ट्विटर का अधिग्रहण करने के बाद एलन मस्क ने अभिव्यक्ति की आज़ादी के एक नए युग की शुरुआत और सोशल मीडिया पर राजनीतिक हस्तक्षेप को अस्वीकार करने का वादा किया था. एक रिपोर्ट के अनुसार, 27 अक्टूबर 2022 से 27 अप्रैल 2023 तक ट्विटर को भारत से 971 अनुरोध प्राप्त हुए हैं, जिसमें से उनसे 808 का पूरी तरह से पालन किया है.
नई दिल्ली: अभिव्यक्ति की आजादी के एक नए युग की शुरुआत करने और सोशल मीडिया पर राजनीतिक हस्तक्षेप को अस्वीकार करने के अपने वादे के बावजूद एलन मस्क का ट्विटर सेंसरशिप या निगरानी के लिए सरकारी आदेशों का काफी अधिक पालन करता रहा है – जिसमें भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले आदेश भी शामिल है.
वैश्विक स्तर पर तकनीक से जुड़ीं खबरें देने वाले समाचार वेबसाइट रेस्ट ऑफ वर्ल्ड ने ट्विटर द्वारा रिपोर्ट किए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया है. इसके अनुसार, ट्विटर को 27 अक्टूबर 2022 से 27 अप्रैल 2023 तक 971 सरकारी और अदालती अनुरोध प्राप्त हुए हैं.
इन अनुरोधों में विवादास्पद पोस्ट को हटाने से लेकर निजी डेटा प्रस्तुत करने की मांग की गई ताकी गुमनाम एकाउंट की पहचान की जा सके.
ट्विटर ने बताया कि उसने 971 अनुरोधों में से 808 अनुरोधों का पूरी तरह से और 154 अन्य मामलों का आंशिक रूप से पालन किया. नौ अनुरोधों के संबंध में ट्विटर ने किसी विशिष्ट प्रतिक्रिया की सूचना नहीं दी.
रेस्ट ऑफ वर्ल्ड ने बताया है, ‘सबसे खतरनाक है कि ट्विटर की स्व-रिपोर्ट्स में एक भी अनुरोध ऐसा नहीं दिखाता है, जिसमें कंपनी ने उसका पालन करने से इनकार किया हो, जैसा कि ट्विटर ने एलन मस्क द्वारा अधिग्रहण किए जाने से पहले कई बार किया (अनुरोध मानने से इनकार) था. ट्विटर ने मस्क के अधिग्रहण से छह महीने पहले ऐसे तीन अनुरोधों को खारिज कर दिया था और छह महीने पहले पांच ऐसे अनुरोधों को खारिज कर दिया था.’
रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 50 ऐसे अनुरोध किए जो कि विश्व में तीसरा सबसे अधिक था. इसके अलावा केवल तुर्की (491) और जर्मनी (255) ने अधिक अनुरोध किए. भारत द्वारा किए गए 50 में से 44 अनुरोधों का पूर्ण रूप से, पांच का आंशिक रूप से पालन किया गया और ट्विटर ने अंतिम एक अनुरोध के लिए कोई विशिष्ट प्रतिक्रिया सूचीबद्ध नहीं की है.
ये आंकड़े ट्विटर द्वारा लुमेन डेटाबेस को प्रदान की गई जानकारी पर आधारित था, जो टेकडाउन (ट्वीट हटाने संबंधी) अनुरोधों और ऑनलाइन भाषण प्लेटफार्मों द्वारा प्राप्त अन्य सरकारी आदेशों के लिए एक सार्वजनिक समाशोधन गृह (Public Clearinghouse) है.
इसका रखरखाव हार्वर्ड के बर्कमैन क्लेन सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी द्वारा किया जाता है और इसने 20 से अधिक वर्षों के लिए सरकारी अनुरोधों को एकत्र किया है. गूगल, यूट्यूब, विकिपीडिया और रेडिट आदि इन आंकड़ों की जानकारी लुमेन डेटाबेस को देते हैं.
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि ट्विटर द्वारा पूरी तरह से पालन किए गए अनुरोधों के प्रतिशत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. एलन मस्क के अधिग्रहण से पहले वर्ष में पालन दर लगभग 50 प्रतिशत थी, लेकिन तब से यह 83 प्रतिशत (971 में से 808 अनुरोधों का पालन) तक बढ़ गई है.
रिपोर्ट के अनुसार, विशेष रूप से भारत, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में, भाषण पर अधिक नियमों के कारण ऐसे अनुरोधों की संख्या में वृद्धि हो सकती है.
ट्विटर के मालिक एलन मस्क ने 12 अप्रैल को बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि वह संभवत: भारत सरकार द्वारा जारी ब्लॉकिंग आदेशों का पालन करते हैं, क्योंकि वह ऐसे हालात का सामना करना नहीं चाहते हैं, जहां ट्विटर के कर्मचारियों को जेल भेजा जा रहा हो.
कुछ महीने पहले बीबीसी ने गुजरात के दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व के बारे में एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी. इससे संबंधित कुछ सामग्री सामग्री को हटा दिया गया था. क्या वह भारत सरकार के इशारे पर हुआ था, इस सवाल पर मस्क ने जवाब दिया था, ‘मुझे उस विशेष परिस्थिति की जानकारी नहीं है.’
इंटरव्यू के दौरान मस्क कहते हैं, ‘भारत में सोशल मीडिया पर क्या दिखाया जा सकता है, इस संबंध में नियम काफी सख्त हैं और हम किसी देश के कानूनों से परे नहीं जा सकते हैं.’
इस दौरान उनसे पूछा गया था, ‘लेकिन क्या आपको लगता है कि अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप दुनिया भर के देशों को और अधिक कठोर कानूनों को पारित करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं.’
मस्क ने जवाब दिया था, ‘नहीं, देखिए, अगर हमारे पास यह विकल्प है कि या तो हमारे लोग जेल जाएं या हम कानूनों का पालन करें, तो हम कानूनों का पालन करेंगे. वही बीबीसी के मामले में हुआ.’
गौरतलब है कि इस साल जनवरी में नरेंद्र मोदी सरकार ने यूट्यूब और ट्विटर दोनों को बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ के लिंक हटाने के लिए कहा था. डॉक्यूमेंट्री को केंद्र सरकार ने ‘दुष्प्रचार’ करार दिया था. इस आदेश पर ट्विटर के तत्काल और निर्विवाद अनुपालन ने सवाल खड़े कर दिए थे.
मोदी से संबंधित डॉक्यूमेंट्री जारी होने के एक महीने बाद फरवरी में आयकर अधिकारियों ने नई दिल्ली और मुंबई में दो बीबीसी कार्यालयों में सर्वे किया था. भारत और विदेशों के मीडिया संगठनों ने इस छापे की निंदा की थी.
इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें