सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में अतीक़ अहमद और अशरफ़ की हत्याओं की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति के गठन की मांग की गई. इसके अलावा योगी आदित्यनाथ सरकार के छह साल के कार्यकाल के दौरान राज्य में हुए 183 पुलिस एनकाउंटर की जांच की भी मांग की गई है.
नई दिल्ली: गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की पुलिस सुरक्षा में गोली मारकर हत्या किए जाने के एक दिन बाद रविवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर हत्याओं की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति के गठन की मांग की गई.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर याचिका में 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में हुई 183 पुलिस एनकाउंटर की जांच की भी मांग की गई है.
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में एक मेडिकल कॉलेज में जांच के लिए पुलिसकर्मियों द्वारा ले जाने के दौरान 60 वर्षीय अतीक अहमद और अशरफ, जो हथकड़ी में थे, को पत्रकार के भेष में आए तीन लोगों ने उस समय गोली मार दी, जब वे पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे.
गोलीबारी से कुछ घंटे पहले अहमद के बेटे असद अहमद का अंतिम संस्कार किया गया था, जो 13 अप्रैल को झांसी में पुलिस एनकाउंटर में अपने एक साथी के साथ मारा गया था.
उत्तर प्रदेश पुलिस ने शुक्रवार (14 अप्रैल) को कहा था कि उसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार के छह वर्षों में 183 कथित अपराधियों को एनकाउंटर में मार गिराया है और इसमें असद और उसका साथी भी शामिल हैं.
अतीक के बेटे असद अहमद और गुलाम, उमेश पाल की हत्या में वांछित थे, जिनकी 24 फरवरी को उनके इलाहाबाद स्थित घर के बाहर दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. पेशे से वकील उमेश पाल 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के गवाह थे. अतीक अहमद विधायक की हत्या का आरोपी है.
उमेश पाल की हत्या के संबंध में भी अतीक अहमद, उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन, उसके दो बेटों, उसके छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में अतीक और अशरफ की हत्याओं की जांच के लिए एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति के गठन की मांग की गई है.
इसमें कहा गया है, ‘2017 के बाद से हुए 183 पुलिस एनकाउंटर की जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति का गठन करके कानून के शासन की रक्षा के लिए निर्देश जारी करें, जैसा कि उत्तर प्रदेश के विशेष पुलिस महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) ने कहा है. इसके अलावा अतीक और अशरफ की पुलिस हिरासत में हत्या की भी जांच की जाए.’
अतीक की हत्या का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया है, ‘पुलिस द्वारा इस तरह की कार्रवाई लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए एक गंभीर खतरा है. कानून के शासन पर पुलिस राज का नेतृत्व की ओर ले जाती है.’
याचिका में कहा गया है, ‘लोकतांत्रिक समाज में पुलिस को अंतिम न्याय देने या दंड देने वाली संस्था बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. सजा की शक्ति केवल न्यायपालिका में निहित है.’
याचिका में कहा गया है कि गैर-न्यायिक हत्याओं या फर्जी पुलिस एनकाउंटर की कानून के तहत कोई जगह नहीं है.
जब पुलिस ‘डेयर डेविल्स’ बन जाती है तो कानून का पूरा शासन ध्वस्त हो जाता है और पुलिस के खिलाफ लोगों के मन में भय उत्पन्न होता है जो लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है और इसका परिणाम आगे अपराध भी होता है.
मालूम हो कि इलाहाबाद पुलिस ने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या के आरोपी तीनों हमलावरों की पहचान लवलेश तिवारी (23 वर्ष), सनी सिंह (23 वर्ष) और अरुण मौर्य (18 वर्ष) के रूप में की है. पुलिस ने कहा कि वे क्रमश: बांदा, कासगंज और हमीरपुर के रहने वाले हैं.
आरोपियों को इलाहाबाद की एक अदालत ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है. पुलिस का दावा है कि तीनों आरोपियों ने प्रसिद्धि पाने के लिए ऐसा किया है.
बहरहाल प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस की मौजूदगी में हुई इस सनसनीखेज हत्या की उच्चस्तरीय जांच का आदेश दिया है. जांच के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया है.
अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की कैमरे के सामने पुलिस के सुरक्षा घेरे में हुई हत्याओं पर तमाम विपक्षी दलों के नेताओं से तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की.
घटना की निंदा करते हुए विपक्ष के नेताओं ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग करने के साथ उत्तर प्रदेश सरकार को भी बर्खास्त करने की मांग की है.