कश्मीर: हाईकोर्ट ने पीएसए के तहत अवैध हिरासत के लिए सरकार से 5 लाख रुपये हर्जाना देने को कहा

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के पूर्व प्रवक्ता अली मोहम्मद लोन की पीएसए के तहत हिरासत को दुर्भावनापूर्ण और अवैध बताते हुए रद्द कर दिया. अदालत ने कहा कि उन्हें 2019 से मार्च 2024 तक लगातार 1,080 दिनों से ज़्यादा समय के लिए जेल में रखने से उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ.

ammu & Kashmir and Ladakh high court. Photo: jkhighcourt.nic.in

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के पूर्व प्रवक्ता अली मोहम्मद लोन उर्फ जाहिद की हिरासत को रद्द करते हुए प्रशासन को उन्हें ‘अवैध हिरासत’ में रखने के लिए मुआवजा देने का निर्देश दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक यह पहली बार है, जब अदालत ने पीएसए के तहत किसी को हिरासत में रखने के लिए सरकार को सज़ा दी है . ये कानून अधिकारियों को किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखने की अनुमति देता है.

जस्टिस राहुल भारती की एकल पीठ ने अपने फैसले में याचिकाकर्ता की हिरासत को दुर्भावनापूर्ण और अवैध बताया.

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को 2019 से मार्च 2024 तक लगातार चार हिरासत आदेशों के तहत 1,080 दिनों से ज्यादा समय के लिए जेल में रखा गया. इस दौरान उनकी स्वतंत्रता बाधित रही, जो याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के उल्लंघन है.

मालूम हो कि अदालत ने ये फैसला 3 अप्रैल को सुनाया था, जिसे शुक्रवार (26 अप्रैल) को अपलोड किया गया है.

अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि याचिकाकर्ता की नवीनतम हिरासत, उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार और सज़ा से मुक्ति के नियम का उल्लंघन कर अवैधता को भी बढ़ावा दे रही है, ऐसे में याचिकाकर्ता मुआवजे का हकदार है. इसलिए ये अदालत सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार … इस मामले को अपने संवैधानिक अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने के लिए एक उपयुक्त संदर्भ मानती है.

अदालत ने कहा, ‘हालांकि याचिकाकर्ता ने पच्चीस लाख रुपये के मुआवजे का दावा किया है, लेकिन अदालत का मानना है कि पांच लाख रुपये का मुआवजा न्याय के उद्देश्य को पूरा करता है. अदालत ने संबंधित जेल अधीक्षक को अली मोहम्मद लोन को जेल से रिहा करने का भी निर्देश दिया.

गौरतलब है कि मोहम्मद अली को पहली बार 5 मार्च 2019 में गिरफ्तार किया गया था. कोर्ट ने 11 जुलाई 2019 को उन्हें बरी कर दिया था. इसके आठ दिन बाद 19 जुलाई 2019 को सरकार ने अली को फिर से पीएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया. इस बार भी अदालत ने 3 मार्च 2020 को मामले पर सुनवाई की और अली को रिहा कर दिया. इसके बाद  29 जून 2020 को सरकार ने तीसरी बार पीएसए का सहारा लेकर अली को हिरासत में लिया, उन्हें 24 फरवरी 2021 को कोर्ट ने फिर बरी किया और आखिरी बार  14 सितंबर 2022 को चौथी बार अली पर फिर से पीएसए लगाया गया और उन्हें जेल में डाल दिया गया.

अदालत ने चौथे हिरासत आदेश को पारित करने से पहले पीएसए को रद्द करने के पिछले आदेशों को पढ़ने की जहमत न उठाने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) और पुलवामा के जिला मजिस्ट्रेट को फटकार लगाते हुए इस बारे में भी आलोचनात्मक टिप्पणियां भी कीं.

अदालत ने कहा,  ‘अगर निवारक हिरासत को रद्द करने वाले इस अदालत के तीन फैसलों को नजरअंदाज नहीं किया गया है, तो एसएसपी, जिला मजिस्ट्रेट और सरकार द्वारा दिमाग लगाया जा सकता है. जम्मू-कश्मीर के तीन अधिकारियों द्वारा यह दावा कैसे किया जा सकता है कि याचिकाकर्ता की चौथी बार हिरासत में लेने के पीछे तथ्य और निष्पक्ष मानसिकता है.

अदालत ने आगे कहा, ‘यह कहना पर्याप्त है कि याचिकाकर्ता की हिरासत निश्चित रूप से दुर्भावना से ग्रस्त है, यदि वास्तव में दुर्भावना नहीं है… तो तथ्य यह है कि डोजियर और हिरासत आदेश एक ही तारीख के हैं, यानी 14/09/2022, ये एक प्रमाण है कि याचिकाकर्ता की हिरासत एक सोची-समझी मानसिकता का नतीजा थी, और इसका उद्देश्य याचिकाकर्ता को किसी भी तरह से जेल की सलाखों में रखना था, भले ही किसी आपराधिक मामले में उसकी कोई दोषसिद्धि न हो.’