मणिपुर हिंसा के दौरान चर्चों पर हमला, ईसाई संगठनों ने शांति की अपील की

मणिपुर में आदिवासी समुदाय और मेईतेई समुदायों के बीच जारी हिंसा के बीच देश भर के ईसाई संगठनों ने कहा कि हम राज्य में ईसाइयों को निशाना बनाने और उनके उत्पीड़न में बढ़ोतरी को लेकर चिंतित हैं. हम सभी पक्षों से संयम बरतने और मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करने का आह्वान करते हैं.

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मणिपुर में हिंसा के दौरान भीड़ ने कई चर्चों में आग लगा दी. (फोटो साभार: ट्विटर/@naman_ltt)

मणिपुर में आदिवासी समुदाय और मेईतेई समुदायों के बीच जारी हिंसा के बीच देश भर के ईसाई संगठनों ने कहा कि हम राज्य में ईसाइयों को निशाना बनाने और उनके उत्पीड़न में बढ़ोतरी को लेकर चिंतित हैं. हम सभी पक्षों से संयम बरतने और मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करने का आह्वान करते हैं.

मणिपुर में हिंसा के दौरान भीड़ ने कई चर्चों में आग लगा दी. (फोटो साभार: ट्विटर/@naman_ltt)

नई दिल्ली: मणिपुर में आदिवासी समुदाय कुकी-ज़ोमी और मेईतेई समुदायों के बीच जारी हिंसा के बीच देश भर के ईसाई संगठनों ने शुक्रवार को शांति की अपील की.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया ने कहा कि विभिन्न समूहों के बीच ताकत के संघर्ष ने हिंसा, आगजनी और जान माल की हानि को जन्म दिया है. संगठन ने रविवार को सभी चर्चों को शांति की अपील करने के सामूहिक प्रयास में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया.

इस बीच, बेंगलुरु के मेट्रोपॉलिटन आर्कबिशप और भारत के कैथोलिक समुदाय के एक प्रमुख व्यक्ति रेवरेंड डॉ. पीटर मचाडो ने कहा कि राज्य में ईसाइयों को निशाना बनाया जा रहा है.

आर्कबिशप ने कहा, ‘हम उत्तर पूर्व के शांतिपूर्ण राज्य मणिपुर में ईसाइयों को निशाना बनाने और उनके उत्पीड़न में फिर से बढ़ोतरी को लेकर चिंतित हैं, जहां इस समुदाय की आबादी 41 प्रतिशत है. हमें रिपोर्ट मिली है कि 1974 में बने तीन चर्चों और कुछ घरों में आग लगा दी गई है और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है.’

मणिपुर की ‘बड़ी ईसाई आबादी को असुरक्षित महसूस कराने’ के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए आर्कबिशप ने कहा, ‘सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने हेल्पलाइन जारी किए हैं. यह उन लोगों के लिए खतरे की गंभीरता को प्रदर्शित करता है, जिन्हें उनके धार्मिक विश्वास और मान्यताओं के लिए निशाना बनाया जा रहा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह बताया गया है कि लगभग 17 चर्चों को या तो तोड़ा गया या अपवित्र किया गया और कई अब भी जल रहे हैं. हम आशा और प्रार्थना करते हैं कि स्थिति को नियंत्रण में लाया जाए और मणिपुर के लोगों में शांति और विश्वास बहाल किया जाए. धर्म की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार की जिम्मेदारी है, विशेष रूप से तब जब लोगों ने सुशासन के लिए उनकी क्षमता पर भरोसा करके पार्टी को सत्ता सौंपी है.’

इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया के महासचिव रेवरेंड विजयेश लाल ने कहा कि वह चुराचांदपुर जिले के लोगों के संपर्क में हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैंने आज रात भी कुछ लोगों से बात की और जिले में स्थिति गंभीर है. सेना की मौजूदगी के बावजूद आज भी चर्चों को जलाया गया है. हम मणिपुर के लोगों के लिए बहुत चिंतित हैं, चाहे वे किसी भी जनजाति या समुदाय के हों. वहां के आम लोग परेशान हैं. न खाना है, न पानी और न ही मूलभूत सुविधाएं हैं. लोग अपने घर छोड़कर भाग गए हैं.’

इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया ने एक बयान में कहा, ‘हम इसमें शामिल सभी पक्षों से संयम बरतने और मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करने का आह्वान करते हैं. हम मणिपुर के लोगों से उन ताकतों से बचने का आग्रह करते हैं, जो विभाजन को भड़काती हैं और ध्रुवीकरण का कारण बनती हैं.’

बयान के अनुसार, ‘हम राज्य और केंद्र सरकार से संघर्ष के अंतर्निहित कारणों को दूर करने के लिए सभी हितधारकों के साथ सकारात्मक बातचीत में शामिल होने की भी अपील करते हैं.’

ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन के प्रवक्ता और एक्टिविस्ट जॉन दयाल ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘इंफाल के करीब दो जिलों में कुकी और अन्य आदिवासी समुदाय मुख्य रूप से निशाने पर हैं, जिन चर्चों को निशाना बनाया गया है, उनमें मेईतेई समुदाय के ईसाई भी शामिल हैं.’

दयाल ने कहा, राज्य में ईसाई सदमे की स्थिति में हैं. 2008 में ओडिशा के कंधमाल में ऐसी ही आगजनी और हत्याएं बड़े पैमाने पर हुई थीं. हमारी प्रतिक्रिया प्रार्थना में रही है. उम्मीद है कि सरकार अपना संवैधानिक कर्तव्य निभाएगी और शांति बहाल करेगी.’

इससे पहले इंफाल के एक पादरी ने द वायर को बताया था कि भीड़ ने राज्य के कई चर्चों में आग लगा दी थी. कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि करीब 25 चर्चों को जला दिया गया था.

मालूम हो कि बीते 3 मई को बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय के एक वर्ग द्वारा अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग का विरोध करने के लिए एक आदिवासी छात्र संगठन द्वारा आयोजित एकजुटता मार्च के बाद मणिपुर के कई हिस्सों में तनाव फैल गया और हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं.

मालूम हो कि मणिपुर का बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग कर रहा है, जिसका आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे उनके संवैधानिक सुरक्षा उपाय और अधिकार प्रभावित होंगे.

मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में बीते 3 मई ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) द्वारा आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान चुराचांदपुर जिले के तोरबुंग क्षेत्र में पहली बार हिंसा भड़की थी.

इसके अलावा मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को मेईतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग पर चार सप्ताह के भीतर केंद्र को सिफारिश भेजने के लिए कहा था, जिसके बाद नगा और कुकी समुदाय सहित अन्य आदिवासियों ने इस मार्च का आयोजन किया था.

मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.