यूट्यूबर मनीष कश्यप के ख़िलाफ़ तमिलनाडु में बिहार के श्रमिकों पर हमले के फ़र्ज़ी वीडियो प्रसारित करने के आरोप में एनएसए के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई है. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका के माध्यम से कश्यप ने तमिलनाडु और बिहार में दर्ज मामलों को एक साथ जोड़ने और बिहार ट्रांसफर करने का अनुरोध किया था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार के यूट्यूबर मनीष कश्यप द्वारा दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. याचिका में उनके यूट्यूब चैनल पर अपलोड किए गए वीडियो के माध्यम से तमिलनाडु में बिहार के लोगों पर हमलों के बारे में फर्जी खबरें फैलाने के लिए बिहार और तमिलनाडु में उनके खिलाफ दर्ज अलग-अलग एफआईआर को एक साथ जोड़ने की मांग की गई थी.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने भी आरोपों पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत उनकी हिरासत को भी खत्म करने की उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. पीठ ने हालांकि कश्यप को राहत के लिए हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी है.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कहा, ‘आपके पास एक स्थिर राज्य तमिलनाडु है. आप अशांति पैदा करने के लिए कुछ भी प्रसारित करते हैं. हम इसे सुन नहीं सकते हैं.’
सीजेआई ने मामला संज्ञान में आते ही पूछा, ‘क्या किया जाना चाहिए? आप ये फर्जी वीडियो बनाते हैं?’
मनीष कश्यप की ओर से सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह एच. ने कहा कि उन्होंने मुख्यधारा के कुछ समाचार पत्रों द्वारा प्रकाशित मीडिया रिपोर्टों के आधार पर वीडियो बनाया था और अगर उन्हें एनएसए के तहत गिरफ्तार किया जाना है तो अन्य समाचार-पत्रों के पत्रकारों को भी इसके तहत हिरासत में लिया जाए.
उन्होंने कहा, ‘अगर इस लड़के (कश्यप) को जेल में रहना है, तो सभी पत्रकारों को जेल में होना चाहिए’. सिंह ने कहा कि दैनिक भास्कर जैसे समाचार पत्रों में भी यही बात कही गई थी.
उन्होंने पीठ से अनुरोध किया कि तमिलनाडु में दर्ज सभी एफआईआर को एक साथ जोड़ दिया जाए और उन्हें बिहार स्थानांतरित कर दिया जाए, जहां इस मुद्दे के संबंध में पहली एफआईआर दर्ज की गई थी.
रिपोर्ट के अनुसार, बिहार राज्य के वकील ने समझाया कि पटना में एफआईआर विभिन्न मामलों के संबंध में दर्ज की गई थी. पहली एफआईआर उनके द्वारा पटना में शूट किए गए एक वीडियो के संबंध में थी, जिसे उन्होंने गलत तरीके से तमिलनाडु से शूट हुआ है, बताकर अपलोड किया था और आरोप लगाया था कि वहां बिहारियों पर हमला हो रहा है.
वकील के अनुसार, दूसरी एफआईआर उनके द्वारा पटना हवाई अड्डे के पास से शूट किए गए एक वीडियो के संबंध में थी, जिसमें तमिलनाडु से भागे प्रवासी होने का दावा करने वाले व्यक्तियों के फर्जी साक्षात्कार थे; तीसरी एफआईआर एक अन्य फर्जी वीडियो के संबंध में था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि उन्हें तमिलनाडु पुलिस ने गिरफ्तार किया था.
बिहार सरकार के वकील ने आगे कहा कि मनीष कश्यप एक आदतन अपराधी हैं और उनके खिलाफ जबरन वसूली और हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं.
तमिलनाडु राज्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास तमिलनाडु में दर्ज एफआईआर को जोड़ने की मांग के लिए मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का वैकल्पिक उपाय है. सिब्बल ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता पत्रकार नहीं, एक राजनेता है, जो बिहार में चुनाव लड़ चुका है.
जब पीठ ने इस मामले पर विचार करने के लिए अपनी अनिच्छा व्यक्त की, तो मनीष कश्यप के वकील मनिंदर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया, जिसने एनएसए के तहत मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम की हिरासत में हस्तक्षेप किया था.
हालांकि, पीठ इस दलील से विचलित नहीं हुई और सीजेआई ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि कश्यप ने एक स्थिर राज्य के बारे में आतंक पैदा करने वाले वीडियो प्रसारित किए.
रिपोर्ट के अनुसार, पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य से इस तरह के आरोपों के लिए एनएसए लगाने की जरूरत के बारे में सवाल किया था.
जवाब में सिब्बल ने कहा था कि कश्यप के सोशल मीडिया एकाउंट के छह लाख से अधिक फॉलोवर हैं और उनके वीडियो से प्रवासी श्रमिक समुदाय में व्यापक चिंता और दहशत फैल गई थी.
बाद में तमिलनाडु में बिहारी प्रवासियों के खिलाफ हमलों के बारे में फर्जी खबरें फैलाने को लेकर कश्यप के खिलाफ दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ने की याचिका का विरोध करते हुए तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि ‘कश्यप सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय अखंडता को बिगाड़ने के बाद संवैधानिक अधिकार का हवाला देकर बचाव नहीं कर सकते.’
राज्य सरकार ने एक हलफनामे में कहा था कि कश्यप की हरकतों से राष्ट्रीय अखंडता प्रभावित हुई है. आगे कहा था, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है, और इसे सावधानी और जिम्मेदारी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए.’
मालूम हो कि बीते मार्च महीने में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एक व्यक्ति को ट्रेन के भीड़ भरे डिब्बे में हिंदी बोलने वाले प्रवासी मजदूरों को मौखिक और शारीरिक तौर प्रताड़ित करते हुए देखा जा सकता है.
वीडियो में उक्त व्यक्ति प्रवासी मजदूरों के कारण तमिलनाडु के मूल निवासियों के लिए नौकरी के अवसरों कम होने के बारे में बात करता है और मजदूरों को घूंसे एवं थप्पड़ मारता है. रेलवे पुलिस ने आरोपी की पहचान कर उस गिरफ्तार कर लिया था.
इस एक घटना के आलोक में तमिलनाडु में प्रवासी मजदूरों पर हमलों के संबंध में भ्रामक सूचनाएं फैलने लगीं. कई भ्रामक रिपोर्ट के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि उन्होंने बिहार पुलिस से मामले पर नजर रखने कहा है.
दूसरी ओर तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सिलेंद्र बाबू ने भी बिहार के डीजीपी से चर्चा करते हुए कहा था कि ऐसी कोई हिंसा नहीं हो रही है.
इसके बाद तमिलनाडु पुलिस ने दैनिक भास्कर अखबार, ‘तनवीर पोस्ट’ (मोहम्मद तनवीर) नाम के एक ट्विटर हैंडल और भाजपा प्रवक्ता प्रशांत पटेल उमराव के खिलाफ राज्य में प्रवासी मजदूरों पर हमले के बारे में गलत सूचना फैलाने के आरोप में एक मामला दर्ज किया था.
इसके अलावा तमिलनाडु पुलिस ने दक्षिणपंथी वेबसाइट ‘ऑपइंडिया’ के सीईओ और संपादक नूपुर शर्मा के खिलाफ भी राज्य में प्रवासी श्रमिकों के बारे में ‘झूठी खबर फैलाने’ के आरोप में केस दर्ज किया था.
बिहार के यूट्यूबर मनीष कश्यप पर भी ऐसे ही आरोप में केस दर्ज किया गया था. कश्यप उर्फ त्रिपुरारी कुमार तिवारी बिहार के एक यूट्बूर हैं जो स्वयं को पत्रकार बताते हैं और ‘सच तक न्यूज’ नाम से एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं.
बीते मार्च के पहले सप्ताह में उन्होंने फर्जी खबरों के वीडियो बनाए और अपलोड किए थे, जिनमें दिखाया गया था कि बिहार के प्रवासी श्रमिकों पर तमिलनाडु में हमला किया जा रहा है.