बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़ा कोई भी मामला बेहद ज़रूरी: बॉम्बे हाईकोर्ट

स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में आईटी नियम, 2021 में किए गए हालिया संशोधनों को चुनौती दी है, जो सरकार को उसके द्वारा 'फ़र्ज़ी' क़रार दी गई सामग्री को सोशल मीडिया से हटवाने का अधिकार देते हैं. इसे सुनते हुए जस्टिस गौतम पटेल ने कहा कि किसी बात या बयान की कई व्याख्याएं हो सकती हैं, लेकिन इससे यह ग़लत या फ़र्ज़ी नहीं हो जाती.

(फोटो: द वायर)

स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में आईटी नियम, 2021 में किए गए हालिया संशोधनों को चुनौती दी है, जो सरकार को उसके द्वारा ‘फ़र्ज़ी’ क़रार दी गई सामग्री को सोशल मीडिया से हटवाने का अधिकार देते हैं. इसे सुनते हुए जस्टिस गौतम पटेल ने कहा कि किसी बात या बयान की कई व्याख्याएं हो सकती हैं, लेकिन इससे यह ग़लत या फ़र्ज़ी नहीं हो जाती.

(फोटो: द वायर)

मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय के जस्टिस गौतम पटेल ने स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि अनुच्छेद 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) से संबंधित कोई भी मामला हमेशा अति आवश्यक होता है.

कामरा ने आईटी नियम 2021 में हालिया संशोधनों को चुनौती दी है, जो सरकार को अपनी नीतियों के बारे में ऑनलाइन पोस्ट सत्यापित करने के लिए एक फैक्ट चेक इकाई नियुक्त करने का अधिकार देता है.

बीते दिनों इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नए आईटी नियमों में कहा गया है कि गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि कंपनियां सरकारी फैक्ट-चेक इकाई द्वारा ‘फ़र्ज़ी या भ्रामक’ क़रार दी गई सामग्री इंटरनेट से हटाने को बाध्य होंगी.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कामरा की याचिका सुनते हुए जस्टिस हुए पटेल ने कहा कि किसी बात या बयान की कई व्याख्याएं हो सकती हैं, लेकिन इससे यह गलत या फर्जी नहीं हो जाता.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कोर्ट से कहा कि इस बारे कोई पैनल गठित नहीं किया गया है और जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जस्टिस पटेल और जस्टिस नीला गोखले की पीठ ने केंद्र से यह जवाब मांगा है कि क्या कोई तथ्यात्मक पृष्ठभूमि या तर्क है जिसके कारण इस संशोधन की आवश्यकता है.

पीठ ने कहा, ‘क्या कोई तथ्यात्मक पृष्ठभूमि या तर्क है जिसके कारण इस संशोधन की आवश्यकता पड़ी? याचिकाकर्ता (कामरा) इस संशोधन के कारण किसी तरह के प्रभाव का अनुमान लगा रहे हैं.’

अदालत ने 19 अप्रैल तक केंद्र से जवाब मांगा है और 21 अप्रैल तक सुनवाई को स्थगित कर दिया.

गौरतलब है कि कामरा ने अपनी याचिका में कहा कि यह आईटी नियम उनके कंटेंट को मनमाने ढंग से अवरुद्ध करने या उनके सोशल मीडिया एकाउंट्स को अस्थायी या स्थायी रूप से बंद करने का कारण बन सकते हैं, जो उनके काम के लिए हानिकारक होगा.

कामरा ने अदालत से संशोधित नियमों को गैरकानूनी घोषित करने और सरकार को किसी के भी खिलाफ कानून लागू करने से रोकने का आदेश देने की मांग की है.

उनकी याचिका में कहा गया है, ‘ये नियम कानून के शासन और हमारी लोकतांत्रिक राजनीति पर हमला करते हैं, क्योंकि वे प्रतिवादी द्वारा विचार, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला करते हैं.’

बता दें कि आईटी नियमों के इन संशोधनों की व्यापक आलोचना होती रही है. बीते सप्ताह नियमों के अधिसूचित होने के बाद देश के विपक्षी दलों के साथ मीडिया संगठनों ने भी इसे लेकर सवाल उठाए थे. एडिटर्स गिल्ड ने इसे सेंसरशिप के समान बताया था.

जनवरी में जब इनका प्रस्ताव पेश किया गया था, तब उसमें पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) को फैक्ट-चेक को लेकर व्यापक अधिकार दिए गए थे, जिसे लेकर एडिटर्स गिल्ड सहित देश भर के मीडिया संगठनों ने आलोचना की थी.

2019 में स्थापित पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई, जो सरकार और इसकी योजनाओं से संबंधित खबरों को सत्यापित करती है, पर वास्तविक तथ्यों पर ध्यान दिए बिना सरकारी मुखपत्र के रूप में कार्य करने का आरोप लगता रहा है.

मई 2020 में न्यूज़लॉन्ड्री ने ऐसे कई उदाहरणों पर प्रकाश डाला था जिनमें पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई वास्तव में तथ्यों के पक्ष में नहीं थी, बल्कि सरकारी लाइन पर चल रही थी.

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