केंद्र का नगालैंड फायरिंग में शामिल सैन्य अधिकारियों पर मुक़दमे की अनुमति से इनकार

दिसंबर 2021 में मोन ज़िले में सेना की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत हो गई थी. मामले को लेकर नगालैंड पुलिस ने मेजर रैंक के एक अधिकारी समेत 21 पैरा स्पेशल फोर्स के 30 जवानों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की गई थी. नियमानुसार उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए मोदी सरकार से मंज़ूरी मांगी गई थी.

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ओटिंग गांव में हुई फायरिंग में मारे गए 14 नागरिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए स्थानीय स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए गए. (फोटो: पीटीआई)

दिसंबर 2021 में मोन ज़िले में सेना की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत हो गई थी. मामले को लेकर नगालैंड पुलिस ने मेजर रैंक के एक अधिकारी समेत 21 पैरा स्पेशल फोर्स के 30 जवानों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की गई थी. नियमानुसार उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए मोदी सरकार से मंज़ूरी मांगी गई थी.

ओटिंग गांव में हुई फायरिंग में मारे गए नागरिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए तब स्थानीय स्तर पर आयोजित किए गए एक कार्यक्रम के दौरान की तस्वीर.  (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: नगालैंड पुलिस ने एक निचली अदालत को सूचित किया है कि केंद्र सरकार ने उन 30 सैन्य अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है, जो 2021 में राज्य के ओटिंग क्षेत्र में एक लापरवाही भरे सैन्य अभियान में शामिल थे, जिसके चलते 13 नागरिकों की मौत हो गई थी.

रिपोर्ट के अनुसार, राज्य पुलिस महानिरीक्षक (सीआईडी) रूपा एम. ने बुधवार (12 अप्रैल) को कहा कि राज्य अपराध सेल थाने और विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मोन जिला और सत्र न्यायाधीश को सूचित किया है कि केंद्र सरकार के सैन्य मामलों के विभाग और रक्षा मंत्रालय ने 5 दिसंबर 2021 की ओटिंग घटना के सभी आरोपियों के खिलाफ अभियोजन चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है.

निचली अदालत 30 मई 2022 को राज्य पुलिस द्वारा मोन में दायर एक केस पर आधारित मामले पर सुनवाई कर रही है.

13 अप्रैल को भी एक अन्य प्रेस विज्ञप्ति में राज्य के पुलिस महानिदेशक कार्यालय द्वारा मंजूरी देने से इनकार किए जाने की पुष्टि की गई.

कोयला खदान में काम से लौट रहे 13 नागरिकों की अकारण हत्याओं पर पूर्वोत्तर राज्य में भारी जनआक्रोश के बाद राज्य सरकार के गृह विभाग द्वारा एसआईटी का गठन किया गया था. सेना ने कहा था कि यह ‘गलत पहचान’ का मामला था.

घटना के समय गोलियों की आवाज सुनकर मौके पर पहुंचे स्थानीय लोगों के हमले में सेना का एक जवान भी मारा गया था. कुल मिलाकर इस घटना में 15 नागरिक मारे गए थे.

ज्ञात हो कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (आफस्पा) ऐसे मामलों में सुरक्षा बलों को प्रतिरक्षा प्रदान करता है. एक बार ‘अशांत क्षेत्र’ में आफस्पा लागू होता है तो कानून कहता है कि ‘इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत किए गए किसी भी कार्य के संबंध में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना कोई अभियोजन, मुकदमा या अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी.’

कुछ ही हफ्ते पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने एक बार फिर राज्य में इस कानून की अवधि छह महीने बढ़ा दी है, जो 1 अप्रैल से शुरू हुई है. ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा आठ जिलों और राज्य के 5 अन्य जिलों के तहत आने वाले 21 थानाक्षेत्रों में लागू होगा.

नगालैंड फायरिंग मामले मेंएसआईटी ने अपनी जांच मार्च 2022 में पूरी की और हत्याओं में शामिल सभी 30 सैन्य अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए मोदी सरकार से मंजूरी मांगी थी. ट्रायल  शुरू होने से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी आवश्यक है. एसआईटी ने निष्कर्ष निकाला था कि पीड़ितों को ‘मारने के स्पष्ट इरादे से’ गोली मारी गई थी.

जुलाई 2022 में द वायर  द्वारा विशेष रूप से प्रकाशित एसआईटी की रिपोर्ट में कहा गया था कि लगभग 50 मिनट तक उग्रवाद विरोधी अभियान के टीम कमांडर को पता था कि वे गलत रास्ते पर हैं. एसआईटी के निष्कर्षों पर अधिक जानकारी यहां पढ़ी जा सकती है.

एसआईटी द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के दो महीने बाद जुलाई 2022 में अभियुक्तों की पत्नियां सुप्रीम कोर्ट से मामले पर आगे की कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगवाने में सफल रहीं. सेना के पैरा 21 विंग के एक कमांडो की भी जान चली गई थी और सेना ने मोन जिले में मामला भी दर्ज कराया था. इस मामले में सेना ने एक कोर्ट ऑफ इंक्वायरी भी शुरू की थी.

हत्याओं के कुछ घंटों बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में एक बयान में दावा किया था कि नागरिकों द्वारा भागने की कोशिश किए जाने के बाद सेना ने गोलियां चलाईं थीं. शाह के बयान का नगालैंड में भारी विरोध हुआ था, जिसके चलते उनका पुतला जलाया गया और उनसे बयान वापस लेने की मांग की गई थी.

संसद में शाह का पूरा बयान यहां पढ़ा जा सकता है.