संसदीय समिति ने बांधों की सुरक्षा पर चिंता जताई, कहा- 234 डैम सौ साल से ज़्यादा पुराने

संसद की जल संबंधी एक स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश में काम कर रहे 234 बड़े बांधों में से कुछ 300 साल से अधिक पुराने हैं. समिति ने सिफ़ारिश की है कि जल शक्ति मंत्रालय बांधों के जीवन और संचालन का आकलन करने के लिए एक व्यवहार्य तंत्र विकसित करे और राज्यों को उन बांधों को बंद करने के लिए राजी करे, जो अपनी आयु पूरी कर चुके हैं.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

संसद की जल संबंधी एक स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश में काम कर रहे 234 बड़े बांधों में से कुछ 300 साल से अधिक पुराने हैं. समिति ने सिफ़ारिश की है कि जल शक्ति मंत्रालय बांधों के जीवन और संचालन का आकलन करने के लिए एक व्यवहार्य तंत्र विकसित करे और राज्यों को उन बांधों को बंद करने के लिए राजी करे, जो अपनी आयु पूरी कर चुके हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: एक संसदीय पैनल ने देश में पुराने बांधों की सुरक्षा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि भारत में 234 बड़े बांध हैं ऐसे हैं जो काम कर रहे हैं पर वे 100 साल से अधिक पुराने हैं.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, समिति ने यह भी बताया कि उनमें से कुछ 300 साल से अधिक पुराने हैं लेकिन अभी तक इनमें से किसी को बंद (डिकमीशन) नहीं किया गया है.

अख़बार ने बताया कि डिकमीशन या बांध को बंद करना बहुत लंबी प्रक्रिया है जिसमें पनबिजली उत्पादन सुविधाओं को हटाना और जलग्रहण क्षेत्रों में पारिस्थितिक रूप से अमल में लाए जाने वाले माध्यम से नदी चैनलों को फिर से बनाना शामिल है. चूंकि बांधों का निश्चित जीवनकाल होता है, अमेरिका सहित दुनिया के कुछ अन्य देशों ने अपने बांधों को डिकमीशन करते हुए नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बहाल किया है.

बांधों को आम तौर पर 100 साल की अवधि को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया जाता है और उनका लाभ समय के साथ घटने लगता है. हालांकि भारत में अब तक कोई भी बांध बंद नहीं किया गया है.

संसदीय पैनल- पानी पर स्थायी समिति, जिसने 20 मार्च को संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपी- ने सिफारिश की है कि जल शक्ति मंत्रालय ‘बांधों के जीवन और संचालन का आकलन करने के लिए एक व्यवहार्य तंत्र’ विकसित करे और राज्यों को उन बांधों को बंद करने के लिए राजी करे, जो अपनी आयु पूरी कर चुके हैं.

गौरतलब है कि देश में बांधों की सुरक्षा हमेशा एक मुद्दा रहा है, जहां अतीत में 36 बांध आपदाओं की घटनाएं दर्ज की गई हैं. इनमें से सबसे भयावह घटना साल 1979 में गुजरात (मोरबी में माछू बांध) में हुई थी, जहां लगभग 2,000 लोग मारे गए थे और 12,000 से अधिक घर तबाह हो गए थे.

इससे पहले मंत्रालय द्वारा समिति को बताया गया था कि ‘बांधों के व्यवहार्य जीवनकाल और प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कोई तंत्र उपलब्ध नहीं है.’ हालांकि, बांधों के मूल्यांकन और सुरक्षा के लिए इनका नियमित रखरखाव किया जाता है. ज्यादातर बांध राज्य सरकारों/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू)/निजी एजेंसियों के स्वामित्व में हैं जो अपने अधिकारक्षेत्र में बांधों के संचालन और रखरखाव के कामों को संभालते हैं.

केंद्र ने किसी निर्दिष्ट बांध की निगरानी, निरीक्षण, सञ्चालन और रखरखाव करने के लिए 2021 में बांध सुरक्षा अधिनियम बनाया था.

संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में जल क्षेत्र में चुनौतियों का भी उल्लेख किया है. साथ ही जल संरक्षण, फसल विविधीकरण, कम पानी की आवश्यकता वाली फसलों को उगाने, सूखे झरनों के पुनरुद्धार, बाढ़ और बारिश के पानी के बेहतर संचयन के लिए ‘कानूनी और संस्थागत ढांचे को मजबूत करने’ जैसी रणनीति अपनाने की जरूरत पर जोर दिया है.

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