के साथ लफ़ंगों की भीड़. मुसलमानों के ख़िलाफ़ गाली-गलौज, मस्जिदों के सामने अड़ जाने की ज़िद, पत्थरबाज़ी और उन पर भगवा  झंडा फहराने की कोशिश. रामनवमी के अवसर पर आयोजित ‘शोभायात्राएं ‘हिंदू समाज के भीतर बसी हुई अश्लीलता और हिंसा के खुले, बेशर्म प्रदर्शन का बहाना बन गई हैं. इनमें राम की महिमा का गान या जाप नहीं किया जाता, मुसलमानों के प्रति नफ़रत का ऐलान किया जाता है.

कई लोग कहते हैं कि मुसलमानों ने भी पत्थर चलाए हैं. यह उम्मीद की जाती है कि जुलूसवाले गालियां दें, मस्जिदों में घुसकर उत्पात करें और मुसलमान ख़ामोश देखते रहें. वे भी इंसान हैं और उन्हें भी ग़ुस्सा आता है. हिंदू अपनी हिंसा को यह कहकर जायज़ ठहराते हैं कि वे मध्यकाल में अपने पूर्वजों पर हुई हिंसा का बदला के रहे हैं. लेकिन  वे चाहते हैं कि अभी जो हिंसा कर रहे हैं उन लोगों पर जिन्होंने हिंदुओं का कुछ नहीं बिगाड़ा है, उसका कोई जवाब न दिया जाए.

चूंकि ज़्यादातर जगहों पर पुलिस हिंदुओं के साथ होती है या उनके प्रति ही उसका झुकाव होता है, हिंदू और सिर चढ़कर, ढिठाई के साथ हिंसा करते हैं. पुलिस बाद में अदालतों में प्रायः हिंदुओं के जुलूस को शांतिपूर्ण बतलाती है और कहती है कि उनकी तरफ़ से जो हुआ वह मुसलमानों की हिंसा का जवाब था. यही उसने पिछले साल दिल्ली की जहांगीरपुरी में हुई हिंसा के बारे में कहा था.

रामनवमी के वक्त इस गंदगी और हिंसा का इतिहास पुराना है. यह भी सच है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस अवसर का बहुत चतुराई से इस्तेमाल किया है. हाल में सर्वोच्च न्यायालय के वकील चंदर उदय सिंह ने रामनवमी की हिंसा को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखते हुए एक रिपोर्ट जारी की है.

पिछले कई दशकों की रामनवमी की हिंसा की वारदातों की छानबीन करते हुए यह रिपोर्ट इस नतीजे पर पहुंचती है कि यह हिंसा मुसलमान बहुल इलाक़ों से जुलूस जाने, मस्जिदों के आगे भड़काऊ नारे लगाने  के साथ ही होती है. जुलूसों में घातक हथियार लेकर चलना आम बात है.

लेकिन नई बात यह हुई है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता अब खुलकर रामनवमी में हिंसा का उकसावा कर रहे हैं. और वे सरकारों  में हैं. उन्होंने इसे हिंदुत्व के लिए गोलबंदी का ज़रिया बना लिया है. अब रामनवमी उन राज्यों में भी मनाई जाने लगी है जहां इसका रिवाज न था. जैसे बंगाल.

बंगाल में अभी कुछ साल पहले भाजपा ने इसे अभियान की तरह मनाना शुरू किया है और इसमें बंगाल के बाहर से आए ‘हिंदी भाषी’ इलाक़े के लोगों का इस्तेमाल किया जा रहा है. मैंने कुछ साल पहले केरल में रामनवमी गुजर जाने के बाद भी रामनवमी का बैनर देखा. पूछने पर मालूम हुआ कि वहां यह भाजपा और आरएसएस के ज़रिये नया आयात है. धीरे-धीरे राम के कंधे पर सवार होकर भाजपा की हिंसक राजनीति पूरे देश में पहुंच गई है.

अब हमारे पास प्रेमचंद जैसा कोई लेखक नहीं जो हिंदू त्योहारों में की जा रही हिंसा का बिना लाग-लपेट के विरोध कर सके. जो कह सके कि मस्जिदों के आगे जुलूस रोकने, गाने-बजाने की जिद का कोई औचित्य नहीं है और हिंदुओं को ख़ुद को बदलने की ज़रूरत है.

रामनवमी के मौक़े पर जो कुछ किया जा रहा है, उसे हिंदुओं के क्षेत्र विस्तार की इच्छा का नतीजा ही मानना चाहिए. हर जगह उनका क़ब्ज़ा है, यही वे जतलाना चाहते हैं. इसके साथ वे दूसरों को और कोने में धकेलते जाते हैं. एक तरफ़ रामनवमी में मस्जिदों के सामने हिंसा, दूसरी तरफ़ रमज़ान में मुसलमानों को उनके घरों और मोहल्लों में सामूहिक नमाज़ पढ़ने से रोकना.

यह एक प्रकार से हिंदू समाज में बैठी हीनता ग्रंथि का नतीजा है. वे अपने धर्म में सुख नहीं पा रहे, उनका धर्म उन्हें शांति नहीं दे पा रहा. इसकी जगह मुसलमानों और ईसाइयों पर हमला करने में आनंद प्राप्त कर रहे हैं, वही उनका धार्मिक कार्य हो गया है. जैसे हिंदू होंगे, वैसा ही उनका धर्म होगा. क्या कहने की ज़रूरत है कि अभी हीन भाव और घृणा बाक़ी दूसरे धर्मावलंबियों के मुक़ाबले हिंदुओं में सबसे अधिक है? फिर हिंदू धर्म के बारे में क्या राय बनेगी?

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)