19 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद से योगी आदित्यनाथ ने पुलिस एनकाउंटर को अपना राजनीतिक समर्थन दिया है. मुख्यमंत्री के लिए यह अपराध पर नकेल कसने, जो उनकी सरकार का प्रमुख मुद्दा है, का सबसे शक्तिशाली हथियार है. उन्होंने इसे एक निवारक उपाय भी माना है.
लखनऊ: गैंगस्टर और पूर्व सांसद अतीक अहमद के 19 वर्षीय बेटे असद अहमद और उनके सहयोगी की पुलिस एनकाउंटर में मौत मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार के सत्ता में आने के बाद से 183वां एनकाउंटर है.
24 फरवरी को उमेश पाल की हत्या से संबंधित मामले में यह तीसरा एनकाउंटर है. उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा अप्रैल के पहले 13 दिनों में यह तीसरा एनकाउंटर है.
19 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद से योगी आदित्यनाथ ने पुलिस की इस विवादास्पद पद्धति को अपना राजनीतिक समर्थन दिया है.
इस संबंध में की गई इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी पुलिस ने उनके कार्यभार संभालने के एक पखवाड़े के भीतर ही 31 मार्च को सहारनपुर के नंदनपुर गांव में एक कथित अपराधी गुरमीत को मार गिराया था.
मुख्यमंत्री के लिए यह अपराध पर नकेल कसने, जो उनकी सरकार का प्रमुख मुद्दा है, का सबसे शक्तिशाली हथियार है. उन्होंने इसे एक निवारक उपाय भी माना है. 3 जून 2017 को इंडिया टीवी के ‘आपकी अदालत’ कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था कि अगर अपराधी अपराध करते हैं तो ‘ठोक दिए जाएंगे’.
अपराध और कानून व्यवस्था के विशेष महानिदेशक प्रशांत कुमार ने पुष्टि की, ‘अपराध और अपराधियों के खात्मे के वादे को पूरा करते हुए 2017 के बाद से यह एनकाउंटर में 183वीं मौत है.’
झांसी के बड़ागांव थाना क्षेत्र में पारिछा तटबंध के पास असद अहमद और गुलाम हुसैन के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद कुमार ने शुक्रवार दोपहर यूपी स्पेशल टास्क फोर्स के एडीजी अमिताभ यश के साथ मीडिया को यह जानकारी दी.
प्रशांत कुमार ने कहा, ‘मुठभेड़ों में मारे गए या घायल हुए लोग खूंखार अपराधी थे. एसटीएफ और एटीएस सहित सभी पुलिस एजेंसियां मुख्यमंत्री के अपराध और अपराधियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के निर्देश के अनुसार काम कर रही हैं.’
एनकाउंटर में 183 मौतों के अलावा आधिकारिक आंकड़े दिखाते हैं कि 5,046 अपराधियों को पुलिस कार्रवाई में घायल होने के बाद गिरफ्तार किया गया है. उत्तर प्रदेश में, जहां एनकाउंटर के दौरान अपराधी के पैर में गोली मारी जाती है, इसे पुलिस ही नहीं सत्ता के गलियारों में भी ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ कहा जाता है.
आधिकारिक आंकड़े यह भी बताते हैं कि इस तरह के ऑपरेशन के दौरान पिछले छह वर्षों में 13 पुलिसकर्मी शहीद हुए है और 1,443 पुलिसकर्मी घायल हुए.
हालांकि, बीते माह उत्तर प्रदेश सरकार ने जानकारी दी थी कि पिछले छह वर्षों में राज्य में पुलिस और आरोपियों के बीच 10,000 से अधिक मुठभेड़ (Encounters) हुई हैं, जिसमें 63 आरोपी मारे गए हैं, जबकि एक पुलिसकर्मी शहीद हुआ है और 1,708 आरोपी घायल हुए हैं. पुलिस के दावे और सरकारी आंकड़ों की यह भिन्नता गौर करने लायक है.
बहरहाल, आदित्यनाथ ने इस एनकाउंटर नीति को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल किया है. 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान शामली में एक रैली में उन्होंने राज्य में असुरक्षा, दंगे और माफिया लाने वालों का जिक्र करते हुए कहा था, ‘ये देख लो, 10 मार्च के बाद ये गर्मी पूरी शांत करवा देंगे.’
हाल ही में इलाहाबाद में गोलीबारी में उमेश पाल और दो गनर के मारे जाने के एक दिन बाद 25 फरवरी को आदित्यनाथ ने कहा था, ‘इस माफिया को मिट्टी में मिला देंगे.’
आंकड़ों के अनुसार, योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल के दूसरे वर्ष यानी 2018 में अधिकतम लोगों को पुलिस एनकाउंटर में मारा गया और वर्ष 2022 में जब वे दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुने गए तब सबसे कम लोगों को मारा गया.
2018 में लोकसभा चुनाव से एक साल पहले आदित्यनाथ ने खुद को अपराधियों से सख्ती से निपटने वाले एक सख्त व्यक्ति के रूप में प्रदर्शित किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों ने कानून और व्यवस्था के मामले में सर्वश्रेष्ठ राज्य के तौर पर यूपी का उदाहरण दिया था.
बता दें कि गैंगस्टर और पूर्व सांसद अतीक अहमद के बेटे समेत दो लोगों को उत्तर प्रदेश पुलिस ने बृहस्पतिवार को झांसी में हुए एक एनकाउंटर के दौरान मार गिराया था.
अतीक के बेटे असद अहमद और गुलाम, उमेश पाल की हत्या में वांछित थे, जिनकी 24 फरवरी को उनके इलाहाबाद स्थित घर के बाहर दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. पेशे से वकील उमेश पाल 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के गवाह थे. अतीक अहमद विधायक की हत्या का आरोपी है.