गौहाटी हाईकोर्ट ने एक ख़बर का स्वतः संज्ञान लिया था, जिसमें होजई के डोबोका शिविर की बदहाल व्यवस्था दर्ज करते हुए 18 महीने से 6 साल के 50 बच्चों के गंभीर रूप से बीमार होने के बारे में बताया गया था. मामले में नियुक्त एमिकस क्यूरी की शिविर के दौरे के बाद दी गई रिपोर्ट में बेहद अमानवीय स्थिति सामने आई है.
गुवाहाटी: गौहाटी हाईकोर्ट ने शुक्रवार को होजई जिले के एक पुनर्वास शिविर में ‘अमानवीय’ हालात के लिए असम सरकार को जमकर फटकार लगाई. इस शिविर में नवंबर 2021 में एक अभियान के तहत बेदखल किए गए लगभग 350 परिवारों को विस्थापित किया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गौहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संदीप मेहता ने राज्य सरकार के वकील डी. नाथ से कहा, ‘यह बेहद अमानवीय है. कब तक आप लोगों को मवेशियों की तरह तिरपाल से बने अस्थायी आश्रयों में रख सकते हैं?’
जस्टिस मेहता ने ये टिप्पणियां वरिष्ठ अधिवक्ता बीडी कोंवर द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के आधार पर कीं, जिन्होंने 20 अप्रैल को हाईकोर्ट के निर्देश पर पुनर्वास शिविर का दौरा किया था.
उससे पहले, अदालत ने एक असमिया अखबार की एक रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लिया था, जिसमें बताया गया था कि होजई के डोबोका शिविर में 18 महीने से 6 साल आयु के बीचे के 50 बच्चे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे और उन्हें बुखार, दस्त, उल्टी आदि के लक्षणों के बाद अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था.
एक जनहित याचिका दायर की गई थी और एमिकस क्यूरी नियुक्त किए गए कोंवर ने गुरुवार को गुवाहाटी से लगभग 156 किलोमीटर दूर होजई के चांगमाजी गांव में शिविर का दौरा किया.
नवंबर 2021 से शिविर में वे लोग रहे हैं जो राज्य सरकार द्वारा लुमडिंग संरक्षित वन को अतिक्रमण से मुक्त कराने के बेदखली अभियान में विस्थापित हो गए थे.
होजई के पूर्व भाजपा विधायक शिलादित्य देव की जनहित याचिका पर गौहाटी हाईकोर्ट द्वारा बेदखली के आदेश दिए गए थे, जिसे वन विभाग द्वारा पुलिस और जिला प्रशासन के सहयोग से पूरा किया गया था.
कोंवर की 36 पन्नों की रिपोर्ट में शिविर की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है और इसे ‘मवेशियों के रहने की जगह से बदतर’ बताया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘शौचालय और बाथरूम जैसी बुनियादी मानवीय जरूरतों की कमी शिविर में रह रहे लोगों के जीवन को दयनीय बना रही है. ट्यूबवेल… लोहे से भरे हुए हैं और छानने का कोई प्रावधान नहीं है. इसके अतिरिक्त, कोई जल निकासी व्यवस्था नहीं है, बिजली नहीं है…’
रिपोर्ट में 735 बच्चों का विशेष जिक्र किया गया है, जो वर्तमान में शिविर में रहते हैं और उन्हें ‘सबसे अधिक प्रभावित’ बताया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘उनमें से अधिकांश के पास उचित कपड़े नहीं हैं… वे कुपोषित दिखाई पड़ते हैं और उनके नाखून पीले हैं. कई बच्चे अभी भी विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे हैं’
शुक्रवार की सुनवाई में जस्टिस मेहता ने कहा, ‘जरा अपने खुद के बच्चे के बारे में सोचिए… वह तिरपाल में रह रहा है… दो साल से… क्या आप दुर्दशा की कल्पना कर सकते हैं?’
सरकारी वकील नाथ ने कहा कि बच्चों का इलाज किया जा रहा है, जिस पर जस्टिस मेहता ने कहा, ‘इलाज के बाद वे कहां जाएंगे … फिर से उसी नरक में? आप क्या उम्मीद करते हैं?’
कोंवर की रिपोर्ट में मोबाइल मेडिकल यूनिट की तैनाती, स्वच्छ पेयजल की सुविधा, बिजली तक पहुंच समेत कई सिफारिशें की गई हैं. रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि सरकार को इन बच्चों को समायोजित करने के लिए आसपास के स्कूलों की क्षमता बढ़ानी चाहिए.
हाईकोर्ट ने अधिकारियों को तुरंत समस्या को हल करने, पीने योग्य पानी की आपूर्ति की सुविधा प्रदान करने और ऐसे ही आश्रय शिविरों की सटीक संख्या प्रस्तुत करने के लिए आदेश दिया है जो ऐसे बेदखली अभियानों के कारण विस्थापित लोगों के लिए बने हैं. अदालत ने विशेष रूप से लिंग-वार विवरण के साथ-साथ बच्चों की संख्या के बारे में भी पूछा है.
विपक्ष और अधिकार समूहों की बढ़ती आलोचना के बावजूद हिमंता बिस्वा शर्मा सरकार ‘अवैध निवासियों’ और ‘अतिक्रमणकारियों’ से सरकारी भूमि को खाली कराने के लिए बेदखली अभियान चला रही है. सितंबर 2021 में दर्रांग जिले के ढालपुर में अभियान हिंसक हो गया था, जिसमें दो नागरिकों की मौत हो गई थी और कई घायल हो गए थे.
इस मामले में अगली सुनवाई 8 मई को होगी.
राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, मई 2021 (जब शर्मा मुख्यमंत्री बने) और सितंबर 2022 के बीच 4,449 परिवारों को बेदखल किया जा चुका है, जिनमें से अधिकांश बंगाली मूल के मुसलमान हैं.
शुक्रवार को जस्टिस मेहता ने डोबोका शिविर की रिपोर्ट को देखते हुए सरकारी वकील से कहा, ‘सबसे दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा है… सूची देखें… सभी लोग एक ही समुदाय के हैं.’